| Specifications |
| Publisher: Vishveshvaranand Vedic Research Institute, Hoshiarpur | |
| Author Bhadant Anand Kausalyayan | |
| Language: Pali Text with Hindi Translation | |
| Pages: 391 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 7x5 inch | |
| Weight 280 gm | |
| Edition: 1965 | |
| HBY427 |
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अनुराधपुर के यूपाराम विहार के विद्वान् भदन्ताचार्य मोग्गल्लान प्रथम पराक्रम बाहु के समय लंका में संघराज थे। उनकी शब्द-शास्त्र पर अपूर्व कृति पालि-व्याकरण है, जो आज उनके नाम से 'मोग्गल्लान-व्याकरण' के रूप में प्रसिद्ध है। इस व्याकरण का प्रधान भाग सूत्रग्रन्थ इस सूत्र ग्रन्थ के तीन परिशिष्ट ग्रन्थ है, जो छः काण्डों में विभक्त है। हैं-गणपाठ, सूत्रपाठ, ण्वादि ( उणादि) सूत्रवृत्ति । इस संपूर्ण सामग्री से सुसज्जित मोग्गल्लान-व्याकरण पालि-भाषा का पूरा चित्र उतारने का प्रयत्न करता है।
सभी पालि-वैयाकरण संस्कृत-वैयाकरणों के आभारी हैं-विशेष रूप से पाणिनि के । पालि में सूत्रों के मांजने-संवारने का ढंग उन्होंने संस्कृत वैयाकरणों से ही सीखा है। यह आभार कहीं-कहीं वे स्पष्ट-रूप से स्वीकार करते हैं। आचार्य मोग्गल्लान स्वयं एक स्थान पर (१-४७) पाणिनि के पृषोदरादिगण (६-३-१०९) का उल्लेख करते हैं।
व्याकरण में प्रधान कार्य आदेश, आगम तथा प्रत्यय-विधान हैं। आदेश कभी एकाल (एक वर्ण वाला) होता है और कभी अनेकाल् (अनेक वर्ण वाला)। एक वर्ण वाला आदेश जिस शब्द के स्थान में किया जाता है वह उस समूचे शब्द के स्थान में न होकर अन्त्य वर्ण के स्थान में होता है पर अनेक वर्ण वाला आदेश समूचे शब्द के स्थान में होता है। है। इसमें अपवाद हैं। अनेक वर्ण वाला आदेश भी कभी-कभी अंत्यवर्ण के स्थान में होता है तथा एक वर्ण वाला आदेश भी कभी-कभी समूचे शब्द के स्थान में होता है। इन अपवादों को सूत्र-भाषा में अनुबन्ध से प्रकट किया जाता है। पाणिनि ने अनेक वर्ण वाले आदेश का जहां अन्त्य वर्ण के स्थान में विधान किया है, वहां ङकारानुबन्ध से सूचित किया है। मोग्गल्लान ने भी यही ढंग अपनाया है। एक वर्ण वाले आदेश का जहां समूचे शब्द के स्थान में विधान है, वहां पाणिनि शकारानुबन्ध से, पर मोग्गल्लान टकारानुबन्ध से काम चलाते हैं।
आगम के, शब्द में तीन स्थान हैं आदि, अन्त तथा अन्त्य स्वर से "पूर्व । आगम अन्त में होगा, इसको पाणिनि ने ककारानुबन्ध से सूचित किया है तथा मोग्गल्लान ने वही राह अपनाई है। अन्त्य स्वर से पूर्व में होने वाले आगम का संकेत पाणिनि ने मकारानुबन्ध से किया है और मोग्गल्लान का भी वही मार्ग है। आगम शब्द के आदि में होगा, इसको पाणिनि ने टकारानुबन्ध से तथा मोग्गल्लान ने मकारानुवन्ध से सूचित किया है।
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