भाषा विज्ञान सामान्यतः दुरूह और नीरस विषय माना जाता है किन्तु लेखक ने इसे सरल ही नहीं, सरस भी बनाया है। महर्षि पतंजलि के अनुसार विद्या स्वाध्याय और प्रवचन से उपयोगी होती है। लेखक ने पैंतीस वर्षों तक इस विषय को पढ़ा और पढ़ाया है। इसलिए इस विषय पर लिखना अनधिकार चेष्टा नहीं है। लेखक का उद्देश्य भाषाविज्ञान को प्रांजल और अक्लिष्ट रूप में प्रस्तुत करना है।
इस पुस्तक के दो खण्ड हैं - भाषा विज्ञान और हिन्दी भाषा। इन्हें यू०जी०सी० के सिलेबस और विषयों के क्रम से संगठित किया गया है किन्तु बी०ए० और एम०ए० संस्कृत में भी हिन्दी भाषा का अध्ययन करने वाले विद्यार्थी इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे। प्रथम खण्ड में भाषा विज्ञान सम्बन्धी प्रचलित मान्यताओं, भाषा की परिभाषा, भाषा व्यवस्था, भाषा व्यवहार, भाषिक प्रकार्य, भाषा विज्ञान की परिभाषा एवं भाषा विज्ञान की शाखाओं (स्वन विज्ञान आदि) की चर्चा की गई है। इस पुस्तक का द्वितीय खण्ड अत्यंत उपयोगी है, इस खण्ड के अन्तर्गत हिन्दी का ऐतिहासिक विकास क्रम, भौगोलिक विस्तार, भाषिक स्वरूप, हिन्दी की विविधरूपता, हिन्दी में कम्प्यूटर सुविधाओं विषयक जानकारी एवं देवनागरी का वैशिष्ट्य, विकास और मानवीकरण को अनपेक्षित विस्तार और जटिलता से बचकर बोधगम्य रूप में प्रस्तुत किया गया है।
एक तरह से यह पुस्तक यू०जी०सी० के पाठ्यक्रमानुसार भाषाविज्ञान और हिन्दी भाषा पर एक सम्पूर्ण ग्रन्थ है। अपनी तरह की यह पहली पुस्तक है।
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