स्वातंत्र्योत्तर काल में हिन्दी व्यंग्य लेखन काफी उद्देश्यपूर्ण सिद्ध हो रहा है। व्यंग्य का सीधा सम्बन्ध मानव जीवन की किसी न किसी विकृति से होता है। विद्यार्थी काल में हरिशंकर परसाई रचित 'भोलाराम का जीव', वैष्णव की फिसलन' जैसी रचनाएँ पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ था। इन रचनाओं ने मुझे काफी प्रभावित किया था। कॉलेज के अध्ययन के दौरान भी हरिशंकर परसाई कृत व्यंग्य रचनाएँ पढ़ने का मौका मिला। सद्-भाग्य से मेरे मार्गदर्शक डॉ. भरतभाई पटेल साहब ने कॉलेज की पढ़ाई के अंतर्गत हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाएँ इतने प्रभावी ढंग से पढ़ाई थीं कि व्यंग्य साहित्य के प्रति मेरी रुचि बढ़ना स्वाभाविक ही था।
बी. ए. के बाद मैंने बी. एड. की तालीम प्राप्त की और उसके बाद मैंने एम. ए. की उपाधि आर्ट्स कॉलेज विजयनगर से पूर्ण की। वहाँ से उच्च अभ्यास के लिए मैंने हेमचंद्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय में एम. फिल. का पंजीकरण करके दाखिला लिया। एम. फिल. के शोधकार्य को सफल बनाने के लिए मैंने आर्ट्स कॉलेज विजयनगर के ग्रंथालय का भरपूर लाभ उठाया। इसी के साथ कॉलेज के मेरे गुरुवर डॉ. भरतभाई पटेल साहब का भी पूरा मार्गदर्शन मिलता रहा। एम. फिल. की उपाधि प्राप्त करने के बाद मुझे मेरे गुरुवर एवं मित्रों ने पी-एच. डी. के लिए मार्गदर्शन दिया और मैंने हेमचंद्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय, पाटण में पी-एच. डी. प्रवेश के लिए आवेदन किया। मुझे इसी विश्वविद्यालय में प्रवेश मिलने से मैं उत्साहित हुआ और मेरा यह स्वप्न हकीकत में बदल गया। मैं एक नए विषय को लेकर शोध कार्य करने की सोच रहा था। कुछ विचार विमर्श के बाद मैंने अपने श्रद्धेय गुरुवर्य डॉ. भरतभाई पटेल साहब से परामर्श किया और उन्होंने मुझे श्रीलाल शुक्ल के व्यंग्य साहित्य पर शोध कार्य करने का सुझाव दिया।
श्रीलाल शुक्ल के व्यंग्य साहित्य पर किसी ने शोध कार्य किया है या नहीं उसकी छानबीन के बाद पता चला कि हेमचंद्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय में किसी ने इस विषय पर शोध कार्य नहीं किया है। अंततः पी-एच.डी. की उपाधि हेतु विषय चयन हुआ 'स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी व्यंग्य साहित्य और व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल ।
गुरुवर डॉ. भरतभाई पटेल साहब के मार्गदर्शन में इस विषय का पंजीकरण हेमचंद्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय, पाटण में किया। शोध-प्रबंध के प्रारम्भिक कार्य के लिए जैसे जैसे विषय के गहराई में उतरते गये वैसे विषय विवेचन के लिए कुछ मुद्दे स्पष्ट होते गये। अतः प्रस्तुत शोध-प्रबंध को मैंने छः अध्याय में विभक्त किया है ताकि मूल्यांकन सुव्यवस्थित हो सके।
श्रीलाल शुक्ल जी स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी व्यंग्य साहित्य के प्रमुख व्यंग्यकार हैं। उन्होंने अपने आसपास में फैली विसंगतियों को अपने व्यंग्य का आधार बनाया है। वे जिन स्थितियों से गुजरते थे उनमें व्याप्त विद्रूपताओं एवं विसंगतियों तथा कमजोरियों को उनकी पैनी नजर तुरंत ही समझ लेती थी। यही कारण है कि उन्होंने स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज में व्याप्त विसंगतियों पर भरपूर प्रहार किया है। उनकी इसी विशिष्ट शैली के कारण श्रीलाल शुक्ल स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी के प्रमुख व्यंग्यकारों में से एक हैं।
मैंने प्रस्तुत शोध-प्रबंध में श्रीलाल शुक्ल जी रचित व्यंग्य रचनाओं में प्रयुक्त व्यंग्य के विभिन्न रूप, कथ्य एवं शिल्प का विवेचन विश्लेषण तथा मूल्यांकन करने का प्रयास किया है।
