भारतवर्ष के सैनिक इतिहास के अध्ययन तथा अनुसंधान को अभी तक विशेष प्रोत्साहन नहीं मिल पाया है। इतिहासकारों तथा जनसाधारण ने भी इस ओर अभी तक यथेष्ट जिज्ञासा प्रकट नहीं की। यद्यपि इस सत्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि जनसाधारण में सैनिक विषयों के ज्ञान तथा रुचि को जागृत करने के लिए सैन्य विषयों पर अनुसंधान करना, इस विषय को स्कूल-कालेज के पाठ्य-विषयों में जोड़ना तथा इन विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित करना अति आवश्यक है। एक ओर इससे भारत के रक्षात्मक प्रयासों में जन सहयोग सरकार को प्राप्त होगा तथा दूसरी ओर विशेषज्ञों की आलोचनाओं और सुझावों से हमारी सुरक्षा व्यवस्था में सुधार होगा। वह अधिक शक्तिशाली बनेंगी। भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में इतिहास प्रभाग सरकारी स्तर पर स्वतंत्र भारत के सैनिकों द्वारा लड़े गए युद्धों पर अनुसंधान कर उनका प्रकाशन कर रहा है। इस विभाग ने इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। परंतु इनके सभी अनुसंधान तथा प्रकाशन अंग्रेजी भाषा में है। इस कारण यह जनसाधारण तक नहीं पहुँच पाये हैं। सम्भवतः इसी तथ्य को ध्यान में रखकर रक्षा मंत्रालय ने रक्षा विषयों पर हिन्दी में लिखी गयी मूल पुस्तकों पर पुरस्कार देने की योजना आरम्भ की है। इस योजना के अन्तर्गत मेरी पुस्तक 'आधुनिक भारत का सैनिक इतिहास को रक्षा मंत्रालय द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है।
प्रस्तुत पुस्तक 'मेसोपोटामिया अभियान' मौलिक अनुसंधान पर आधारित है। इसमें प्रथम विश्व युद्ध के मेसोपोटामिया अभियान (1914-1917) में भारतीय सैनिकों के योगदान का उल्लेख किया गया है। यह पुस्तक मुख्यता "डी" फोर्स की वार डायरी पर आधारित है यद्यपि अन्य समकालीन तथा अनुपूरक पुस्तकों तथा लेखों को भी प्रयोग में लाया गया है। इन सब का उल्लेख ग्रन्थ-सूची में किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक लेखक की विस्तृत योजना, जिसमें वह प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों की भूमिका का पांच खण्डों में वर्णन करना चाहता है, का एक भाग है। यह योजना भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा स्वीकृत है तथा इस प्रथम खण्ड के अध्ययन में लेखक कृतज्ञतापूर्वक परिषद द्वारा प्रदान की गई आर्थिक सहायता के प्रति आभार प्रदर्शित करता है।
अन्त में, श्री योगेश चन्द्र भार्गव का अत्यन्त आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक के लेखन व महत्त्वपूर्ण सामग्री जुटाने में अपना योगदान दिया तथा इस पुस्तक के प्रकाशन में विशेष रूचि ली। इस पुस्तक के प्रकाशन संबंधी सभी जटिलताओं को अपने अनुभव और सूझबूझ से बड़ी कुशलतापूर्वक सुलझाकर पुस्तक के प्रकाशन में अपना अमूल्य सहयोग दिया।
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