56 वर्षों का अस्तित्व ! मॉरीशस हिन्दी लेखक संघ का! इसने इतिहास रचा है मॉरीशस के हिन्दी साहित्य के इतिहास में, जो स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना चाहिए।
मॉरीशस में एक साहित्यिक संस्था के इतने दीर्घ साहित्यिक कार्यकाल की उपलब्धि वस्तुतः ऐतिहासिक उपलब्धि ही है। ऐसी न जाने कितनी हिन्दी संस्थाएं मॉरीशस में संस्थापित हुईं पर उनका कार्यकाल अल्पकालीन ही रहा और न हिन्दी के लिए कोई विशिष्ट कार्य ही कर पाईं। पर हिन्दी लेखक संघ के दीर्घकालीन अस्तित्व का रहस्य क्या हो सकता है? संघ के सदस्य सदस्याओं में समझदारी, निःस्वार्थ सेवा भावना और उनकी कर्मठता। अपनी भलाई को न सोचकर हिन्दी साहित्य के उत्थान और उसके विकास के लिए समर्पित भाव। श्रमदान के अतिरिक्त अर्थदान में भी न चुके अन्यथा संघ द्वारा इतनी पुस्तकों व पत्रिकाओं का प्रकाशन कैसे होता? अतएव हमने हिन्दी लेखक संघ के इतिहास की पुस्तक प्रकाशित करना समीचीन समझा।
हिन्दी लेखक संघ के इतिहास की पुस्तक प्रकाशित करने तथा इसके द्वारा किए गए कार्यों का ऐतिहासिक दस्तावेज लिपिबद्ध करने का विचार हमें बहुत पहले आया था। सन् 2011 में जब हम संघ की रजत जयन्ती (50वीं वर्षगांठ) मनाने जा रहे थे उस समय संघ के इतिहास की पुस्तक भी प्रकाशित करना चाहते थे पर किसी कारणवश प्रकाशित न कर पाए। इस अन्तराल में अब जब संघ के 56 वर्ष पर संघ की ऐतिहासिक पुस्तक छपने जा रही है तो संघ के अधिक कार्यों का संवरण होगा और यह अधिक दस्तावेज़ से परिपुष्ट होगी।
हिन्दी लेखक संघ के इतिहास की पुस्तक निश्चय ही मॉरीशस के हिन्दी साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ेगी और अखिल विश्व हिन्दी साहित्य का भी गौरव बढ़ाएगी क्योंकि इसने हिन्दी साहित्य की कई साहित्यिक विधाओं में पुस्तकों तथा हिन्दी पत्रिका के प्रकाशन के माध्यम से विश्व हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में यथेष्ट योगदान दिया है वह भी हिन्दी की मूल भूमि भारत से सुदूर एक लघु देश में, जहां प्रकाशन आदि की असुविधाओं के बावजूद हिन्दी साहित्य सृजन में अविरल कार्यरत रहा है।
लेखक संघ के मंत्री होने के नाते मैं बहुत पहले इतिहास की पुस्तक को प्रकाशित करने को ध्यान में रखकर सामग्री इकट्ठा कर रहा था। अब जब पुस्तक छपने जा रही है तो मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है। सो, मैं सोच रहा हूं कि यदि संघ के संस्थापक डॉ. मुनीश्वरलाल चिंतामणि और पं. धर्मवीर घूरा जीवित होते तो वे कितने खुश होते। फिर भी, श्रद्धांजलि के रूप में संघ की यह ऐतिहासिक पुस्तक उन्हें समर्पित है। एक बात मैं कहना चाहूंगा कि लेखक संघ एक संस्था है। लेख अनेक हैं, पढ़ेंगे तो आपको विचारों व तथ्यों की पुनरावृत्ति मिलेगी। इससे हम बच न सके ।
साथ में, मैं भारतीय उच्चायुक्त महामहिम अनूप कुमार मुद्राल, हिन्दी प्रचारिणी सभा के प्रधान श्री यन्तुदेव बुधु, आर्य सभा के महामंत्री श्री सत्यदेव प्रीतम, इन्द्रधनुष हिन्दी परिषद् के संचालक श्री प्रहलाद रामशरण, हिन्दी स्पीकिंग यूनियन की अध्यक्षा डॉ. सरिता बुद्ध, लेखक संघ के प्रधान डॉ. लालदेव अंचराज, महामंत्री श्रीमती बिदवन्ती अजोध्या तिलक तथा उपप्रधान श्री विष्णु दत्त मधु के संदेश देने के प्रति व लेख लिखने के लिए अपना आभार प्रकट करता हूं और उन्हें धन्यवाद भी देता हूं।
मेरी पूर्ण आशा है कि हिन्दी लेखक संघ के इतिहास की पुस्तक हिन्दी साहित्य में कालजयी रहेगी और अन्य हिन्दी संस्थाओं के प्रेरणा-स्रोत होगी।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist