महाकवि चन्दबरदाई-कृत पृथ्वीराज रासो हिन्दी साहित्य का आदि महाकाव्य है। पद्मावती-समय उसी का एक रम्य और रोचक अंश है। रासो की भाषा शैली, भाव-व्यंजना और कवित्व आदि से परिचय प्राप्त करने के लिए यह एक अत्यन्त उपयोगी और महत्त्वत्मय 'समय' है। अपनी इस उपादेयता के कारण पद्मावती-समय अनेक विश्वविद्यालयों में हिन्दी की एम०ए० परीक्षा के पाठ्यक्रम में निर्धारित है। किन्तु खेद है कि अभी तक इसका कोई शुद्ध, प्रामाणिक और सटीक संस्करण नहीं हुआ था। वैसे तो संक्षिप्त टिप्पणियों एवं भूमिका. से युक्त इसके तीन-चार संस्करण निकल चुके हैं, परन्तु उनमें न तो यथार्थ पाठ की ओर उचित ध्यान दिया गया है और न अर्थ के स्पष्टीकरण की ओर ही विशेष रुचि दिखाई गई है। उदाहरण के लिए सभी संस्करणों में निम्नलिखित पंक्ति का पाठ इस प्रकार दिया गया है छत्रपति गयंद हरि हंस गति, विह बनाय संचै संचिय ।'
यहाँ छन्द और अर्थ दोनों की दृष्टि से 'छत्रपति' अशुद्ध है। शुद्ध पाठ 'छप्पति' है, जो संभवतः लिपिकार के प्रमाद से भ्रमवश 'छत्रपति' पढ़ लिया गया। इस प्रकार अर्थ करने में भी असावधानी की गई है, जैसे 'मनहुँ कला ससिभान, कला सोलह सौ बन्निय' इस पंक्ति में 'ससिभान' का अर्थ किया गया है। 'चन्द्रमा और सूर्य' । 'ससिभान' संस्कृत के 'शशभानु' शब्द का बिगड़ा हुआ रूप है, जिसका अर्थ होता है चन्द्रमा । अस्तु इसी भाव की पूर्ति के लिए पद्मावती-समय के एक सुसम्पादित एवं सटीक संस्करण की नितान्त आवश्यकता थ।
पद्मावती-समय के प्रस्तुत संस्करण के सुयोग्य सम्पादक श्रीयुत् पं० विश्वनाथ गौड़, एम० ए०, शास्त्री, साहित्य-रत्न हिन्दी और संस्कृत के एक अत्यन्त उदीयमान एवं प्रभविष्णु विद्वान् हैं। आपने बड़ी सतर्कता एवं विद्वत्ता के साथ यह सटीक एवं संशोधित संस्करण प्रस्तुत किया है। इसी संस्करण के विषय में सबसे महत्त्व की बात है कि इसका पाठ-संशोधन एक ऐसी प्रति के आधार पर किया गया है, जिसका संशोधन स्व० आचार्य प्रवर पं० रामचन्द्र शुक्ल ने कराया था। विद्वान् सम्पादक ने शब्दों के अर्थ और व्युत्पत्ति देने के साथ ही साथ सारे पद्यों की टीका भी बड़ी योग्यता से की है। ऐसी सुन्दर और प्रांजल टीका भी लिखने के लिए मैं श्रीयुत् गौड़ जी को हृदय से बधाई देता हूँ। मेरा विश्वास है कि 'पद्मावती समय' का यह संस्करण विद्यार्थियों और विद्वानों को रुचिकर होगा ।
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