आधुनिक गद्य लेखकों में गम्भीर दार्शनिक तथा अध्यात्म को आधार मानकर नवीनतम शैली में मौलिक रचनाएं सूजन करने वाले लेखकों में डा० जे० पी० जौहरी ने अपनी अलग पहचान बनाई है।
आज के प्रमुख गद्य लेखकों में उनका अलग उच्च स्थान है। विश्व-ज्योति के माध्यम से उनके अनेक लेख तथा कहानियां प्रकाशित हुई हैं जिन्होंने बुद्धजीवी वर्ग का ध्यान आकषित किया है। वे सरल, सहज सरस शैली में भारतीय चिन्तन को परम्परा जीवित रखे हुए हैं। दार्शनिक चिन्तन को आधार मानकर अनेक लेख इतने गम्भीर हैं कि सामान्य पाठक उनका अर्थ समझ नहीं पाते। पाठक थोड़ा-सा पढ़कर उन्हें छोड़ देता है। डा० जौहरी ने इस कमी को दूर कर हर वर्ग के पाठक को समझने की सरल शैली में जे० कृष्णमूर्ति जैसे गम्भीर दार्शनिक को जनता के लिये सहज बनाया है। वे जे० कृष्णमूर्ति की विचारधारा को भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने भारतीय चिन्तन को नई दिशा दी है। आधुनिक दार्शनिक लेखकों में मौलिक पहचान बनाई है। चिन्तन को एक सरल सहज रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। गम्भीर चिन्तन को आधुनिक पाठकों के अनुरूप बनाया है। शुष्क चिन्तन को सामान्य पाठक के लिये बोधगम्य बनाया है।
प्रसिद्ध चिन्तक जे० कृष्णमूर्ति भाग्न के लिये नये नहीं हैं। विचारों की भीड़ में वे एक क्रान्तिकारी हैं। उन्होंने भारतीय चिन्तन को एक नयी दिशा दी है, अपनी पृथक् पहचान बनाई है। खेद है कि जनता में अभी तक इनकी विचारधारा का इतना प्रसार नहीं हुआ था जितना वस्तुतः होना चाहिये था। कारण, उसे भारतीय लेखकों ने सामान्य पाठक के लिये सहज सरल नहीं बनाया था। शायद यह इतना जटिल नहीं था जितना लोग समझते हैं। किसी अन्य लेखक ने उसे पचा कर प्रस्तुत करने की हिम्मत नहीं की। डा० जौहरी ने इस कठिन कार्य को सफलता से सम्हाला है और आधार मानकर मौलिक साहित्य की रचना की है। डा० जौहरी की मौलिक रचनाओं में वे सबके लिये सहज रूप में आ गये हैं। वे जे० कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं को भारतीय पाठकों तक पहुंचाने में सफल हुए हैं।
जब से उनके लेख विश्व-ज्योति में प्रकाशित हुए हैं तब से पाठकों की रुचि और जिज्ञासा उनकी ओर बढ़ी है। पाठकों की मांग थी कि उनके समस्त लेखों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाय जिससे वे उन्हें बार-बार पढ़कर स्थायीरूप से लाभ उठा सकें। मेरे विशेष आग्रह पर यह लेख एकत्रित हुए और हर्ष का विषय है कि ये पाठकों के लिये स्थायी लाभ के लिये एकत्रित हुए हैं। ये लेख एक बार पढ़कर रख देने योग्य न होकर वार-बार पढ़ने और चिन्तन करने के लिये हैं। एक अंग्रेजी लेखक के शब्दों में to be chewed and digested (सब चबाकर पचाने के लिये आवश्यक हैं) स्वयं हमने इनसे बहुत नयी जानकारी प्राप्त की है। हमें आशा है कि स्थाश्री गद्य-साहित्य सृजन की दिशा में यह प्रयत्न अपनी पहचान कायम रखेगा। डा० जौहरी ने एक भी शब्द सारहीन नहीं लिखा है। प्रत्येक शब्द का महत्व है। व्यर्थ लेखों की आदत उनमें नहीं है। वे साररूप ही शब्द चयन करते हैं।
दार्शनिक जब साहित्य लिखता है तब वह हाड़-मांस का आदमी नहीं होता अपितु अपने युग की सम्पूर्ण संवेदना होता है। ऐसे ही हैं डा० जौहरी और उनका लेखन । प्रतिक्षण बदलते हुए परिप्रेक्ष्य में अपनी एक स्थायी तस्वीर आंक देना साधारण बात नहीं है। डा० जौहरी ने इसी असाधारण को साधा है। उनके अनुभवों को प्रदीप्त वाणी मिली है। शैली सधी हुई और मधुर है जिसका उद्गम छिछले स्तर पर नहीं, दूरदर्शी गहराइयों में है। मानव हित के प्रति सहज निष्ठा और साधना के प्रति प्रकृतिम आस्था ।
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