भारत का स्वतंत्रता संग्राम ब्रिटिश शासन के अन्याय, अत्याचार और शोषण के विरुद्ध एक क्रांति थी, जिसने व्यापक रूप से ब्रिटिश शासन का विरोध करते हुए अपनी आजादी के लिए प्राण-प्रण से संघर्ष किया, और अंततः उसमें सफलता प्राप्त की। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने सारी दुनिया को यह अहसास कराया कि, जब-जब विघटनकारी ताकतें अन्याय और शोषण के ज़रिए आम जनता का शोषण करेंगी तब-तब जनता जाग्रत होकर उनका प्रतिरोध करेगी। 1857 की क्रांति का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक स्थान है। 1857 की क्रांति के प्रधान कारण जो दिव्य तत्व थे, वे थे स्वधर्म व स्वराज्य। स्वधर्म प्रीति और स्वराज्य प्रीति के जो तत्व हिंदुस्तान के इतिहास में जितनी स्पष्टता एवं उदात्तता से मिलते हैं, उससे अधिक वे दुनिया के किसी भी देश के इतिहास में नहीं मिलते हैं।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम से पूर्व भारत वर्ष पर ब्रिटिश हुकूमत का प्रभावशाली दखल हो गया था, परंतु भारतवासियों ने उसे दिल से स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफत संपूर्ण देश में विभिन्न वर्गों, समुदायों और संगठनों के द्वारा अपने-अपने स्तर पर की जाती रही। बुंदेलखंड में 1857 के स्वाधीनता संग्राम से पूर्व ही ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध प्रतिरोध के स्वर प्रस्फुटित होने लगे थे। छतरपुर के ग्राम सूपा में आयोजित बुढ़वा मंगल सम्मेलन में बुंदेलखंड के 53 सामंतों, जागीरदारों, राजाओं और नरेशों ने एकजुट होकर बुंदेलखंड को ब्रिटिश दासता के चंगुल से मुक्त कराने का संकल्प लिया था। 1840 से 1842 के मध्य बुंदेला प्रतिरोध ने ब्रिटिश सरकार के अन्याय और शोषण का सशक्त प्रतिरोध करते हुए बुंदेलखंड की हर रियासत और जागीरों में ब्रिटिश सरकार का विरोध किया था।
बुंदेलखंड में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का प्रामाणिक विवरण तत्कालीन समय के अधिकारियों के परस्पर पत्र व्यवहार, रिपोर्टिंग तथा ए.जी.जी. गवर्नर जनरल को भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट में मिलता है। इसके साथ ही अधिकारियों की प्रतिदिन की कार्यवाही के विवरण में भी 1857 की घटनाओं का उल्लेख किया गया है। इन घटनाओं में क्रांतिकारियों के संघर्ष, ब्रिटिश फौजियों की तैयारियाँ एवं अन्य स्थानों पर क्रांतिकारियों तथा ब्रिटिश फौजों के बीच होने वाले युद्धों के साथ ही अंग्रेज अधिकारियों एवं गवर्नर जनरल के ए.जी.जी. के मध्य चलने वाली गोपनीय वार्ताओं एवं रिपोर्ट में तत्कालीन समय की घटनाओं को तिथिवार लिखा गया है। इसके साथ ही बुंदेलखंड के लोकगीतों, परंपराओं एवं आख्यानों में 1857 की घटनाओं को कवियों ने बड़े ही मार्मिक और सूझबूझ के साथ व्यक्त किया है। कई घटनाओं को कवियों ने विस्तार से अपने काव्य का विषय बनाया है, जिससे उस समय की स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं का प्रामाणिक विवरण प्राप्त होता है।
1857 की क्रांति का प्रचार प्रसार करने में और आम जनता में स्वतंत्रता की भावनाओं को जाग्रत करने में बुंदेलखंड के लोकगीतों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यद्यपि क्रांतिकारियों के प्रतिरोध को शीघ्रता से ब्रिटिश अधिकारियों ने दबा दिया, परंतु क्रांतिकारियों की आवाज की गूँज संपूर्ण भारत में सुनाई पड़ी, जिसने इस क्षेत्र के महत्व को प्रतिपादित किया। दरअसल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास इस क्षेत्र की माटी के लौह लाड़लों ने अपने जुझारु खत से लिखा है। बुंदेलखंड के स्वाधीनता संग्राम में पन्ना एवं छतरपुर जिले के स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण स्थान है। अभी तक इन जिलों के स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं पर विस्तृत और सूक्ष्म शोध कार्य नहीं हुआ। बुंदेलखंड के स्वाधीनता संग्राम में पन्ना एवं छतरपुर जिले की स्वाधीनता संग्राम की घटनाओं की क्रमबद्धता एवं प्रामाणिकता अभी तक स्पष्ट नहीं हो सकी थी। प्रस्तुत स्वाधीनता फैलोशिप के अंतर्गत किए गए शोध कार्य में यह प्रयास किया गया है कि, छतरपुर एवं पन्ना जिले के स्वाधीनता संग्राम की घटनाओं को क्रमबद्धता के साथ प्रामाणिक दस्तावेजों और प्राथमिक व मौलिक स्त्रोतों के ज़रिए स्पष्ट किया जा सके।
