संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित हशमत अली खाँ अपने समय के प्रख्यात तबला वादक थे। वह अजराड़ा घराना और बाज के पर्याय थे। मेरठ के कपसाड़ गाँव में जन्मे, हशमत अली खा ने तवले का प्रारंभिक प्रशिक्षण अपने दादा मो. शफी खाँ (जो कि किसी जमाने में बड़ौदा महाराज के दरबारी कलाकार हुआ करते थे) से प्राप्त किया था। बाद में, आपने नियाजू खा की शागिर्दी में तबला वादन में महारत हासिल की और आकाशवाणी, कश्मीर में स्थायी कलाकार के रूप में नियुक्त हुए। हशमत अली खा साहब बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार थे। वह एकल तबला वादन, गायन, तंत्र वाद्य, शास्त्रीय नृत्य, खयाल, ठुमरी, टप्पा, गजल आदि बजाने में सिद्धहस्त थे।
'मौसिकी मेरी मंजिल' वस्तुतः हशमत अली खा साहब के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित पुस्तक है। पुस्तक में हशमत अली खा का केवल जीवन ही नहीं, वरन् तबले का इतिहास भी समाहित है। हमें विश्वास है कि इस पुस्तक से न केवल संगीत जगत अपितु हिन्दी का सामान्य पाठक भी लाभान्वित होगा।
पुस्तक के लेखक श्री विजय शंकर मिश्र भी संगीतज्ञ हैं। श्री मिश्र का संबंध बनारस घराने से है। श्री मिश्र ने बहुत ही मनोयोग और श्रमपूर्वक, सरल एवं सुबोध शैली में इस पुस्तक का सृजन किया है। पुस्तक में हशमत अली खा साहब के जीवन का विवरण तो है ही, इसके अतिरिक्त विभिन्न घरानों के तबले की भिन्नता और विशिष्टता का भी इसमें विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया है।
हशमत अली खा अब इस संसार में नहीं हैं लेकिन उनकी तबला कला, संगीत के क्षेत्र में उनका योगदान, और उनकी यशःकाया इस पुस्तक के माध्यम से सदैव जीवित रहेगी।
उठान और अंततः 'मौसिक्री मेरी मंज़िल' अब आपके हाथों में है। यह मेरी नौवीं पुस्तक है, लेकिन इस पुस्तक के लेखन में मेरा जितना समय और श्रम लगा है, उतना किसी भी अन्य पुस्तक में नहीं। लेकिन, जब पुस्तक प्रकाशित हो गई है, तब में सबसे पहले बहुत ही अदब के साथ खाँ साहब यानी हशमत अली खाँ को याद करना चाहूँगा, जिन्होंने इस नाक़ाबिल संगीत सेवी की काबिलियत को देखा, पहचाना और यह सुनहरा अवसर दिया। मुझ पर विश्वास करने और वह अवसर देने के लिए मैं संगीत नाटक अकादेमी के अधिकारियों के प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ।
यह पुस्तक कठिनाइयों और समस्याओं की कई दुर्गम गलियों से होती हुई इस मुकाम तक पहुँची है। 2016 में जब इस पुस्तक पर मैं काफ़ी कुछ काम कर चुका था, अचानक मेरे छोटे भाई की मृत्यु हो गई और उसी दिन घर में चोरी भी, जिसमें वह लैपटॉप भी था, जिसमें पुस्तक की सामग्री थी। छोटे भाई अजय शंकर मिश्र के अचानक इस तरह से चले जाने से मैं अवसादग्रस्त हो गया था। काफ़ी समय लगा मुझे उससे उबरने में। पुस्तक पर दुबारा काम शुरू किया तो 2017 में हशमत अली खाँ ने दुनिया को अलविदा कह दिया। मैं बुरी तरह से घबरा गया और पुस्तक के काम को बंद करने का निश्चय कर लिया। लेकिन, जब में ऋता स्वामी चौधरी जी के पास पहुँचा तो उन्होंने मुझे समझाया और कहा कि आप इस पुस्तक को पूरा कीजिए। खाँ साहब के बेटे अकरम खाँ ने भी मदद का आश्वासन दिया।
