"लघुकथा और समय"
साहित्य की एक विधा के रूप में लघुकथा का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। इसे अब तक एक अपेक्षाकृत नई विधा ही कहा जाता रहा है। लेकिन यह स्थिति ठीक वैसी ही है जैसे विज्ञान के अध्येता जानते हैं कि ऑक्सीजन की खोज होने से पहले भी लोग इसी से साँस लेते थे अथवा वास्कोडिगामा द्वारा हमें खोज लेने से पहले भी हम थे और यहीं रहते थे।
दरअसल खोज का ये सारा चक्र किसी भी चीज से स्वयं अपने को चस्पा कर लेने का है... हमने इसे तब पाया। हमारा यही 'हम' मानव की कहानी है। यही मनुष्य की जिजीविषा की दास्तान है। हम इसी के चश्मे से तमाम गुज्जरे समय को देखते हैं।
हाँ, कुछ भी खोज लेने के बाद हम उसे अपना लेते हैं और तब इसमें अपने विवेक, क्षमता, विचार, व्यवहार, सामर्थ्य, जिजीविषा, उपयोग, संभावना, परंपरा, अतीत और भविष्य आदि के अनुसार और सुधार करने या करते रहने की ओर प्रवृत्त होते हैं। इसी को हम इतिहास कहते हैं।
वस्तुतः यही हमारा वर्तमान भी होता है।
लघुकथा के साथ भी ऐसा ही हुआ। आरंभ से अद्यतन तक साहित्य में इसके चिह्न देख लेने और इसे पहचान लेने के बाद इसकी स्पष्ट परिभाषा, रूप, आकार, उद्देश्य, अन्विति आदि तलाशे गए। यह निरंतर चलने वाली सतत प्रक्रिया है।
लघुकथा को लेकर पिछले चार दशक से भी अधिक समय से प्रकाशित होती रही साहित्यिक पत्रिका 'कथाबिंब' ने समय-समय पर विशेषांक निकाले। इक्कीसवीं सदी के इस तीसरे दशक के मध्य तक आते-आते लघुकथा ने जो असर, विस्तार, स्वीकार और लोकप्रियता प्राप्त कर ली है उसे देखते हुए हमने इस विशेषांक को पुस्तक रूप में प्रकाशित करने का विचार बनाया ही था कि लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की ओर से हमें सहयोग का आश्वासन मिला। इसे हमने पत्रिका के लिए सहज प्राप्त तोहफे के रूप में माना और इसके अतिथि सम्पादन का दायित्व इस केंद्र की निदेशक सुप्रसिद्ध लघुकथाकार कांता रॉय को सौंपा गया। कांता जी ने लघुकथा के लिए देश भर में बहुत काम किया है।
इसके संरक्षण सहयोग के लिए अपने समय के प्रख्यात लघुकथाकार अशोक भाटिया ने पत्रिका को अपना समय और मान दिया।
पत्रिका के संस्थापक मंजुश्री एवं स्व. माधव सक्सेना 'अरविंद' की शुभकामनाएं हमारे साथ थर्थी ही। वर्तमान प्रधान संपादक नंद भारद्वाज तथा सहयोगी कविता मुखर, डॉ. बजरंग सोनी, अंबिका दत्त, प्रगति गुप्ता, डॉ. नीरज दइया तथा सदाशिव श्रोत्रिय के प्रति भी हम आभार व्यक्त करते हैं जिनका सहयोग और मार्गदर्शन पत्रिका को इस मुकाम तक लाया है।
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