शिक्षा मनुष्य को जहाँ संस्कार देती है वहीं उसे जगत में जीने के लिए सैद्धान्तिक और व्यवहार अनुभव सम्पदा भी प्रदान करती है। यह अनुभव सम्पदा उसे साहित्य से प्राप्त होती है। साहित्य से मानव संस्कारों का विकास होता है। स्नातकोत्तर स्तर पर हिन्दी साहित्य के अध्ययन में मेरे लिए इस अनुभव सम्पदा के द्वार तब खुले जब कथा-साहित्य में मैंने अन्य कथाकारों के साथ-साथ प्रेमचन्द के कथा-साहित्य का भी अवगाहन किया। इसके उपरांत मैंने कथाकार सुश्री मन्नू भण्डारी के साहित्य को भी पढ़ा। साहित्य में मैंने उनका उपन्यास 'आपका बंटी' पढ़ा। पढ़ने के बाद मुझे लगा कि नारी की मनःस्थितियों का चित्रण अत्यंत सुचारु ढंग से हुआ है। इसके बाद मैं उनकी कहानियाँ जैसे-कील और कसक, घुटन, ऊँचाई, एक कमजोर लड़की की कहानी आदि को कई बार पढ़ गयी। जितनी बार पढ़ा उतनी बार मैं मानसिक जगत में होने वाले नारी और पुरुष मन के विभिन्न भावान्दोलनों से परिचित होती चली गयी। फिर मैंने एम.ए. का अध्ययन भी पूर्ण किया। एम.ए. का अध्ययन एक साल पूरा किया तभी मुझे माध्यमिक विभाग में हिन्दी विषय के शिक्षक की नौकरी मिल चुकी थी। एम.ए. करने के उपरान्त जब मैं अपने शोध-निर्देशक डॉ० ए.के. पटेल से मिली और उनको मैंने मन्नूजी के अध्ययन के बारे में बताया फिर उनके साथ परामर्श करके अन्ततः मेरा शोध विषय बना, 'मन्नू भण्डारी के उपन्यासों में नारी-चेतना।
इस प्रकार उक्त विषय के साथ शामलाजी आर्ट्स कॉलेज के प्राचार्य डॉ० ए. के. पटेल के निर्देशन से मेरा शोध कार्य शुरू हुआ। विषय निर्धारण के पश्चात् कई विद्वान अध्यापकों के शोध अनुसंधान विषयक ग्रंथों को देखा। अपने शोध-विषयक ग्रंथों तथा संदर्भ ग्रंथों को कई बार देखे जाने के बाद शोध-प्रबंध के निर्वाह हेतु मैंने उसे निम्नलिखित छः अध्यायों में विभक्त किया है-
1. मन्नू भण्डारी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
2. हिन्दी उपन्यास साहित्य में नारी
3. मन्नू भण्डारी के उपन्यास एवं कथावस्तु
4. मन्नू भण्डारी के उपन्यासों में चित्रित नारी पात्र
5. मन्नू भण्डारी के उपन्यासों में चित्रित नारी-समस्याएँ
6. उपसंहार
साठोत्तरी कथा-साहित्य में मन्नू भण्डारी का एक विशिष्ट स्थान है। कथा-साहित्य के अन्तर्गत उपन्यास और कहानी दोनों आते हैं, लेकिन यहाँ हमने अपने शोध कार्य में मन्नूजी के सिर्फ उपन्यास को ही लिया है। अपने लेखन के प्रारम्भिक दौर में मन्नूजी ने अपने पति राजेन्द्र यादव के साथ सहलेखन में 'एक इंच मुस्कान' नामक उपन्यास की रचना की थी। उसके बाद मन्नूजी ने अपना एक स्वतंत्र उपन्यास लिखा 'आपका बंटी'। 'आपका बंटी' उपन्यास बहुचर्चित एवं महत्वपूर्ण बन गया। आधुनिक समय में नारी-शिक्षा, नारी-मुक्ति आंदोलन तथा कतिपय नारी की पक्षधर विचारधाराओं के कारण शिक्षित समाज में पति-पत्नी के अहम् की टकराहट की घटनाएँ बहुत बढ़ रही हैं। इस खंडित दाम्पत्य जीवन में सबसे दयनीय स्थिति उस बच्चे की होती है, जो इन दोनों के यौन-संबंधों का परिणाम है। 'आपका बंटी' उपन्यास 'महाभोज' नामक उपन्यास है, इसमें मन्नूजी ने हमारे राजनीतिक जीवन की विसंगतियों, विद्रूपताओं और विकलांगता का पर्दाफाश किया है। उक्त तीन उपन्यासों के अलावा मन्नूजी के और भी दो लघु उपन्यास हैं, 'स्वामी' और 'कलवा'। 'स्वामी' बंगला उपन्यासकार शरतचंद्र की कहानी पर आधारित है, तो 'कलवा' बाल उपन्यास है।
प्रस्तुत शोध-प्रबंध में मन्नूजी के उपन्यास पर एक विशिष्ट दृष्टिकोण से अध्ययन किया गया है।
प्रथम अध्याय मन्नूजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का है। प्रस्तुत अध्याय में मन्नूजी के पूरे व्यक्तित्व के बारे में लिखा है। मन्नूजी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है-उनकी साहसिकता और उदारता। मन्नूजी का स्वभाव सरल और सौम्य है। व्यक्तित्व के साथ-साथ उनके कृतित्व के बारे मे लिखा है कि उन्होंने कौन-कौन सी कृतियाँ लिखी हैं-मन्नूजी ने उपन्यास, कहानी और नाटक तीनों में अपना स्थान पाया है।
द्वितीय अध्याय हिन्दी-उपन्यास साहित्य की नारी है। इस अध्याय के विवेचन के प्रारम्भ में आधुनिक काल के साहित्य में नारी चित्रण का संक्षेप में परिचय दिया है। हिन्दी उपन्यास साहित्य में पूर्व प्रेमचन्द युग, प्रेमचन्द युग, प्रेमचन्दोत्तर युग की नारी के बदलते स्वरूप का विवेचन किया है।
तृतीय अध्याय मन्नू भण्डारी के उपन्यास एवं कथावस्तु का है। जिसमें उनके पाँच उपन्यासों की कथा को संक्षिप्त में लिखा गया है। जिसमें आपका बंटी, एक इंच मुस्कान, महाभोज, स्वामी और कलवा इन उपन्यासों के बारे में लिखा है।
चतुर्थ अध्याय मन्नू भण्डारी के उपन्यासों में चित्रित नारी-पात्र हैं। इसमें मन्नूजी के नारी-चरित्र सृष्टि के विवेचन में उनके उपन्यासों में चित्रित नारी पात्रों का परिचय दिया है। मन्नूजी ने नारी मन की घुटन, टूटन तथा आक्रोश अपने उपन्यासों में चित्रित किया है। उन्होंने अपने उपन्यासों में नारी मन की इन अनुभूतिर्यो, संवेदनाओं को अभिव्यक्त किया है।
पंचम अध्याय मन्नूजी के उपन्यासों में चित्रित नारी-समस्याएँ हैं। इस अध्याय में नारी समस्या के स्वरूप का प्रतिपादन किया है। इस अध्याय में मन्नूजी ने अपने उपन्यासों में जिन समस्याओं को उठाया है उसमें नारी के विवाहपूर्व, वैवाहिक जीवन एवं विवाहोपरांत बाह्य प्रेम और यौन समस्याओं को उपस्थित कर उनका समाधान करने का प्रयास किया है। अतः इसमें खंडित दाम्पत्य जीवन की समस्या, अनमेल विवाह की समस्या, नारी स्वतंत्रता की समस्या, तलाक की समस्या, बच्चों की मानसिक समस्या आदि समस्याओं का चित्रण किया है।
छठाँ अध्याय उपंसहार का है। जिसमें समग्र प्रबन्ध को ध्यान में रखते हुए उसमें जो निष्कर्ष प्राप्त हुए उन्हें उपसंहार के रूप में मैंने प्रस्तुत किया है।
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध की रचना में अनेक प्रेरणाएँ रही हैं और इस अवसर पर सबका स्मरण करती हूँ। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में मेरे शोध-निर्देशक एवं मेरे गुरु डॉ० ए. के. पटेलजी का योगदान विशेष रूप से रहा है। जिन्होंने मुझे आत्मीयतापूर्वक मार्गदर्शन किया जिसके लिए मैं हृदय से उनकी अनुग्रहीत हूँ।
मैं विशेष कर आर्ट्स एण्ड कामर्स कालेज, खेड़ब्रह्मा के हिन्दी विभाग के प्राध्यापक आदरणीय डॉ० अनिल चौहान और प्राध्यापक जे.एस. राठवाजी की आभारी हूँ, जिन्होंने समय-समय पर मेरी मदद की और मेरे कार्य को आसान बनाया।
मेरे इस कार्य को सरल बनाने और मुझे अपने स्नेह से शोध-कार्य में सहायता करने वाले मेरे पति परेश पटेल, मेरे भाई सुरेश पटेल, भाभी हिना, मेरी भतीजी जीया, मेरे सास-ससुर, मेरी ननद जयश्री तथा मेरे सहकर्मी जीनल एस. वाघेला इन सबके लिए मैं कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ।
भारतीय परम्परा में माता-पिता का स्थान सर्वोपरि माना गया है। ऐसे मेरे पिताजी प्राचार्य नटवरलाल पटेल तथा माताजी लक्ष्मीबेन के आशीर्वाद के कारण ही मुझमें प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध की पूर्ति करने की शक्ति प्राप्त हुई। उनके प्रति आभार प्रकट करने में उनके ऋण से मुक्त नहीं होना चाहती।
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का टंकन लेखन श्रीमती मेमुना के. ब्लोच (खेड़ब्रह्मा)
ने शुद्ध रूप से किया है। अतः मैं उनकी भी हृदय से आभारी हूँ। मैं उन सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने इस शोध कार्य को पूर्ण करने में मेरी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहायता की है।
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