मुझे उचित प्रतीत हो रहा है कि इस उपन्यास के जन्म के बारे में पाठकों को बताऊँ। रति से कोई परिचय नहीं था रति के जीवन के अभिन्न अंग हिन्दुस्तान के बँटवारे के मुख्य दोषी मुहम्मद अली जिन्ना को जानने की कोई इच्छा भी कभी उत्पन्न नहीं हुई। नफरत का दंश झेल रहे जिन्ना के बारे में एक पुस्तक के कुछ अंश पढ़ने पर जिज्ञासा जागी। न्यायमूर्ति चागला के संस्मरण 'रोजेज इन दिसम्बर' के इन अंशों में जिन्ना कम रति ज़्यादा थी। तो रति से यह पहली बहुत छोटी सी मुलाक़ात थी। इस अंश को पढ़कर मेरा आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक था। मैं उस पीढ़ी के बाद का हूँ जिसने जिन्ना की राजनीति को देखा था। मेरे लिए तो जिन्ना घोर मजहबी दकियानूसी मुसलमान और भारत विरोधी राजनीतिज्ञ था जिसके बारे में जानने के लिए शायद कुछ भी दिलचस्प नहीं था। चागला की पुस्तक से मेरी धारणा में कुछ दरार पड़ी। अब मुझे इस व्यक्ति में कुछ दिलचस्पी हुई। जिन्ना में कुछ कम रति में कुछ ज्यादा। रति के बारे में पुस्तकें खंगाली तो गहरा शून्य हाथ लगा। जिन्ना के बारे में राजनैतिक रूप से तो बहुत कुछ उपलब्ध था विशेष रूप से स्टैनली वोलपर्ट द्वारा लिखी उसकी जीवनी। यद्यपि इस में भी जिन्ना का राजनैतिक जीवन ही प्रमुख है। पर व्यक्तिगत जीवन की कुछ प्रमुख घटनाएँ भी हैं। जिन्ना के जन्म से लेकर जब तक उसका साथ रति के साथ रहा, यह सब पढ़कर कितने ही भ्रम टूटे। इस पुस्तक के पढ़ने के बाद रति से जान पहचान कुछ और गहरी हुई। रति मेरे मानसपटल पर छा गयी। इन स्थितियों में कितनी ही बार रति ने कल्पना में आकर पूछा- मेरी कहानी नहीं लिखोगे ? इतिहास के पन्नों से मेरी जीवनकथा यों ही भुला दी जाएगी? मैंने वचन दिया ऐसा नहीं होगा तुम्हारी जीवनी लिखने का जिम्मा मेरा रहा।
वादा करना एक बात है वादे को मूर्त रूप देना दूसरी, रति की कहानी लिखना बेहद दुश्वार था। रति के बारे में जिन्ना ने कभी कुछ नहीं लिखा। रति की बात तो अलग जिन्ना ने अपने बारे में ही कभी कुछ नहीं लिखा। कोई संस्मरण नहीं। जिन्ना तो छोड़िए जिन्ना के मित्रों, परिचितों या सगे सम्बन्धियों ने भी जिन्ना या रति के बारे में कभी कुछ नहीं लिखा (अपवाद: फातिमा जिन्ना के द्वारा लिखा एक ग्रन्थ My Brother) । एक तरह से जिन्ना का जीवन एक सख़्त जिल्द वाली किताब में कैद है जिसे न खुलने वाले धागे से बाँध दिया गया। रति ने भी अपने बारे में कभी कुछ नहीं लिखा। न उसके सम्बन्धियों, मित्रों, परिचितों ने ही उसके बारे में कुछ लिखा। रति के केवल एक मित्र श्री कानजी द्वारिकादास ने रति पर एक छोटी पुस्तक लिखी। इस पुस्तक के लगभग आधे भाग में तो कानजी स्वयं है पर शेष जितने भाग में भी रति है वो महत्त्वपूर्ण है सार्थक और दुर्लभ है। दूसरे व्यक्ति हैं चागला, इन दोनों ने रति के बारे में जो कुछ लिखा वह पूर्णतः विश्वसनीय है। मेरे लिए यही दो ग्रन्थ प्रकाश स्तंभ थे। अन्य ग्रन्थों से बहुत अल्प सूचनाएँ मिलीं पर मेरे लिए सभी महत्त्वपूर्ण थीं। रति के परिवार के इतिहास से सम्बन्धित दुर्लभ पुस्तक इंडिया इंटरनेशनल सेंटर नई दिल्ली के पुस्तकालय में मिली। रति के अन्तरंग जीवन के कितने ही पक्ष अब भी अँधेरे में थे। मैं उन सब की तलाश में था। इस तलाश में जवाहर लाल नेहरू स्मारक पुस्तकालय पहुँचा वहाँ रति के लिखे चार पत्र मिले। मैंने सोचा इन चार पत्रों को तो मैं बाद में भी शामिल कर लूँगा। उस समय पत्रों को देखने की जहमत भी मैंने नहीं उठाई।
मुम्बई (बम्बई) तो देखा भाला था, लेकिन मुम्बई में जिन्ना का साउथ कोर्ट और पेटिट परिवार का पेटिट हाउस देखने के लिए मुम्बई का दौरा एक बार फिर किया। इस उपन्यास के लिए गुजरात की यात्रा की जिन्ना के पिता और पितामह से जुड़े स्थान पनेली और गोंडल गया। पनेली कस्बे के निवासियों ने वह घर भी दिखाया जहाँ कभी जिन्ना के पितामह रहते थे। नैनीताल, दार्जिलिंग, दिल्ली और इलाहाबाद तो मेरे अच्छी तरह देखेभाले शहर रहे हैं। इस सारी खोजबीन में लगभग पाँच छः वर्ष लग गये। शोध अधूरी थी इस कारण करीब दो वर्ष के लिए मैंने सारे नोट्स ताक पर रख दिए। परन्तु दो वर्ष बाद भी में वहीं था, जहाँ दो वर्ष पहले। तब रति ने कहा तुम शुरू तो करो, मैं तुम्हें अपने बारे में सब बताती चलूँगी। दो हजार सोलह की जनवरी से मैंने यह उपन्यास लिखना प्रारम्भ किया। उन्नीस बीस महीनों के अथक परिश्रम के बाद रति की कहानी पूरी हो गयी। अब मैंने एक बार फिर जवाहरलाल नेहरू स्मारक पुस्तकालय का रुख किया इस बार ज़्यादा गंभीरता से खोजबीन की तो चार की बजाय चालीस से अधिक रति के लिखे पत्र वहाँ मिले। ये पत्र क्या थे कारू का खजाना थे। रति के जीवन के कितने ही अँधेरे पक्ष प्रकाशवान हो उठे। कुछ और महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ भी इसी पुस्तकालय के कुछ ग्रन्थों से मिलीं। अब बात बन गयी। रति ने अपना कहा सच कर दिखाया था। पाँच छः महीने और लगे और नई सूचनाओं के साथ उपन्यास सम्पूर्ण हो गया।
रति की जीवनी अपने अंक में समेटे यह उपन्यास है इतिहास नहीं पर रति अपने दौर के इतिहास का अंग थी। इसलिए इतिहास के सुदृढ़ ताने बाने के साथ बुना गया यह ऐसा उपन्यास है जिसमें सारे ऐतिहासिक सन्दर्भ और चरित्र सत्य और ठोस धरातल पर हैं। ऐतिहासिक नायकों के विचार और उद्बोधन पूरी सावधानी के साथ प्रामाणिक रूप से उद्धृत किये गये हैं, केवल चार छः काल्पनिक चरित्र अपवाद भर हैं। इसके बावजूद इस जीवनी को उपन्यास भर ही माना जाए।
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