रवीन्द्रनाथ बहुमुखी प्रतिभा के देदीप्यमान नक्षत्र है। वे विश्कवि के रूप में अधिक परिचित हैं। वे साहित्यकार, कथाकार, प्रबन्धका, शिक्षाविद, समाजसेवी, गीतकार तथा अभिनेता भी थे। रवीन्द्रनाथ एक अन्तर्जातिक कवि, कालजयी कवि एवं जनगण के कवि के रूप में विश्वविदित हैं। वे सौनदर्य के उपासक थे मानवता के पुजारी थे। काव्य में ही उनके जीवन का प्रारंभ, काव्य में ही उनके जीवन की परिसमाप्ति। प्रकृति प्रेम, ईश्वर प्रेम, और मानस प्रेम उनकी काव्यकृति का मूल बिन्दु था।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का उन दार्शनिक, धार्मिक तथा रहस्यवादी कवियों में स्थान प्राप्त है जिनका कार्य धर्म तथा दर्शन के बीच समन्व स्थापित करना है। इनकी कविताओं तथा साहित्यिक रचनाओं में दार्शनिक विचारों का बुह्नय है। दर्शन के मूलार्थ पर विशेष महत्त्व देते हुए उन्होंने अपे संपूर्ण विचार क्रम में वैयक्तिक अनुभूति तथा अंतदृष्टि पर अत्यधिक बल दिया है। टैगोर का परम सत् और ईश्वर संबंधी विचार भी उपनिषद् से ही प्रभावित है। यहाँ बतलाना आवश्यक प्रतीत है उनके लिए ये दो शब्द परम सत् तथा ईश्वर दो भिन्न-भिन्न तत्वों को सूचित नहीं करते। चिन्तन परम्परा में दोनों में फबेद किया जाता रहा है परन्तु "टैगोर" के अनुसार इस प्रकार का भेद अनावश्यक है। उनका स्पष्ट मत है कि सत् की दृष्टि होती है वह अंतश्चेतना में एक रह्य की भांति चमका करता है। इस अंतः अनुभूति में ही यह चेतना होती है कि वह एक शुद्ध निर्पेक्ष सत्ता है। संपूर्ण जगत के भीतर बाहर उस सत्ता के अतिरिक्त और कोई सत्ता नहीं है। वह सर्वत्र है।
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