इसके बाद खाँ साहब के रिश्तेदारों, सहकर्मियों और साथी कलाकारों से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। एक-एक कलाकार को पकड़ने में एक-एक महीना लग गया। उनकी स्मृतियाँ कितनी कमज़ोर होती हैं, इसका पता भी पहली बार चला। लेकिन, अकरम भाई भी लगातार प्रयासरत रहे। जब कभी मैं निराश होने लगता, ऋताजी (ऋता स्वामी चौधरी) और अकरम भाई (अकरम खाँ) ढांढस बंधाने के लिए आ जाते। खाँ साहब की छोटी बेटी दिलआरा, दामाद नौशाद अहमद और दोनों नातियों जोहेब और सुव्हान तथा रिश्तेदार सलीम खाँ ने भी इस पुस्तक को पूरी करने में काफ़ी मदद की है, और इनके लिए शुक्रिया जैसा शब्द बहुत छोटा होगा। दिलआरा तो अक्सर फ़ोन करके भी मेरा हौसला बढ़ाती थीं। यह सभी मेरे अपने लोग हैं और इन्हें धन्यवाद देना में उचित नहीं समझता हूँ।
सुप्रसिद्ध कवि, लेखक, संपादक श्री हरिशंकर राढ़ी ने भी काफ़ी सहायता की है।
इस पुस्तक के काम को पूरा करने में, वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी रेकॉर्डिंग, टाइपिंग जैसे काम को करने में मनमोहन डोंगरा, बी. के. अलंकृत उर्फ बिट्टु कुमार, दिव्यांशु बिड़ला, स्वरूप चौबे, अस्मिता मिश्रा और राहुल कुमार ने बहुत सहायता की है मेरी। इस कड़ी में एक महत्वपूर्ण नाम मेरे भाई श्री सरफ़राज़ अहमद जी का भी है। आप कह सकते हैं कि इस पुस्तक को मैंने सिर्फ लिखा है- इसे तैयार करने का काम तो इन्हीं लोगों ने किया है। बी स्वरूप चौबे तो हर समय साथ लगे रहे। मेरे एक फ़ोन पर अपना सारा काम छोड़कर आ जाते थे।
इस पुस्तक के लिए जिन स्वनामधन्य कलाकारों से में बातचीत कर पाया, या जिनकी शुभकामनायें प्राप्त कर पाया, उसका पूरा श्रेय अकरम खाँ को है। खाँ साहब हशमत अली के दो अन्य पुत्रों दानिश असलम एवं आज़म खाँ सहित उनकी पुत्र वधुओं, नाती, पोते सभी ने अत्यन्त भावनात्मक रूप से अपनी बातें बताई हैं।
हशमत का अर्थ होता है- धन, वैभव, ऐश्वर्य आदि, और हशमत अली खाँ सचमुच संगीत जगत के लिए एक धरोहर थे, एक सच्चा कलाकार, एक नेक दिल इंसान। मैंने आजतक न तो उनके मुँह से किसी की शिकायत सुनी और न तो किसी के मुख से उनकी शिकायत। अस्सी वर्ष की उम्र में भी उनके चेहरे पर एक बाल सुलभमुस्कान और निश्छल हँसी अठखेलियों करती रहती थीं। छोटे-बड़े हर कलाकार के कार्यक्रम में वह उत्साह बढ़ाने के लिए उपस्थित रहते थे। वह अजातशत्रु और हरदिलजज़ीज़ थे।
चतुर्मुखी ताबलिक वे हशमत अली खाँ। गायन, वादन और नर्तन की समुचित संगति के साथ-साथ स्वतंत्र वादन में भी सिद्धहस्त। वह एक हरफ़नमौला कलाकार होने के साथ-साथ बहुत अच्छे विचारक भी थे। इसके बावजूद वह पूरी तरह से अभिमान शून्य थे। सचमुच ऐसे कलाकार कभी-कभी ही अवतरित होते हैं इस धरती पर।
मैं संगीत का एक छोटा सा विद्यार्थी हूँ और कलम की मजदूरी कर रहा हूँ। अपनी ओर से मैंने पूरी कोशिश की है कि खाँ साहब के व्यक्तित्व और कृतित्व के साथ पूरा न्याय कर सकूँ। फिर भी कुछ कमियों का रह जाना स्वाभाविक है। जिसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।
संगीत नाटक अकादेमी के सभी पदाधिकारियों, विशेषकर अध्यक्ष, डॉ. संध्या पुरेचा, सचिव, श्री राजू दास, डॉ. ऋता स्वामी चौधरी, श्री अंकुर आचार्य और श्री संजय भारद्वाज के प्रति मैं विशेष रूप से आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने विशेष रुचि ली इस पुस्तक के प्रकाशन में। इस पुस्तक के लेखन और प्रकाशन में लगभग सात वर्ष का समय लग गया। इन वर्षों में जिन लोगों ने भी, जिस भी तरह से मेरी मदद की है, उन सबके प्रति में नतमस्तक हूँ।
अब यह पुस्तक आपके कर कमलों में है।
मुझे पूरा विश्वास है कि संगीत जगत् द्वारा इस पुस्तक का भरपूर स्वागत होगा, और मुझे आप सभी का स्नेहाशीष मिलेगा।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist