मेरी कठिनाई यह है कि यहां समानांतर एक ही किताब में दो कविता कृतियां हैं और यह भी माँ, बेटे संलग्न रचयिता है। जीवन और कविता का यह अपूर्व नाभिनाल संयोग है। जटिलता तब होती है जब निजता के बीच काव्य संसार और उसके इतिहास से बिल्कुल भिन्न अपरिचित कल की कविताओं पर आपको टिप्पणी करनी हो। यहां दो भिन्न पीढियां हैं, दो भिन्न समय की रचनावली है। बहरहाल, यह मेरी बढ़ती और धीरे-धीरे परिपक्व होती धारणा है कि दुनिया में हर सुसंस्कृत आदमी कविता लिखता है, या लिखना चाहता है। कम से कम अभी तक की सभ्यता के इतिहास में यह काफी हद तक सच साबित हुआ है। आगामी दुनिया में कविता के भविष्य पर कोई निर्णायक टिप्पणी करना उचित नहीं होगा क्योंकि सभ्य भाषाओं में कथेतर गद्य का प्रचलन बढ़ रहा है और कविता की पुस्तकें शेल्फ पर बहुत धीमी हो गयी हैं।
मेरी जानकारी यह है कि कविता मनुष्य की सर्वाधिक नैसर्गिक रचना है। तानाशाह, नौकरशाह, दार्शनिक, विचारक, भावुक, यहां तक कि हत्यारे भी कविता लिखते हैं। पांच वर्ष पहले वर्जीनिया विश्वविद्यालय के परिसर में जिस 19 वर्ष के छात्र ने डेढ़ दर्जन लोगों को अपनी गन से भून दिया था उसकी डायरी में पुलिस को असंख्य कविताएं मिलीं। कुल मिलाकर मनुष्य के लिये कविता इतनी प्रयोजनीय वस्तु है कि संसार की सभी शिष्ट और लोकभाषाओं में किसी न किसी रूप में पाई जाती है। सभ्यता की यात्रा और प्रगति में मनुष्यता को समय-समय पर जगाते रहने के लिये कविता उसके साथ निरंतर चली आ रही है और चलती रहेगी। केवल जानवरों को कविता की जरूरत नहीं। कविता की अन्तः प्रकृति बहुत ही संवेदनशील, कोमल और प्राचीन है।
आलोक चंसोरिया हिन्दी और अंग्रेजी में निष्णात हैं, उनके पूर्वज और अभिभावक बौद्धिक क्रियाकलापों में सक्रिय और चितेरे रहे हैं। उन्होंने नाट्य शास्त्र और उसकी परम्पराओं पर विशद अध्ययन किया है। वे शिक्षा के केन्द्र में हैं और समकालीन दुनिया से उनका गहरा नाता है। पर मेरे लिये भी यह विस्मयजनक है कि उनके व्यस्त जीवन में कविता का भी एक कोना है। हिन्दी-अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उन्होंने कविताएं लिखी हैं। आलोक जी की संग्रहीत छत्तीस कविताओं का मूल स्वर मानवतावादी है। उसमें करूणा है, देश-समाज है, जीवन मूल्यों का आग्रह है, परम्परा ही हल्की छाया है, आदर्शवादिता है और कवित्त पर्याप्त है। यही रसायन इन कविताओं को विविध, पठनीय और सामान्यजन के अनुकूल बनाता है। कविताओं के शिल्प में मुक्ति भी है, छंद, लय और तुक के कभी-कभी बंधन भी हैं। कविताओं की कोटि एक ही नहीं है। कविताओं की स्पेस खोजना हो तो वह एक ठिठकी हुई जगह नहीं है, बड़ा केनवास है। यह बात मैं इसलिये भी लिख रहा हूँ कि आलोक जी की कई कविताओं में स्वप्न भी हैं। कविता का एक छोर स्वप्न है दूसरा छोर यथार्थ है। स्वप्न स्थूल नहीं होते, वे चित्रकला की तरह बहुरंगी, विस्तार लेते हुए और यूटोपिया लगते हैं- स्वप्न से ही कवि आगे बढ़ता है।
"पृथ्वी स्वर्ग से भी सुंदर होगी", "क्या हम मानव हैं", "पूजा स्थल पर धूप" आदि कई कविताएं स्वप्नजीवी हैं, सुंदर हैं, कवि मन का पता देती हैं। एक खास बात चंसोरिया जी की प्रायः सभी कविताओं में बुनियादी तत्व की तरह मिलती है और वह यह कि उसमें देश-समाज, जनोन्मुख आवेग प्रमुख है। मानवीय रिश्तों में भी यह प्रेम उनकी कविता का विषय है। घर-बार, देश, शहर सबके प्रति एक पवित्र प्रेम और सृजन की चाह उनकी कविताओं की थाती है। प्रेम है तो जीवन में लय है, माधुर्य है, स्पंदन है। प्रेम का होना उदात्त होना है और इसी से बड़ी कविता का मार्ग खुलता है। आलोक चंसोरिया की हल्की राजनैतिक छाया वाली कविताओं में भी देश भक्ति है और ध्वस, विनाश से बचाने की बेचैनी ।
आलोक जी की कविताओं की एक विशेषता यह है कि उनके कविता विषय आधुनिक नई कविता से अलग हैं। उनके विषय देशीय, जातीय और भारतीय सामाजिक परम्पराओं के अति निकट हैं। आधुनिक कविता ने खासतौर पर हिन्दी की अधुनातन कविता ने ऐसे बहुत से विषयों को छोड़ दिया है, जिन्हें मराठी, मलयालम, बांग्ला और पंजाबी कविता ने नहीं छोड़ा है। शहर, देश, फूल, भोर, सूर्यास्त, स्वतंत्र भारत की तस्वीर, कोई गाता हुआ इस तरह के विषयों पर आलोक ने कविताएं लिखी हैं, जबकि हमारे नये कवि मानव भाषा में औद्योगिक संस्कृति से उत्पन्न विषयों या मध्यमवर्गीय नागरिक जटिलताओं पर कविताएं लिख रहे हैं। आलोक चंसोरिया में कोई आग्रह नहीं है, उनमें एक विलक्षण नैसर्गिकता है। उन्होंने काव्यात्मक छलांग लगाने की जगह देश की सुगंध-दुर्गंध पर ध्यान दिया है। उनकी कविता "क्या यही स्वतंत्र भारत की तस्वीर है", को पढ़ते हुए मुझे बांग्ला के विख्यात कवि नवारुण भट्टाचार्य की कविता "यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश" की याद आई, इनमें आयडिया एक है।
कुल मिलाकर मेरा निष्कर्ष यह है कि आलोक चंसौरिया में पर्याप्त "पोयटिक टेलेंट" है। उन्होंने अंग्रेजी में भी सिद्ध हस्त कविताएं लिखी हैं। वे संडे पोयट का अपना बिम्ब तोड़ सकते हैं, अगर निरंतर लिखें और समृद्ध समकालीनता की नयी खिड़कियां खोलें। उनकी सामाजिक और अकादमिक प्रतिभा को कविता के एकांत की भी जरूरत है। उन्हें निरंतरता में जाना चाहिये। उनके लिये मेरी शुभकामनाएं ।
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