लेखक परिचय
नाम माता प्रो. (डॉ.) गुलाब चन्द सिंह 'आभास' पिता राम प्यारी देवी जन्म तिथि स्व. भगवान सिंह 2 जुलाई 1944 जन्म स्थान पेशा : कसेर, भगवानपुर, जिला- कैमूर प्रध्यापन एवं खेती कार्य क्षेत्र हिन्दी विभाग, शोरशाह कॉलेज, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा, बिहार निवास : सासाराम, म. फजलगंज, गीताघाट आश्रम वेदा के सामने प्रकाशित रचनाएँ: 1. माई के लाल, 2. विद्रोही (खण्ड काव्य), 3. क्रान्तिकारी बीर भगत प्रकाश्य सिंह (प्रबन्ध काव्य), 4. सुभाष चन्द्रबोस (प्रवन्ध काव्य), 5. लौह-पुरुष (प्रबन्ध काव्य), 6. कितने चौराहें समीक्षा, 7. गद्य संचय समीक्षा, 8. जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ (दोहा संग्रह), 9. उड़ो हंस अव मानसरोवर सिंह (प्रबन्ध काव्य), 15. गौतम बुद्ध (प्रबन्ध काव्य), 16. बुढ़ापा। (दोहा संग्रह), 10. थाहो थाह अथाह मन, 11. मैं भी हो गयी लाल, 12, गहरे पानी पैठ, 13. घुँघट के पट खोल, 14. शेर-ए-वीर: शहीद भगत भोजपुरी काव्य 17. गुलशन गजब गुलाब के (गीत संग्रह), 18. गरम गीत गुलाब के (संयोग वियोग), 19. आनन्द पराग (गीत संग्रह), 20. भाई भरत अस नाहीं (प्रवन्ध), 21. फूले फूल 'गुलाब' के (सत्य तथ्य अनुकथ्य), 22. गुलदस्ता गुलाब के (भोजपुरी लोकगीत)। : 1. मन, 2. फाँसी फंदे के लाल, 3. महाभारत के सात महारथी 4. लेनिन बिहार के। सम्पर्क गद्य भाग : 1. मैथिलीशरण गुप्त के जयभारत में, 2. काव्य और संस्कृति (शोध प्रवन्ध)
प्राक्कथन
भारतीय गौरव ग्रंथों की महान श्रृंखला में मैथिली शरण गुप्त के "जयभारत" का भी महत्वपूर्ण स्थान है। "जयभारत" खड़ी हिन्दी की रचनाओं में एक सुविख्यात कृति है, एवं गुप्त की एक प्रतिनिधि रचना है। खड़ी बोली के काव्यों में इसका भी एक स्थान है। इसकी कथागत मौलिकता एवं नवीनता, भावगत गुरूता एवं गम्भीरता, भाषागत प्रौढ़ता एवं प्रांजलता ने अत्याधिक सहृदयों को आकृष्ट किया है। यद्यपि कवि का यह महाकाव्य सर्वांगपूर्ण नहीं है, फिर भी महाभारत की विस्तृत झांकी यहां अंकित की है, वह भारतीय साहित्य के लिए कवि की अनुपम देन है और इसी देन के कारण "जयभारत" सम्पूर्ण कृष्ण कथा साहित्य में विशिष्ट स्थान का अधिकारी है।" "जयभारत" का प्रकाशन सन् 1952 में हुआ है। विद्वान आलोचकों ने गूढ़ ग्रंथियों को सुलझाने तथा इसके काव्य सौष्ठव को स्पष्ट करने का बहुत कम प्रयत्न किया है। "जयभारत" सम्बन्धी जितनी आलोचनाएं अब तक प्रकाशित हुई हैं, उनमें से कुछ तो पत्र पत्रिकाओं में मुद्रित छोटे छोटे लेखों के रूप में मिलते हैं जो "जयभारत" के साथ पूर्णात्या न्याय नहीं कर पाते हैं। पुस्तककार प्रकाशित आलोचनाएं बहुत ही कम हैं। फिर भी ऐसा कोई शोध ग्रंथ नहीं मिलता जिसमें इसके काव्य सम्बन्धी मार्मिक तथ्यों के गुण दोषों का विवेचन करते हुए, इसके अन्तर्गत विद्यमान संस्कृति की सर्वांगपूर्ण मीमांशा की गयी है और यह भी बतलाया गया हो कि महाकाव्यों की सुदीर्घ परम्परा में "जयभारत" का क्या स्थान है। ग्रंथों की अपेक्षा "जयभारत" की क्या विशिष्टताएं हैं? इस अभाव की पूर्ति यह शोध-ग्रंथ करता है। "जयभारत के काव्य और संस्कृति की यह सम्यक् मीमांशा करता है। इस क्रम में कहां तक सफलत मिली है, इसका निर्देश किया गया है। तीसरे अध्याय में "जयभारत" में प्रयुक्त गुप्त की भाषा शैली अलंकार योजना, छंद-विधान आदि पर उदाहरण सहित विचार किया गया है। छंद योजना एवं अलंकार योजना में कवि की पहुंच कहां तक है, कौन कौन से अलंकार और छंद कवि को अधिक प्रिये रहे हैं, इस ओर भी ध्यान खींचा गया है। जयभारत की व्यापकता एवं शिथिलता के कारणों पर भी विचार किया गया है। चौथा अध्याय "जयभारत" में वर्णित भारतीय संस्कृति से सम्बन्धित है। इस अध्याय में संस्कृति की परिभाषा देते हुए भारतीय संस्कृति की महत्ता, विशेषता एवं सभ्यता और संस्कृति के अन्तर को स्पष्ट किया गया है। इस अध्याय में संस्कृति सम्बन्धी सामाजिक ढांचा, प्रधान धर्म एवं देवी देवता, लोक-विश्वास, बहु-विवाह और उसके परिणाम, एवं खान-पान आदि पर उदाहरण सहित विस्तार से विचार किया गया है। अध्याय पांच में संस्कृति के गौरव-चित्रों एवं गौरव-चरित्रों पर विचार किया गया है। इसके अन्तर्गत "जयभारत" के प्रमुख मार्मिक स्थलों एवं प्रमुख पात्रों के चरित्रों पर विचार किया गया है। इसी अध्याय के अन्तर्गत "जयभारत" में हुए मनुष्य-राक्षस-सम्बन्धों के परिणामों की चर्चा की गयी है। देवों और मानवों की लाभकारी सम्बन्धों की भी चर्चा की गयी है। अध्याय छः में जयभारत के वर्णित उत्कर्षात्मक घटनाओं से मानव समुदाय को क्या प्रेरणा मिलती है और अपकर्षात्मक घटनाओं से क्या सीख मिलती है? इसका विशद विवेचन किया गया है। अंत में उपसंघार स्वरूप शोध के निष्कर्षों पर विचार किया गया है तथा अपनी मान्यताएं भी स्पष्ट की गयी हैं। सहायक ग्रंथों की सूची देकर शोध-ग्रंथ की समाप्ति की गयी है।
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