भारतीय संस्कृति में ऐसे अनेक अमूल्य ग्रंथ हैं जिनका चिंतन-मनन दिग्भ्रांत मनुष्य का अवश्य ही मार्गदर्शन कर सकता है।
उन्हीं में एक है 'महाभारत' महाभारत का उद्योग पर्व नीतिशात्र की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। व्यवहारकुशल, प्रज्ञावान, नीति, विद्वान विदुर का प्रजागर पर्व इसका रत्नभूत है। महात्मा विदुर द्वारा नेत्रहीन धृतराष्ट्र को दिया गया उपदेश विदुर नीति के नाम से विख्यात है।
इस नीतिग्रंथ में आठ अध्याय हैं जिनमें विभिन्न श्लोकों के माध्यम से कर्तव्य अकर्त्तव्य, सदाचार-दुराचार, राजा व प्रजा के संबंध, मित्र-अमित्र की पहचान, सत्य व धर्म की महिमा, इन्द्रिय निग्रह, ऐतिहासिक प्रसंग, अतिथि सत्कार व अनेक कल्याणकारी वचनों का उल्लेख है।
विदुर के मुख से निकला एक-एक शब्द अमृत के समान है, जो मनुष्य को व्यावहारिक जीवन जीने की कला सिखाता है।
वर्तमान में जब घोर भ्रष्टाचार व अनीति का बोलबाला है तो ऐसे समय में यह विदुर नीति पथप्रदर्शिका का कार्य सहज ही कर सकती है। विदुर नीति का चिंतन-मनन करने वाला व्यक्ति उन्नति के शिखर पर बढ़ता ही चला जाता है। पाठकों की सुविधा व जिज्ञासा के शमन हेतु महात्मा विदुर की जीवनी भी दी गयी है ताकि वे भी उस महान आत्मा के विषय में अधिक जानकारी पा सकें।
यह कार्य कदापि संभव न हो पाता यदि अंगूर प्रकाशन के प्रणेता श्री हरीश गुप्ता जी का सहयोग न मिलता, मैं उनका आभार व्यक्त करती हूं। अंत में यदि श्री संजय भोला जी का नाम न ले पायी तो यह कृति अधूरी रह जाएगी क्योंकि इस विषय के प्रेरणा-स्रोत तो वही थे।
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