पुस्तक के विषय में
यह पुस्तक अपने आप मे अलग और अनोखी है । यह हृदय के आरोग्य का ध्यान तो रखती है, जिससे आपका हृदय बिना किसी तकलीफ के धड़कता रहे, पर यह भी देखती है कि हृदय-गति के बंद होने का भय आपसे कोसो दूर रहे ।
स्कूल मे एक कहावत पढ़ी थी, ''स्वस्थ शरीर" में स्वस्थ मन का निवास होता है । परंतु इस पुस्तक से हमने यह सीखा है कि स्वस्थ मन ही शरीर को स्वस्थ रखता है । ऐसा मन जो तनाव, चिंता और भय से दूर हो । यह हमे यही सिखाता है कि किस तरह हम मन की शांति प्राप्त करे, जिसके बिना कोई भी अनुभव अर्थहीन है । इसीलिए आसनों पर ज्यादा जोर न देकर, हालाँकि उनका भी अपना महत्वपूर्ण स्थान है, एक नयी स्वस्थ विचार धारा को जन्म देने पर जोर दिया गया है, ताकि आप अपनी कमजोरियों और शक्तियो को पहचाने और उसी आधार पर जीवन मे नये ध्येय तथा नयी जीवन चर्या बनाएँ जो आपको ''बायपास' के खतरे से दूर ले जा सके ।
यह पुस्तक 'योग इंस्टीट्यूट' में हुए कोरोनरी कैम्पों मे वर्षों की गई कड़ी मेहनत और लगन का नतीजा है । यह सिर्फ हृदय के रोगियो के लिए ही नही, बल्कि उन लोगो के लिए भी है जिनका जीवन का ध्येय हृदय रोगी न बनना है ।
प्रस्तावना
पारंपरिक योगी की गहन संवेदनशीलता ने मानव शरीर की संरचना को किसी शल्यक्रिया या अन्य साधनों के द्वारा नहीं बल्कि उसे अचूक संवेदनशीलता और बारीक निरीक्षण से जाना और समझा। गोरखनाथ का यह कहना कि जिसे अपने शरीर की ही समझ नहीं वह सफल कैसे होगा? ''उनकी इसी तीव्र और गहन संवेदनशीलता का परिचायक है!
प्राचीन ग्रंथों ने हृदय को एक अवयव की तरह कम बल्कि संवेदना और चेतना के संवाहक के रूप में अधिक महत्व दिया है यह स्पष्ट नहीं है कि योगियों के हृदय नियंत्रण का संबंध अवयव हृदय से कहाँ तक है इसकी संभावना अधिक है कि हृदय को संवेदना और चेतना के स्थान की सजा देने का अभिप्राय हृदय चित् संविद (मानस को हृदय द्वारा समझना) और काया संपत (हृदय पर मन द्वारा नियंत्रण) से हो!
मन स्वयं व्याधि का कारण है और उसका निदान भी। जबकि आम धारणानुसार कुछ व्याधियाँ जैसे कैंसर इत्यादि का कारण मन की विकृति नहीं है पर नये संशोधनों के अनुसार हम इसी सत्य के नजदीक आ रहे है कि मन ही सभी रोगों का कारण है
ऐसा देखा गया है कि कुंठित या बंद नाड़ियों के अत्यधिक सकुंचन (स्पाज़म) से हृदय का दौरा पड़ता है और यह स्पाज़म मय या घबराहट से भी हो सकता है।
प्रसिद्ध पत्रकार नॉर्मन कज़िन जिन्हें खुद हृदय का दौरा पड़ चुका है लिखते हैं कि हाल के संशोधन मिश्रित कारणों को ही दशति हैं, जिससे स्पाज़म स्वस्थ्य नाड़ियों को भी उतना ही प्रभावित कर सकता है जितना बंद नाड़ियों को। एक छोटा सा साजन अत्यधिक रूप से बंद नाड़ियों के साथ मिलकर हृदय की मांसपेशियों में होनेवाले ऑक्सीजन के प्रवाह में अवरोध उत्पत्र कर सकता है इसी तरह से छोटा स्पाज़म बड़े पैमाने में हुए स्पाज़म के साथ मिलकर भयंकर दुष्परिणाम दे सकता है। यह एक ऐसा समीकरण है जिसमें दो अनिश्चित संख्याएँ मिलकर एक निश्चित संख्या देती है... भय के कारण भी यह स्पाज़म होता देखा गया है।
