| Specifications |
| Publisher: CHAUKHAMBHA ORIENTALIA, Delhi | |
| Author Saroj Gupta | |
| Language: Sanskrit Text with Hindi Translation | |
| Pages: 130 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 160 gm | |
| Edition: 2025 | |
| HBW097 |
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यह सर्वविदित है कि किसी भी भाषा का ज्ञान उसके व्याकरण ज्ञान पर निर्भर करता है क्योंकि भाषा पर अधिकार प्राप्त करने के लिए उसका व्याकरण ज्ञान आवश्यक है।
सम्पूर्ण जगत में संस्कृत व्याकरण ही सम्पूर्ण तथा परिष्कृत माना जाता है। भाषा वैज्ञानिकों का भी यही मत है कि संस्कृत का ज्ञान प्राप्त किए बिना भाषा विज्ञान में गति संभव नहीं है। न केवल हमारे देश के हर विश्वविद्यालय में ही संस्कृत का पठन-पाठन पूर्ण रूप से चल रहा है अपितु विश्व के अनेक देशों में संस्कृत को अपनाया जा रहा है।
संस्कृत और आचार्य पाणिनि एक-दूसरे के पर्याय माने जाते हैं क्योंकि पाणिनी व्याकरण 'अष्टाध्यायी' ही सम्पूर्ण सर्वांगीण परिष्कृत व्याकरण माना जाता है। इस पर अनेक टीकायें तथा व्याख्यायें लिखी गई है।
पाणिनीय व्याकरण में संस्कृत भाषा के व्याकरण के नियम सूत्रबद्ध हैं। अत्यन्त संक्षिप्त शैली में इन सूत्रों का अध्ययन जब दुरुह प्रतीत होने लगा तो सूत्र संचयन करते हुए प्रक्रिया ग्रन्थ तथा व्याकरण कौमुदी आदि ग्रन्थों की रचना हुई।
मैंने अपने तीस वर्षों के अध्ययन में यह जाना है कि छात्रों को लघुसिद्धान्त कौमुदी के रचयिता-पाणिनी है या वरदराज यह संशय रहता है। इसलिए मैंने पारिभाषिक शब्दों में इस सबका परिचय देने का प्रयास किया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के नवीन पाठ्यक्रम एन०३०पी० में बी०ए० (प्रोग्राम) पाठ्यक्रम के DSC-I मेजर तथा माइनर पेपर में आचार्य वरदराज विरजित लघुसिद्धान्त कौमुदी के प्रकरण-संज्ञा, सन्धि, कारक तथा समास निर्धारित किए गए हैं। इस पुस्तक में मैंने वह सभी विषय सम्मिलित किए हैं जिससे विद्यार्थी इस पाठ्यक्रम के सम्पूर्ण निर्दिष्ट विषय को प्राप्त कर सके।
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