भीम सैन आनन्द ने कहानियाँ लिखने में जरा देर से पहल की, परन्तु अपने कहने में कोई देरी नहीं की है। कहा जाना चाहिये कि देर आयद दुरुस्त आयद। उनके इस कहानी संग्रह में कहानियों के अनेक रंग हैं, मानो अनेक भावों का एक गुलदस्ता बन गया है। कहानियों को पढ़ते हुये लगता है कि मैं कहानियाँ नहीं बल्कि धड़कते हुए जीवन का एक अंश हूँ जिसे स्वतंत्र रूप में आनन्द ने एक नया आकार दे दिया है। इन कहानियों में बहुत कुछ ऐसा है जो हिन्दी की दुनिया के लिए नया है। कई बार हम सहसा विश्वास भी नहीं कर पाते कि सत्य की इतनी परतें हो सकती हैं।
आनन्द ने इन कहानियों में अनेक चरित्रों के माध्यम से जीवन संग्राम की अनकही बातों का कहने का प्रयास किया है जो सूक्ष्म है परन्तु पढ़ते हुये वो हमसे छूटती नहीं है और एक उत्सुकता बनी रहती है कि ये चरित्र और किस-किस विडम्बना का सामना करेगा।
इन कहानियों की खूबसूरती यह है कि इन्हें कहने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई गई है जैसे कोई मूर्तिकार किसी पत्थर को आकार देते-देते अचानक रम जाता है और महसूस करता है कि इस पत्थर के साथ यात्रा यहीं तक थी। वह पाता है कि शिल्प अपने अंतिम रूप में पहुँच चुका है और आनन्द ने भी अपनी कहानियों को इसी प्रकार गढ़ा है।
पाठक मान सकते हैं कि ये कहानियाँ उद्देश्यपूर्ण हैं और कहानीकार इससे इन्कार भी नहीं करता। वह समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को भलीभाँति महसूस करता है और उसने समाज का बारीकी से अध्ययन करते हुये एक ऐसा नायाब कहानी संग्रह हमारे समक्ष प्रस्तुत किया जो हमें सोचने-विचारने पर मजबूर कर देता है।
वह कहानी 'उड़ान' में एक दलित लड़की 'सुन्दरी' की खूबसूरती को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं तथा दबंगों द्वारा उसकी खूबसूरती से ईर्ष्या एवं उसे अपनी जागीर समझना गाँवों में व्याप्त विकृत समाज की एक के बाद एक परत खोलते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि सब कुछ हमारे सामने ही घटित हो रहा है। वह ऐसा करते हुये भी अपने उद्देश्य से भटकते नहीं हैं। यह कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं है कि उन्हें चित्रांकन में दक्षता हासिल है और इसलिए उनकी प्रत्येक कहानी को पढ़ते हुये पाठक कहानी के साथ अंत तक बंधा रहता है। शारीरिक शोषण होने के बाद भी सुन्दरी अपने सपनों की उड़ान जारी रखती है और एयरहोस्टेज बन जाती है। उनकी प्रत्येक कहानी एक प्रेरणा देती है। कहानियाँ बहुत ही सरल शब्दों में कही हुई हैं जिस कारण पाठक कहानी को पढ़ते हुये सहजता अनुभव करता है।
कहानी 'नीर बने मोती' और 'फर्ज' में उन्होंने प्रेम का एक अलग ही रूप एवं विस्तार प्रस्तुत किया है। दोनों ही कहानियों में पवित्रता एवं त्याग की कितनी पराकाष्ठा हो सकती है यह कहानियाँ पढ़कर ही पता चल सकता है। उनकी कहानियों को पढ़ते हुये हमें यह अहसास भी होता है कि शहर में होने के बावजूद भी कई जगहें आज भी ऐसी हैं जहाँ सुविधाओं का बहुत अभाव है और रोजमर्रा की आवश्यकताओं तथा जीवनयापन के लिए लोगों को बहुत संघर्ष करना पड़ता है। एक-दो कहानियाँ उनकी बहुत पुरानी लिखी हुई हैं जिन्हें उन्होंने इस संग्रह में शामिल किया है, परन्तु आज भी उतनी ही सार्थक प्रतीत होती हैं।
साहब जाति क्या है आपकी' में दयाशंकर की उत्तर प्रदेश में पोस्टिंग के होने के बाद जब एक सवर्ण महिला 'जाटव मतलब चमार ना' यह कहते हुये अपने पति को कमरा किराये पर देने से मना कर देती है तो देश में व्याप्त सामाजिक संरचना की परत दर परत पोल खुलती जाती है। लेखक एक दलित के संघर्ष को ही नहीं दिखाता अपितु दलितों में व्याप्त जातिवाद को भी उजागर करता है। साथ ही कहानी देश में एक दूसरे के प्रति बढ़ते जातीय संघर्ष को भी परिभाषित करती है।
कहानी 'मन्दिर' में दबंगों द्वारा एक दलित का दमन और एक मुसलमान द्वारा उसकी मदद को आ जाना, देश के वर्तमान परिदृश्य को रेखांकित करता है। '
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