हठयोग जो कि प्राचीन काल से एक विशिष्ट आध्यात्मिक, छवि को बनाये हुए है. हठयोग चित्त वृत्तियों के प्रवाह को संसार की ओर जाने से रोककर अन्तर्मुखी करने की एक प्राचीन भारतीय साधना पद्धति है। हठयोग इसका प्रमुख ग्रन्ध है। हठयोग साधना की मुख्य धारा शैव रही है। यह सिद्धों के बाद नाथों के द्वारा अपनाया गया।
1. हठयोग प्रदीपिका में स्वामी स्वात्माराम जी ने हठयोग एवं राजयोग दोनों का मार्ग एक ही बताया है। दोनों अन्योन्याश्रित है, हठप्रदीपिका समाज को एक अद्भुत साहसिक देन है।
2. घेरण्ड संहिता में महर्षि घेरण्ड ने सप्त साधन योग की सघन व्याख्या की है।
3. सिद्ध सिद्धान्त पद्धति में श्री गोरक्षनाथ जी ने पिण्ड उत्पति, पिण्ड विचार और पिण्ड ज्ञान का विवरणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है।
4. शिवसंहिता में भगवान् शिव के द्वारा की गयी योग चर्चा को विचारपूर्ण दृष्टि से प्रस्तुत किया है।
अतः हठप्रदीपिका, घेरण्ड संहिता, सिद्धसिद्धान्त, शिवसंहिता के संयुक्त संस्करण की आवश्यकता मुख्य रूप से अध्ययनकर्ताओं में सम्पूर्ण ज्ञान को संक्षिप्त रूप में कराने के लिए अपेक्षित थी।
अतः प्रस्तुत पुस्तक में स्वामी स्वात्माराम कृत हठप्रदीपिका जिनमें उन्होने आसनों, प्राणायामों मुद्रा एवं बन्धों, नादयोग, समाधि के विषय की व्याख्या की है। जिसकी वर्तमान समय में चिकित्सा के क्षेत्र में, मानव के व्यक्तित्व के विकास हेतु अत्यन्त आवश्यकता है। वहीं दूसरा संकलन घेरण्ड सहिता से है जिसमें महर्षि घेरण्ड ने मुख्य रूप से सप्त साधन समेत शरीर की शुद्धि करण क्रिया की व्याख्या की है तथा तृतीय संकलन सिद्धसिद्धान्त पद्धति में श्री गोरक्षनाथ जी ने योगशास्त्र एवं योगविद्या को दुर्लभ ग्रन्थ बताते हुए देह में प्राण तत्त्व की व्यापकता और पिण्ड शरीर की उत्पत्ति, पिण्ड विचार, पिण्ड के विषय में सही ज्ञान इत्यादि विषयों पर व्यापक प्रकाश डाला है।
और अंतिम व चतुर्थ संकलन में शिव संहिता में कुण्डलिनी जगाने हेतु वाग्बीज, कामबीज तथा शक्ति बीज इन तीन मंत्रों की चर्चा की है।
अतः हठयोग के सिद्धान्त को सम्पूर्ण रूप से पढ़ लेने के उपरान्त हम पाएंगे कि हठप्रदीपिका, घेरण्ड संहिता, सिद्धसिद्धान्तपद्धति तथा शिवसंहिता कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी रूप से एक-दूसरे से सम्बन्धित है, जिस प्रकार हठप्रदीपिका में आसन, प्राणायाम, मुद्रा एवं बन्ध आदि को समझाया है, जिनके द्वारा अनेकानेक रोगों से मुक्त होने में सफलता मिलती है तथा घेरण्ड संहिता में सप्त साधन, शुद्धिकरण क्रिया और सिद्धसिद्धान्त पद्धति में प्राण तत्त्वों व पिण्ड उत्पत्ति तथा शिवसंहिता में कुण्डलिनी जाग्रत हेतु वाग्बीज, कामबीज तथा शक्तिबीज को समझाया है।
अतः उक्त सभी ग्रंथों का सार एक-दूसरे से संबंधित है, अतः एक सारगर्भित अध्ययन हेतु हठयोग के सिद्धान्त पुस्तक की आवश्यकता महसूस की गई।
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