एक कहावत है कि जैसा खाए अत्र वैसा होए मन। यह कहावत आज मात्र कहावत नहीं रह गई है बल्कि जीवन की हकीकत हो गई है क्योंकि भारी तादाद में स्त्री-पुरुप तथ्य से सहमति जताते हैं। इस विचार के मन में घर कर जाने पर डॉ० बेरनार्ड जेनसेन ने सर्वोत्तम पोषक आहार द्वारा स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की खोज में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। अनेक पुस्तकों के लेखक एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डॉ० जेनसेन ने खान-पान की आदतों में बदलाव के जरिए अच्छे स्वास्थ्य एवं जीवन-शैली को पाने की दिशा में मार्गदर्शन किया है। अस्सी वसंत देखने के बाद भी अपनी अवस्था से 20 वर्ष कम उम्र के लगने वाले डॉ० जेनसेन इस तथ्य के जीवित उदाहरण है कि कोई भी व्यक्ति अपने शारीरिक एवं मानसिक जीवन में किस प्रकार पूर्ण समरसता स्थापित कर सकता है। इतना ही नहीं व्यक्ति इसके अलावा अपनी खान-पान की आदतों में सुधार कर हमारे रोजाना के जीवन में व्याप्त तनाव को भी कम कर सकता है।
ब्रिटेन में फिजियोथेरेपिस्ट के प्रशिक्षण के उपरांत अपनी स्वयं की चिकित्सिय एवं पोषण संबंधी रथियों एवं अपने नेत्र चिकित्सक पति के व्यवसाय के कारण मैं नेत्र-पुतली विज्ञान की ओर आकर्षित हुई थी। इंसान की आँखें उसके शरीर के बारे में कितनी सारी जानकारी देती हैं, इससे प्रभावित होकर में डॉ० जेनसेन द्वारा अपनी पुस्तकों एवं गोष्ठियों में बताई गई विचार- धारा की ओर आकर्षित हुई। ऐसे ही एक सेमीनार के दौरान मुझे नेत्र-पुतली विज्ञान को आगे बढ़ाने में भारी योगदान देने वाले डॉ० जेनसेन के सहयोगी डॉ० डोनाल्ड बोडीन से मिलने का सौभाग्य मिला।
आज इस क्षेत्र में जितना सघन अनुसंधान तथा विश्लेषण का कार्य चल रहा है उसे देख में उम्मीद करती हूँ कि भविष्य में बेहतर स्वास्थ्य और जीवन-शैली के लिए आवश्यक शारीरिक व पोषण की हमारी समझ और भी गहरी होगी।
आयरिडोलोजी अर्थात नेत्र-पुतली विज्ञान अत्यंत रोमांचकारी है और अगर आपको रोमांच पसंद है तो आप इस पुस्तक को रोचक पाएंगे। इस विज्ञान का रोमांच इस विचार में छिपा है कि यदि पुतली की रचना व उसक रंग को देखने मात्र से मानव-देह के समूचे ऊतकों की हालत का अंदाजा हो सके तो हम लोगों के पास नैदानिक और प्रतिरोधात्मक औषधियों का आश्चर्यजनक संसार होगा। यदि यह बात सही है तो निश्चित ही आप जानना चाहेंगे कि अब तक इस विद्या ने स्वास्थ्यकर कलाओं की दुनिया में धमाका क्यों नहीं किया। यह पुस्तक आपको इसी क्यों का उत्तर देगी। अभी तक पुतली विज्ञान निद्रा में लीन था पर अब यह करवटें लेने लगा है।
वैसे पुतली-विज्ञान विवाद ग्रस्त भी है। किंतु जब आपको इसकी संरचना एवं पुतलियों से रोग निदान की क्रिया का ज्ञान हो जाएगा तो आप इसका दामन नहीं छोड़ पायेंगे। तब आप विवश होकर इसकी गहराई में जाएंगे और इसे दुत्कार भी सकते हैं या गले से लगा सकते हैं। मतलब मझधार में नहीं रहेंगे। अगर आयरिडोलोजी सच्ची है तो यह विस्मित या भौचक्का करने वाली नहीं सिद्ध होगी बल्कि इसकी विचारधारा का तार्किक पक्ष आज के पुरातनपंथी चिकित्सा-शास्त्रियों को इसके सिद्धांतों की पुनःसमीक्षा के लिए मजबूर होना पड़ेगा। किंतु अगर यह मिथ्या है तो यह राह से भटके ऐसे लोगों की देन होगी जिन्होंने अपने व्यावसायिक जीवन के बेहतरीन दिन इसकी सेवा में लगाए थे। मगर फिर भी यह एक तथ्य है कि पुतली-विज्ञान ऐसा नहीं है, वह निर्जीव नहीं है।
अगर आपके पास देखने के लिए आँखें हैं तो पुतली विज्ञान आपके लिए बना है। इसके लिए आपका न तो स्नातक होना जरूरी है और न हो स्वास्थ्य रक्षक पेशेवर। साथ ही आपका इसकी वैधानिकता व लाभों को समझने योग्य विशेषज्ञ भी होना जरूरी नहीं है। इस पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ कदम-कदम पर आपका मार्गदर्शन करेगा, बस आपके पास टार्च और मैग्नीफाईंग ग्लास होना चाहिए। तब आप न केवल दूसरों की बल्कि स्वयं की आँखों का निरीक्षण कर महत्वपूर्ण जानकारी हासिल कर सकेंगे। लेकिन प्राप्त जानकारियों का उपयोग कैसे करते हैं यह आरोग्य प्राप्ति में महत्वपूर्ण होगा। शीघ्र ही आप जान जाएंगे कि आपके नेत्र "आत्मा की खिड़की" मात्र नहीं हैं। इसलिए वक्त जाया न करें। आनंद लीजिए।
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