प्रचलित मान्यताओं में अब हृदय विकार की रोक-कप के लिए अन्य उपायों के साथ साथ रहन- सहन और वैचारिक बदलाव पर भी जोर देना प्रशंसनीय प्रयास है योग जीने का सही तरीका है पौष्टिक आहार सकारात्मक व्यायाम के तरीके, स्वस्थ्य दिनचर्या उचित आराम और निद्रा संतुलित मन और इसके परिणामस्वरूप उपलब्ध सही मनः-स्थिति आकस्मिक या तकि हृदय विकार के नियंत्रण के लिए अचूक उदय हँ।
योगिक रहन सहन पद्धति में पारमार्थिक मूल्यावलोकन पर अधिक जोर देना होन वास्तव में ये भौतिक मूल्य ही सभी दुखों की जड़ है जिसमें रोग और असंतुलित मनःस्थिति भी शामिल अपराध प्रज्ञा अपराध (असंतुलित मनःस्थिति) तभी होते है जब आध्यात्मिक मूल्यों का हनन होता हैं।
अत: हृदय के रोगियों के शत्रु सिर्फ तेलसयुक्त आहार या कोलस्टारॅल, तनाव या संघर्षपूर्ण वातावरण ही नहीं है बल्कि भौतिकवाद? स्वार्थी प्रवृत्ति, अहंकार नकारात्मक भावनाएँ और सभी प्रकार की अतियाँ तया दुराग्रह भी होते अगर एक लंबी स्वस्थ्य और सुखद जिंदगी हमें व्यतीत करनी है? तो हमें अपने कदम आध्यात्मिकता की ओर भी बढ़ाने होनो
सर 1978 से इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ योग के सौजन्य से 'योग इस्टीट्यूट' में हृदय ग्रेगों पर अब तक करीब 35 शिविर लग चुके हैं और उससे तकरीबन 375 से अधिक हृदयरोगियों को लाभ मिला है
हिन्दी संस्करण के प्रकाशन में दिए अपने सक्रिय सहयोग के लिए श्री किशोर शाह श्री विश्वास रहाळकर, कु: निशि श्रीवास्तव? श्री महेद्र श्रीवास्तव श्री निरंजन गोगिया के हम विशेष आभारी हैं।
विषय-सूची
अ प्रस्तावना
आ. एक हृदययरोग विशेषज्ञ के विचार
इ. विषय का मर्म
ई. निष्कर्ष
उ. परिवर्तन की दृढ़ इच्छा
1
कर्तव्य परायणता सुखासन
2
आदतें प्राणायाम नं. ४
3
शिथिलीकरण शवासन
4
सूक्ष्म श्रवण निस्पंदभाव
5
चिंतन मनन वज्रासन
6
अत्रग्रहण हस्तपादांगुष्ठासन
7
संतुलन स्थितप्रार्थनासन
8
दृष्टिकोण कोणासन नं १
9
स्थिरता त्राटक
10
मनोरंजन यष्टिकासन
11
अभ्यास भद्रासन
12
संपूर्ण समर्पण मत्स्यासन
13
प्राण शक्ति प्राणायाम नं १
14
तप दृढ़ासन
15
लचीलापन उत्कटासन
16
मनोवृत्तियाँ नतप्रार्थनासन
17
कर्मयोग योगमुद्रा
18
सकारात्मक भावना रेचक
19
परिग्रहण पर्वतासन
20
अनुशासन जलनेति
21
वैराग्य अनित्य भावना
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Asana (91)
Bhakti Yoga (17)
Biography (49)
Hatha Yoga (77)
Kaivalyadhama (58)
Karma Yoga (31)
Kriya Yoga (69)
Kundalini Yoga (56)
Massage (2)
Meditation (315)
Patanjali (129)
Pranayama (65)
Women (32)
Yoga For Children (12)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist