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निमाड़ी गीत- Nimadi Geet: Sanskar Songs of Nimar District of Madhya Pradesh and Their Scripts (With Notations)

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Specifications
Publisher: Adivasi Lok Kala Evam Boli Vikas Academy And Madhya Pradesh Cultural Institution
Author Hemlata Upadhyay
Language: Hindi
Pages: 267
Cover: HARDCOVER
10.5x7.5 inch
Weight 780 gm
Edition: 2014
ISBN: 9789383118977
HBL705
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Book Description

किताब के बारे में

जनपदीय गीत सांस्कृतिक परम्परा के आधार हैं। वाचिक परम्परा में लोकगीत शब्द रचना और संगीत रचना एक साथ है। संस्कारों के गीत विभिन्न अवसर और अनुष्ठानों तथा लोकाचारों से जुड़े हुए हैं। वे साहित्य और संगीत की लोकपरम्परा से आगे हमारी सांस्कृतिक चेतना और स्वरूप का दर्शन हैं। निमाड़ी गीत मूलतः स्त्रियों का गान हैं, उनकी भावाभिव्यक्ति हैं। निमाड़ी गीतों के भाव, सम्वेदना और संगीत में आंचलिक संस्कृति का हार्द्र बसता है।

निमाड़ी गीतों के माध्यम से हम जनपदीय भूगोल और उसके जीवन के उदात्त पक्षों, स्वप्नों, अकांक्षाओं तथा आचरण को सहजता से समझ सकते हैं। वाचिकता में गीत की यात्रा ही इसकी प्रमाणिकता है कि गीत में वर्णित तथ्य और संकेत उस जनपद के जीवन आचरण का हिस्सा हैं।

निमाड़ी की वाचिक परम्परा अत्यंत समृद्ध रही है। विविधतापूर्ण वाचिक साहित्य के गीतों पर आधारित यह पुस्तक आपके हाथों में है। श्रीमती हेमलता उपाध्याय ने अकादमी के आग्रह पर गीतों के संग्रह अनुवाद एवं उसकी स्वरलिपि तैयार करने की कृपा की है। अकादमी इस उदारता के लिए कृतज्ञता व्यक्त करती है।

अपनी बात

देववाणी संस्कृत विश्व की समस्त बोलियों भाषाओं की जननी है। हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी भी इन बोलियों से पोषित हुई है। राष्ट्रहित में भारतीय संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन, उन्नयन हेतु शासन की विभिन्न योजनाएँ सराहनीय एवं प्रेरक हैं।

राष्ट्रभाषा हिन्दी को पोषित करने वाली तथा राष्ट्रीय एकता को एक सूत्र में पिरोने वाली हमारी असंख्य बोलियों में मध्यप्रदेश की एक प्रमुख बोली निमाड़ी का भी वैसा ही महत्त्व है, जैसा एक पुष्प की सुंदरता में उसकी एक-एक पंखुड़ी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक पंखुड़ी की अपनी विशेषताएँ तो हैं, किन्तु समवेत रूप में हर छोटी-बड़ी पंखुड़ी पुष्प को सर्वांगीण सुन्दर बनाने में योगदान देती है।

आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा समय-समय पर आयोजित श्रुति कार्यक्रमों एवं विचार गोष्ठियों में यही निष्कर्ष निकले कि संस्कृति संरक्षण हेतु इन बोलियों भाषाओं के पारंपरिक गीतों की स्वरलिपि तैयार करना आवश्यक है। साथ ही मौलिक लोकधुनों में लोकगीतों का (ध्वन्यांकन कैसेट्स, सीडी आदि के रूप में) कर संरक्षित करना अनिवार्य है, अन्यथा हम अपनी मौलिक एवं विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति का बहुत कुछ खो बैठेंगे। अतः इस दिशा में निमाड़ी गीतों की स्वरलिपि रचना का यह प्रयास आपके समक्ष प्रस्तुत है। हमारे लोकगीत सागर में अनगिनत अनमोल रत्न की तरह हैं। असंख्य, अनाम, अज्ञात लोकगीत रचनाकारों, संगीतकारों के हम आभारी हैं, जिनसे हमें लोक गीतों का अक्षय भंडार विरासत में मिला। इन्हें सुरक्षित एवं संरक्षित कर भावी पीढ़ियों तक अविकल पहुँचाने के दायित्व निर्वहन से ही उनके ऋणों से उऋण होना संभव है।

वाचिक परंपरा से पीढ़ी दर पीढ़ी महिलाओं द्वारा हम तक आने वाले इन गीतों में विकास की दौड़, फिल्म प्रभाव, पश्चिम के अंधानुकरण एवं अज्ञानतावश दीर्घ अवधि में कुछ दोष भी आ गये, विशेषकर ताल, स्वर एवं विषयवस्तु की प्रस्तुति एवं धुनों में किन्तु श्रमसाध्य, दुष्कर और इस महान कार्य संपादन में सरलता से दूषण दूर भी हुए।

पूर्ण सतर्कता से स्वरलिपि रचना में इनकी मौलिकता एवं पारंपरिकता का ध्यान रखा गया है। शास्त्र-सिद्धान्त और लोक-व्यवहार में स्वाभाविक रूप से अन्तर होता है। शास्त्र में नियम पालन व अनुशासन की कठोरता भी होती है, किन्तु लोक नियमों से दृढ़ता पूर्वक बंधा नहीं रहता। सहजता, सरलता, स्वाभाविकता व सरसता को वह सहज अपनाता है एवं अनुकरण कर लेता है। प्राकृतिक निर्झरणी की तरह स्वतः स्फूर्त ये लोक-रचनायें निरन्तर मधुरता के साथ निःसृत होती रहीं और लोक गंगा को युगों-युगों से समृद्ध करती रही हैं जो जीवन की एकरूपता व नीरसता को भंग कर आनन्द का संचार करने और सबको एक सूत्र में बांधे रखने की क्षमता रखती हैं। इन लोक रचनाकारों ने भले ही शास्त्र नियमों या संगीत की विभिन्न राग-रागिनियों में इन गीतों को नहीं रचा होगा, किन्तु स्वाभाविक रूप से ही इनमें शास्त्र सम्मत अनेक राग-रागिनियों के दर्शन हुये। स्वरलिपि रचना में गीतों की उत्पत्ति, थाट-राग, ताल, स्वर आदि को खोजने का अलग से कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ा। आश्चर्य चकित हो इन गीतों की सर्वांगीणता को देखकर अपने उन अनाम रचयिताओं के प्रति नतमस्तक हूँ।

धन्य हैं हमारी पूर्वज महिलायें जिन्होंने वाचिक परंपरा से हम तक इन गीतों को सुरक्षित पहुँचाया। हम आभारी हैं, उन अनाम लोक गीतकारों के जिन्होंने इन गीतों की रचनायें कर उन्हें लोक सागर में सम्मिलित किया और अपने नामों को विसर्जित कर वे अमर हो गये। निश्चित ही हमारे इस प्रथम प्रयास में कुछ त्रुटियाँ संभव हैं, किन्तु विश्वास है कि हमारे उद्देश्य और प्रथम प्रयास को विज्ञ-जन अमूल्य मार्गदर्शन से हमें प्रोत्साहित करेंगे। इस विशद् कार्य के संपादन में सुश्री मनोनीता मुकर्जी एवं सुश्री वर्षा मालवीय का अमूल्य सहयोग मिला, जिनके बिना यह कार्य मुझ अल्पज्ञ से अकेले कर पाना संभव नहीं था। उनकी मैं विशेष आभारी हूँ।

श्रीमती पद्मा अत्रे, श्रीमती वर्षा मिश्रा एवं श्री गोविन्द दरबार जी का सहयोग भी मेरा संबल था। आदरणीय पद्मश्री रामनारायण जी उपाध्याय की प्रेरणा से मेरा लोक गीतों की ओर रूझान बढ़ा। श्री अशोक मिश्र की प्रेरणा से यह लोकगीत स्वरलिपि रचना आकार ले सकी। अतः उनकी मैं आभारी हूँ।

मैं अपनी माँ श्रीमती सुशीला देवी पारे, नानी श्रीमती नर्मदा बाई साकल्ले, सासू माँओं श्रीमती शकुन्तला देवी एवं सुभद्रा देवी उपाध्याय, श्रीमती जमुना देवी उपाध्याय, श्रीमती विमला साकल्ले के प्रति अनुगृहीत हूँ, जिनसे मुझे समय-समय पर ये गीत मिले और उनका मार्गदर्शन भी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक महिलाओं के सहयोग के लिये मैं आभारी हूँ।

निमाड़ी पारंपरिक कुछ गीतों की स्वर-लिपि रचना को सौंपते हुये मुझे खुशी है।

आपके आशीर्वाद और प्रतिक्रिया की आकांक्षा रहेगी।

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