| Specifications |
| Publisher: Chintan Prakashan, Kanpur | |
| Author Shaileja Bhardwaj | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 79 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x6 inch | |
| Weight 210 gm | |
| Edition: 2011 | |
| ISBN: 978818857345 | |
| HBM369 |
| Delivery and Return Policies |
| Usually ships in 7 days | |
| Returns and Exchanges accepted within 7 days | |
| Free Delivery |
हिन्दी का नाट्य साहित्य 17वीं-19वीं शताब्दी से प्रारम्भ होता हुआ आज अपने रंगमंचीय शिल्प से जुड़कर एक परिपक्व विधा के रूप में विकसित हो चुका है। भारतेन्दु युग ने जहाँ हिंदी नाट्य विधा को मनोरंजन के साथ जनमानस की जागृति का उद्देश्य पूर्ण किया वहीं प्रसाद जी ने नाट्य विधा को एक उत्कृष्टता एवं गरिमा प्रदान की। यद्यपि प्रसाद जी के नाटकों के साथ रंगमंचीयता का प्रश्न अकसर उठता रहता है, लेकिन प्रसाद जी के नाटकों में छुपी नाटकीयता, जो किसी भी रंगमंच के लिये आवश्यक तत्व है, उससे इन्कार नहीं किया जा सकता। तत्कालीन रंगमंच अपनी अपरिपक्वता के कारण भले ही सक्षम न रहा हो लेकिन प्रसाद जी के नाटकों का विशिष्ट स्तर एवं उद्देश्य की सार्वकालिक प्रासंगिकता हिंदी नाट्य जगत के लिये एक उपलब्धि है।
प्रसादजी की कठिनाई यह थी कि वे जिस प्रकार का नाटक लिखना चाहते थे उसके अनुरूप रंगमंच हिंदी में नहीं था। पारसी रंगमंच सस्ती जनरुचि का पोषक था, अतः प्रसाद के लिये उसे अपनाने का प्रश्न नहीं था। उधर हिंदी का शौकिया रंगमंच नितांत अविकसित था। फलतः प्रसाद ने साहित्यिक रंगमंच की स्वयं कल्पना की और इस मानसिक रंगमंच की पृष्ठभूमि में ही अपने नाटक लिखे।
आज इतिहास पुराण के माध्यम से नये सन्दर्भों का वाणी देना एक सशक्त टूल बन गया है जबकि प्रसाद जी ने 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में ही इतिहास और पुराण का प्रयोग समकालीन संदर्भों और युग बोध को वाणी देने एवं समाधान प्रस्तुत करने के लिये किया। शिल्प के धरातल पर भी भारतीय एवं पाश्चात्य नाट्य पद्धतियों का समन्वय, भव्य कथानक एवं काव्यात्मक स्वरूप एक अभिनव प्रयोग की दिशा का प्रणयन करता है।
कथ्य की दृष्टि से, तत्कालीन परिस्थितियों में भारतीय जनमानस के सामने अपने प्राचीन गौरव के साथ-साथ राष्ट्रीय ऐक्य की दिशा में समाधान की दृष्टि से 'चन्द्रगुप्त' नाटक अपना विशिष्ट स्थान रखता है।
संस्कृति और इतिहास का भव्य चित्र' चन्द्रगुप्त' नाटक में उजागर हुआ है। इतिहास की श्रम साध्य खोजों के द्वारा 'चन्द्रगुप्त' नाटक मौर्य युग की अनेक भ्रांतियाँ भी दूर करता है। चाणक्य जो जनमानस की चेतना में एक मिथकीय प्रभाव लिये हुए है, इस नाटक को सशक्त और नाटकीय आकर्षण से विशिष्टता प्रदान करता है।
इस पुस्तक में 'चन्द्रगुप्त' नाटक के विविध पहलुओं को समीक्षात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करने का एक तुच्छ प्रयास है जो विद्यार्थियों के लिये विशेष रूप से सहायक हो, इसकी आकांक्षा है।
Send as free online greeting card
Visual Search