जिस तरह बिना सूर्य के चारों ओर अन्धकार होता है, उसी प्रकार बिना साहित्य के कोई भी देश प्रकाशित एवं विकसित नहीं हो सकता। भारतीय साहित्य मंगलकारी और कल्याणकारी रहा है। इसमें समन्वय की भावना चिरकाल से विद्यमान रही है। साथ ही साथ भारतीय साहित्य हमेशा मानवीय एवं राष्ट्रीय एकता और अखण्डता का पक्षधर रहा है।
भारतीय साहित्य में 'राष्ट्रीय काव्य धारा' का अपना एक अलग स्थान है। राष्ट्रीय काव्य धारा अपने उद्भव काल से वर्ममान काल तक अनेक उतार-चढ़ाव के साथ गतिशील रही है। जब-जब मार्ग की सीमाओं ने इसकी गति अवरुद्ध करने की चेष्टा की तब-तब युग की क्रांतिकारी जीवन्त समस्याओं ने उभरकर इस काव्य धारा के लिए प्रगति और प्रेरणा का पथ प्रशस्त किया। समस्त आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं और उनके साहित्यों का विकास लगभग दशवीं शताब्दी से प्रायः समानान्तर ही हुआ है। यद्यपि राष्ट्रीयता या देश-प्रेम का भाव वेदों तथा रामायण काल से भारतीय साहित्य में मिलता है पर आधुनिक काल के प्रारंभ में यूरोपीय उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद की प्रतिक्रिया से अनुप्रेरित राष्ट्रीयता युक्त जिस विशाल साहित्य का निर्माण हुआ वह हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगाली आदि सभी भाषाओं में समान रूप से उपलब्ध होता है। एक समय में लगभग एक ही प्रकार की प्रेरणाओं से विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं में रचित इस साहित्य एवं साहित्यकारों के बारे में समुचित जानकारी के लिए तुलनात्मक अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। वस्तुतः भारतीय साहित्य विभिन्न भाषाओं में अभिव्यक्त एक ही विचार है। देश का यह दुर्भाग्य रहा कि विदेशी शासन के कारण आज तक अनेकता को ही बल मिलता रहा। इसकी मूल एकता का सम्यक अनुसंधान नहीं हो पाया है। इसके लिए अत्यन्त तटस्थ भाव से सत्य-शोध पर दृष्टि केन्द्रित रखते हुए देश के विभिन्न भाषाओं के साहित्यों में विद्यमान समान तत्त्वों एवं प्रवृत्तियों के विधिवत् अध्ययन की आवश्यकता है। प्रस्तुत शोध कार्य इसी आवश्यकता की पूर्ति का एक लघु प्रयास है।
राष्ट्रीय काव्य धारा और राष्ट्रीय कवियों के प्रति मेरी अभिरुचि अध्ययन काल से ही रही है। इसका कारण मेरे बाल-मानस को प्रभावित करने वाली घटनाएँ हैं। इसी प्रकार चतुर्वेदीजी की कविता 'पुष्प की अभिलाषा' भी प्राथमिक कक्षा से ही मेरे आकर्षण का केन्द्र बिन्दु रही। झवेरचन्द मेघाणी की राष्ट्रीय त्यौहार पर मेरी प्रथम पाठशाला में गायी जाने वाली कविता 'कसुंबीनो रंग' ने मुझे बचपन से ही लुभाया।
आज भी इन विभिन्न भाषी कवि-द्वय की इन दोनों कविताओं को जब भी पढ़ता हूँ या सुनता हूँ तो आत्मविभोर हो उठता हूँ। भीतर भावोत्कर्ष के साथ चेतना का स्फुरण होने लगता है।
अतः अध्यापक के रूप में मुझे बी.ए. के प्रथम वर्ष में 'आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि माखनलाल चतुर्वेदी' हरिकृष्ण प्रेमी संपादित कविता संग्रह के अध्ययन अध्यापन का सुअवसर प्राप्त हुआ तो चतुर्वेदीजी तथा राष्ट्रीय काव्य धारा के गहन अध्ययन के प्रति मेरी अभिरुचि और बलवत्तर बनती गई। विशेष उपाधिपरक अध्ययन की महेच्छा लेकर मैं श्रद्धेय गुरुवर्य डॉ० राठौर साहब के पास पहुँचा पर गुरुजी ने यह कहकर मना कर दिया कि माखनलाल पर तथा हिन्दी की राष्ट्रीय काव्य धारा पर एकाधिक कार्य हो चुके हैं। बहुत कुछ लिखा गया है आप क्या नया लिखेंगे पर मैं निराश नहीं हुआ। अपने इस विषय की बात प्रसंगवश करता रहा, तब एकबार गुरुजी ने कहा कि अगर चतुर्वेदीजी पर ही कार्य करना चाहते हैं तो किसी गुजराती साहित्यकार से तुलना कीजिए। मेरा ध्यान तुरन्त झवेरचन्द मेघाणी की कविता की ओर गया और विषय निश्चित हुआ। मैं मनचाहा विषय पाकर प्रसन्नचित्त कार्य में जुट गया, जिसका परिणाम यह शोध-प्रबन्ध है।
प्रस्तुत तुलनात्मक अध्ययन छः अध्यायों में विभाजित है।
प्रथम अध्याय में हमने राष्ट्र, राष्ट्रीय तथा चेतना शब्दों की व्युत्पत्ति बताते हुए राष्ट्रीयता अथवा राष्ट्रीय चेतना की अवधारणा एवं स्वरूप को स्पष्ट किया है, साथ ही साथ राष्ट्रीय काव्यधारा की परम्परा को भारतीय साहित्य तथा हिन्दी-गुजराती साहित्य के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है।
दूसरे अध्याय में आलोच्य दोंनों कवियों माखनलाल चतुर्वेदी एवं झवेरचन्द मेघाणी के कविता की पृष्ठभूमि को विस्तार के साथ प्रस्तुत किया है। जिस युग में दोनों कवियों ने लेखनी ऊठाई, वह युग स्वतन्त्रता के लिए लड़े जा रहे संग्राम का युग था। हमने यहाँ पर राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास को विस्तार से राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक आदि शीर्षकों के साथ प्रस्तुत किया है।
तीसरा अध्याय कविद्वय के जीवन और व्यक्तित्व से सम्बन्धित है। इस अध्याय में हमने दोनों कवियों के जीवन को विभिन्न शीर्षकों, जन्म, माता-पिता, बचपन, शिक्षा, नौकरी, वैवाहिक जीवन, विदेश यात्रा, जेल जीवन, नाम-उपनाम, साहित्यिक उपाधियाँ, स्वर्गवास आदि के द्वारा प्रस्तुत करते हुए दोनों के व्यक्तित्वों की तुलना यहाँ की है।
चौथा, पाँचवाँ और छठाँ अध्याय हमारे शोध-प्रबन्ध का हार्द अथवा प्रतिपाद्य है। इन तीनों अध्यायों में आलोच्य दोनों कवियों की कविता में व्यक्त राष्ट्रीय चेतना को प्रस्तुत करते हुए उसकी तुलना प्रस्तुत की है। वस्तुतः यह एक अध्याय के तीन भाग हैं। क्योंकि तीनों अध्यायों में कविद्वय की राष्ट्रीय कविताओं का विश्लेषण एवं तुलना की गई है। अध्ययन की सुविधा और अध्याय के कलेवर को देखते हुए इसे तीन अध्यायों में विभाजित किया है।
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