प्रथम अध्याय में 'स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी व्यंग्य साहित्य की विकास-यात्रा' के अंतर्गत 'व्यंग्य' शब्द की व्युत्पत्ति को प्रस्तुत करते हुए उसके शाब्दिक अर्थ पर विचार किया है। वर्तमान हिन्दी साहित्य में प्रचलित व्यंग्य शब्द का सम्बन्ध अँग्रेजी शब्द 'सटायर' से जुड़ा हुआ है। व्यंग्य शब्द की व्युत्पत्ति वि+अंग से हुई है। 'वि का अर्थ है विकृत या विरूप अर्थात विकृति या विरूपण व्यंग्य के कारक तत्व हैं। आज व्यंग्य शब्द जिस अर्थ में प्रयुक्त होता है उसमें संस्कृत की व्यंजना के साथ अँग्रेजी 'सटायर' का अर्थ एवं उद्देश्य समाविष्ट है। मानविकी पारिभाषिक कोश में 'सटायर' शब्द को व्यंग्य का अर्थ देते हुए कहा गया है कि उसका लक्ष्य मानवीय दुर्बलताओं पर कटाक्ष करके उसे उभारना और सुधारना होता है। साहित्य में व्यंग्य का क्या महत्त्व है? आखिर व्यंग्य क्या है ? व्यंग्य विधा है या शैली? आदि प्रश्नों पर पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वानों द्वारा दिए गये अभिप्रायों का अध्ययन प्रस्तुत अध्याय में किया है।
भारत देश के स्वतंत्र होने के साथ ही राजनीति, समाज, धर्म, शिक्षा आदि क्षेत्रों में भ्रष्टाचार, अन्याय, शोषण, पाखण्ड, दोगलापन, नीतिहीनता, अत्याचार आदि अनेकानेक विसंगतियाँ और विकृतियाँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही चली गई। कहा जाता है कि साहित्य में समाज का प्रतिबिम्ब होता है। हिन्दी व्यंग्यकारों ने अपना कर्तव्य निभाते हुए व्यंग्य के माध्यम से इन विकृतियों, विसंगतियों का पर्दाफाश किया है। आज व्यंग्य विधा को अलग पहचान दिलानेवाले व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई, श्रीलाल शुक्ल, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी, नरेन्द्र कोहली. डॉ. शंकर पुणताम्बेकर, लतीफ घोधी, के. पी. सक्सेना, सुदर्शन मजीठिया, डॉ. बरसानेलाल चतुर्वेदी, डॉ. बालेन्दुशेखर तिवारी, केशवचंद्र वर्मा, शेरजंग गर्ग, प्रेम जनमेजय आदि व्यंग्यकारों का संक्षिप्त परिचय देने का प्रयास किया है।
द्वितीय अध्याय में श्रीलाल शुक्ल के जन्म, पारिवारिक जीवन, शिक्षा, वैवाहिक जीवन, आजीविका आदि का परिचय देते हुए व्यक्तित्व की विशिष्टताओं को उजागर करने का प्रयत्न किया है। साथ ही साहित्य सर्जन में प्रवेश और विविध व्यवसायिक क्षेत्र में हुई प्रगति तथा उनके कृतित्व का संक्षिप्त परिचय देने का प्रयास किया है।
तृतीय अध्याय में शुक्ल जी के राजनीतिक व्यंग्य पर विचार किया है। शुक्ल जी ने अधिकतर व्यंग्य राजनीतिक तथा प्रशासनिक व्यवस्था पर किया है। उन्होंने व्यंग्य के माध्यम से तत्कालीन राजनीतिक चेहरे को बुरी तरह से नोच लिया है।
राजनीति शब्द का अर्थ प्रस्तुत किया है राजनीति शब्द यूनानी भाषा के च्वसपे और च्वसपजमपं शब्द का पर्याय है। इन शब्दों का मुख्य अर्थ है 'नगर राज्य' । राजनीति विज्ञान के महापंडित ने भी अपने ग्रन्थ का नाम च्वसपजपबे रखा। अरस्तु ने पोलिटिक्स का प्रयोग नगर राज्य के नागरिक जीवन का अध्ययन करने के उद्देश्य से किया था। प्राचीन काल से ही भारत की विशेषता रही 'एकता में अनेकता। शुक्ल जी के व्यंग्य साहित्य में राजनीतिक व्यंग्य के तहत राजनीतिक परिवेश, साम्प्रदायिकता, कानून-व्यवस्था, नौकरशाही प्रवृत्ति आदि का विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
चतुर्थ अध्याय में शुक्ल जी रचित सामाजिक व्यंग्य का अध्ययन किया है। साहित्य मानवीय चेतना की अभिव्यक्ति है। किसी काल विशेष की जानकारी उसकी सामाजिकता पर निर्भर कराती है। किसी भी राष्ट्र और देश निर्माण हेतु सामाजिक कर्मकाण्डों का विशेष योगदान रहा है। शुक्ल जी ने सामाजिक कुप्रथा, पाप-पुण्य का हस्तक्षेप, स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, दहेज़ प्रथा, अशिक्षा, पारिवारिक विघटन, मानसिक तनाव, किसानी समस्या आदि पर व्यंग्यात्मक रूप से प्रहार किया है।
श्रीलाल शुक्ल जी के व्यंग्य में नारी समस्याओं पर, बेरोजगारों की समस्या, जातिवाद की समस्या आदि पर व्यंग्य किया है। इस अध्याय में शुक्ल जी की व्यंग्य रचनाओं में निरूपित समाज की विभिन्न विसंगतियों और व्यंग्य प्रहार का अनुशीलन किया है।
पंचम् अध्याय में शुक्ल जी के व्यंग्य साहित्य में सांस्कृतिक व्यंग्य के तहत विभिन्न धर्म, कला, शिक्षा, साहित्य, संस्कार, विचार आदि का विश्लेषण करने का प्रयास किया है। क्योंकि किसी भी देश के लिए संस्कृति के अंतर्गत साहित्य और कला का सन्दर्भ महत्वपूर्ण है।
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