बुंदेलखंड के स्वाधीनता संग्राम में अनेक क्रांतिवीरों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों का सशक्त प्रतिरोध करते हुए हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को अपने गले से लगा लिया। बुंदेलखंड के छतरपुर जिले का चरण पादुका सम्मेलन अंग्रेजों की नृशंसता और क्रूरता का उदाहरण है, जिसने जलियांवाला बाग हत्याकांड को एक बार बुंदेलखंड में फिर से दोहराया। इस घटना ने समूचे बुंदेलखंड में जो जन आक्रोश उत्पन्न किया उसने ब्रिटिश सरकार की नींव हिला कर रख दी। छतरपुर एवं पन्ना जिले के हज़ारों क्रांतिवीरों ने सरकार का प्रतिरोध अपने-अपने गाँव कस्बों और रियासतों में किया। तत्कालीन रियासतों के शासकों ने अंग्रेज सरकार का साथ दिया लेकिन भीतर ही भीतर वह जनता का समर्थन करते रहे। छतरपुर एवं पन्ना जिले के स्वतंत्रता संग्राम के सभी नामों का उल्लेख इतिहास में दर्ज नहीं है, लेकिन यह सच है कि उनकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं गई। इतिहास की मुख्यधारा में केवल कुछ क्रांतिकारियों को ही स्थान मिल सका है, और हज़ारों क्रांतिकारी अभी भी गुमनामी के अंधेरे में लुप्तप्राय हैं।
प्रस्तुत शोध कार्य में पन्ना एवं छतरपुर के स्वाधीनता सेनानियों की प्रामाणिक सूची के साथ सभी का विवरण प्रस्तुत किया गया है, जो प्राथमिक स्त्रोतों से संकलित किये गये हैं। इसके साथ ही लोक परंपराओं और जनजीवन में प्रचलित स्वतंत्रता सेनानियों के नामों को भी शामिल किया गया है। इन विस्मृत स्वतंत्रता सेनानियों को प्रकाश में लाना तथा उनके स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए योगदान का तथ्यपूर्ण एवं प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत करना प्रस्तुत शोध कार्य का उद्देश्य है। शोध कार्य में प्रामाणिक पांडुलिपियों और दस्तावेजो के ज़रिए पन्ना एवं छतरपुर जिले की सन् 1857 से 1947 तक की विभिन्न घटनाओं का तथ्यात्मक विवरण प्रस्तुत करने के साथ ही व्यक्तिगत संपर्क करते हुए अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों से साक्षात्कार द्वारा उनके बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हुए स्वतंत्रता सेनानियों और उनके कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
स्वराज संस्थान द्वारा प्रदत्त स्वाधीनता फैलोशिप के अंतर्गत पन्ना एवं छतरपुर जिले पर विस्तृत, व्यापक एवं सूक्ष्म शोध कार्य के जरिए ऐसे अनेक तथ्यों को शामिल किया गया है, जो अभी तक प्रकाश में नहीं आए हैं। शोध कार्य का उद्देश्य पन्ना एवं छतरपुर जिले के बिखरे हुए स्वाधीनता संग्राम के कार्य को प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करना है, और इतिहास शोध को नवीन दिशा प्रदान करना है। आशा है इस शोध कार्य से शोधार्थियों एवं इतिहासविदों को उन विस्मृत स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में व्यापक और तथ्यपरक जानकारी मिल सकेगी तथा नवीन शोध कार्यों को गति प्रदान हो सकेगी, जिन पर अभी तक शोध कार्य नहीं हुए हैं।
इस शोध कार्य को पूर्ण करने में पूर्ववर्ती शोध कार्यों को दृष्टिगत रखते हुए उनके उद्धरण देकर उनका संदर्भ दिया गया है। राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली, राज्य अभिलेखागार भोपाल में संग्रहित अप्रकाशित शोध सामग्री से तथ्यों को संकलित किया गया है और इस क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर प्रकाशित साहित्य, समाचार पत्र-पत्रिकाओं तथा जन सामान्य में प्रचलित लोक गीतों में दिए गए विवरणों को भी शामिल किया गया है।
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