लेखक परिचय
कृष्णदत्त पालीवाल जन्म : 4 मार्च, 1943 को सिकन्दरपुर, जिला फर्रुखाबाद (उ.प्र.) में। प्रमुख प्रकाशन: 'भवानी प्रसाद मिश्र का काव्य-संसार', 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का चिन्तन जगत्', 'मैथिलीशरण गुप्त: प्रासंगिकता के अन्तःसूत्र', 'सुमित्रानन्दन पन्त', 'डॉ. अम्बेडकर और समाज व्यवस्था', 'सीय राम मय सब जग जानी', 'सर्वेश्वरदयाल सक्सेना', 'हिन्दी आलोचना के नये वैचारिक सरोकार', 'गिरिजा कुमार माथुर', 'जापान में कुछ दिन', 'डॉ. अम्बेडकर समाज व्यवस्था और दलित-साहित्य', 'उत्तर-आधुनिकता की ओर', 'अज्ञेय होने का अर्थ', 'उत्तर-आधुनिकतावाद और दलित-साहित्य', 'नवजागरण और महादेवी वर्मा का रचनाकर्म : स्त्री-विमर्श के स्वर', 'अज्ञेय कविकर्म का संकट', 'निर्मल वर्मा' (विनिबन्ध), 'दलित साहित्य : बुनियादी सरोकार', 'अज्ञेय विचार का स्वराज', 'अज्ञेय : अलीकी का आत्मदान', 'आलोचक अज्ञेय की उपस्थिति'। 'लक्ष्मीकान्त वर्मा की चुनी हुई रचनाएँ', 'मैथिलीशरण गुप्त ग्रन्थावली' तथा 'अज्ञेय रचनावली' का सम्पादन। पुरस्कार सम्मान अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी सम्मान, हिन्दी अकादमी पुरस्कार, दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन सममान, तोक्यो विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय, जापान द्वारा प्रशस्ति-पत्र, राममनोहर लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान, सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान, साहित्यकार सम्मान, विश्व हिन्दी सम्मान, विश्व हिन्दी सम्मेलन, न्यूयॉर्क में सम्मानित । दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे तथा जापान के तोक्यो यूनिवर्सिटी ऑव फारेन स्टडीज़ में विज़िटिंग प्रोफेसर ।
पुस्तक परिचय
निर्मल वर्मा और उत्तर औपनिवेशिक विमर्श निर्मल वर्मा के सृजन और चिन्तन पर केन्द्रित यह पुस्तक वरिष्ठ आलोचक कृष्णदत्त पालीवाल के पिछले चार-पाँच वर्षों के दौरान लिखे गये लेखों का संग्रह है। निर्मल वर्मा के सृजन चिन्तन के 'पाठ' पर 'विमर्श' करना, मनोभूमि में उठते जटिल सन्दर्भों को सुलझाना उतना कठिन नहीं है जितना कि उनका सामना करना। विचारधारा की गुलामी में जकड़े आलोचकों ने निर्मल वर्मा पर मनमाने, निरर्थक आरोप गढ़-गढ़ कर लगाये हैं। उन्हें निर्मल वर्मा की भारतीयता छाती में खूँटे की तरह गड़ती रही है। वे उन्हें बाबावादी चिन्तक कह कर घेरने का हौसला दिखाते रहे हैं। आज न' थियरी' रही है न 'विचारधाराएँ'। आलोचना के सामने केवल रचना है। विमर्श-विश्लेषक, आलोचक पूरे पाठक-मन से रचना से संवाद कर रहा है और पाठकवादी सृजनात्मक आलोचना का क्षेत्र विस्तृत हो रहा है। जागरूक सहृदयों, आस्वादकों को इन लेखों में आलोचना-कर्म का यही रूप मिलेगा। 'निर्मल वर्मा और उत्तर औपनिवेशिक विमर्श' कालजयी रचनाकार निर्मल वर्मा की रचना-भूमि के खनिजों, अन्तःजल और विस्तृतियों का समसामयिक सन्दर्भों में 'पाठ' करने का एक महत् अनुष्ठान है। यह पुस्तक निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व की रचावट और बनावट का ऐसा 'भारतीय पाठ' तैयार करती है जिसकी अबतक आलोचना में सिर्फ अनदेखी ही की गयी। निर्मल की रचनाओं पर आधारित यह 'विमर्श' आलोचना के मानदंडों को भी पुनःपरिभाषित और प्रतिष्ठित करेगा, ऐसा विश्वास है।
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