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पुस्तक परिचय
संसद के उच्चसदन राज्यसभा के संगठन में मनोनीत सदस्यों की संविधान द्वारा व्यवस्था किया जाना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके माध्यम से जहाँ साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में श्रेष्ठता-प्राप्त लोगों के अनुभव से राज्यसभा को गरिमा प्राप्त हुई है, वहीं संसदीय प्रक्रिया के अन्तर्गत वाद-विवाद एवं विचार-विमर्श का स्तर ऊँचा हुआ है।
चूँकि इन सदस्यों के मनोनयन का आधार उनकी विशेष प्रतिभा, योग्यता और अपने विषय के औचित्य का होना रहा है इसलिए संसदीय प्रक्रिया में उनकी भागीदारी दलगत राजनीति से परे रही है। कहा जा सकता है कि संसद में उत्कृष्टता और दूरदर्शिता की यह अनोखी व्यवस्था है।
राज्यसभा के प्रथम नामित सदस्य डॉ. जाकिर हुसैन से लेकर वर्तमान के सभी नामित सदस्यों ने अपने-अपने क्षेत्र की विशेषज्ञता के कारण देश की समसामयिक समस्याओं और आवश्यकताओं की ओर संसद का समय-समय पर ध्यान आकृष्ट किया है।
प्रस्तुत पुस्तक की लेखिका का इस विषय को अधिक पुष्ट और विश्लेषित करके पाठकों, चिन्तकों और शोधार्थियों को उसे उपलब्ध कराये जाने का अच्छा प्रयास है।
लेखक परिचय
30 अक्टूबर 1963 को हरबर्टपुर, देहरादून (उत्तराखंड) में जन्म।
राजनीतिशास्त्र में एम.ए., डी. फिल. ।
प्रकाशन : रंग-बिरंगे बैलून (शिशु गीत); वैशाली के महावीर (बाल काव्य); गीत खिलौने (बाल गीत); नागफनी सदाबहार है (कविता संग्रह); दस लक्षण (दस रस वर्षण); अनाथ किसान (कहानी); कथासरिता कथासागर, गोबर बनाम गोबर्धन, जमालो का छुरा (कहानी); चहक भी जरूरी महक भी जरूरी (डॉ. शेरजंग गर्ग के साथ), वैशालिक की छाया में (राजेश जैन के साथ सम्पादन) ।
सम्मान/पुरस्कार : हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा बाल साहित्य सम्मान और बाल एवं किशोर साहित्य सम्मान।
आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों की प्रस्तुति। टी.वी. द्वारा स्वरचित व्यंग्य-विनोद के कार्यक्रम का धारावाहिक प्रसारण।
प्रस्तावना
प्रथम राज्यसभा में नामित सांसद रुक्मिणी देवी अरुंडेल ने पशुओं के प्रति बरती जा रही क्रूरता के खिलाफ आवाज उठायी और कालान्तर में यह कानून बन गया कि पशुओं के प्रति अत्याचार एवं क्रूरता के व्यवहार को खत्म किया जाना आवश्यक है, किन्तु कई दशकों से बारम्बार सिने तारिकाओं का, संगीत से जुड़ी हस्तियों का या सिनेजगत् के ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों का होता हुआ नामांकन संविधान द्वारा निश्चित एवं निर्धारित मनोनयन प्रक्रिया के प्रतिकूल जान पड़ता था।
राजनीति शास्त्र की विद्यार्थी रही हूँ मैं, कालान्तर में बढ़ती हुई जिज्ञासाएँ इस विषय के प्रतिपादन, विश्लेषण, आकलन, प्रक्रियागत खामियों एवं उपयोगिताओं के निष्पादन की ओर मुझे प्रवृत्त करने लगीं।
मनुष्य की जिज्ञासा ही वस्तुतः समस्त निर्माण की जननी है। जहाँ भी जो पुस्तक, समाचारपत्र, पत्र-पत्रिकाएँ या टेलीविजन आदि माध्यमों से मुझे नामांकित सदस्यों के बारे में जानकारी मिलती, मैं उसे अवश्य पढ़ती और देखती, किन्तु मन का वह हिस्सा अशान्त ही रहता कि क्या ये नामित सदस्य कुछ करते हैं या ज्यादातर इन्हें शोभास्वरूप प्रतिष्ठित किया जाता है। कभी-कभी इस विषय पर चर्चा भी हुई और जब लता मंगेशकर को नामांकित किया गया तथा उन्होंने कभी भी संसद सत्रों में भाग नहीं लिया, तब यह प्रश्न जैसे यह निष्कर्ष निकालने लगा कि नामांकन सत्तारूढ़ दल द्वारा पल्लवित पुष्पित एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें राष्ट्रपति भी साझीदार होता है और तब अधिकांश बहस इसी धारणा की प्रबल पक्षधर होने लगी।
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