| Specifications |
| Publisher: Harper Collins Publishers | |
| Author Dushyanth Sridhar | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 387 (With B/W Illustrations) | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 9x6 inch | |
| Weight 400 gm | |
| Edition: 2025 | |
| ISBN: 9789365696417 | |
| HBM996 |
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कूजन्तम् राम रामेति' वह श्लोक है जो बचपन से मेरे कानों में गूंजता रहा है। तब से राम और रामायणम् के साथ मेरी यात्रा, किसी आध्यात्मिक यात्रा से कम नहीं रही। रामायण, मुझे महर्षि एवं उच्च कोटि के कवि वाल्मीकि का स्मरण कराती है, जिनके द्वारा राम और सीता के जीवन चरित का प्रस्तुतीकरण एक पूर्ण सत्य है। इसीलिए इसे इतिहास कहा जाता है, जिसके चलते यह भारत के इतिहास का अभिन्न अंग है।
रामायण को 'मिथक' शब्द से जोड़ना बड़ा अन्याय है। हमारे आचार्यों ने रामायण को वेदों, उपनिषदों, भग्वद्गीता और ब्रह्म सूत्रों के समकक्ष रखा और इसे वह सम्मान और प्रमुखता दी, जो इसका अधिकार है। परंतु पिछली सहस्राब्दी के दौरान इस पर लिखी गई उत्कृष्ट टीकाओं ने इसे और अधिक स्पष्टता एवं भव्यता प्रदान की है। इनमें महेश्वर तीर्थ की तत्त्वदीपिका, गोविंदराज का भूषण, त्र्यंबक मखिन का धर्मकूट, शामिल हैं। माधव योगी का अमृतकटक, नागेश भट्ट का तिलक और वंशीधर शिवसहाय की शिरोमणि प्रमुख हैं।
मेरी जानकारी में, इस पुस्तक के अतिरिक्त, रामायण के किसी भी अन्य अंग्रेजी पुनर्कथन में मूल को उसकी टीकाओं के साथ रखकर देखने के उद्देश्य पर चर्चा नहीं की गई है। महाभारत, हरिवंश और पुराण-जैसे विष्णु, भागवत, मत्स्य, वायु, कूर्म, अग्नि, शिव, स्कंद, पद्म, नारद और विष्णुधर्मोत्तर ने राम के जीवन इतिहास का भी वर्णन किया है। इसी तरह तीन अन्य ग्रंथों अद्भुत, अध्यात्म और आनंद रामायण में भी यह वर्णन मिलता है। अलग-अलग समयावधियों में असाधारण कवियों तथा उत्कृष्ट नाटककारों ने संपूर्ण ग्रंथ अथवा उसके कुछ अंशों की पुनर्रचना की है। कालिदास का रघुवंश, भोज का रामायणचंपू, कुमारदास का जानकीहरण, अभिनंद का रामचरित, भट्टि का रावणवध, भवभूति का उत्तररामचरित, प्रवरषेण का सेतुकाव्य, क्षेमेंद्र की रामायणमंजरी, प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। कुछ अल्पज्ञात ग्रंथ जैसे भास का प्रतिमा नाटक और अभिषेक नाटक, यशोवर्मन का रामाभ्युदय और भिमत का स्वप्नदशानन भी उतने ही सुंदर हैं।
उपरोक्त कार्यों के रोचक पक्षों को इस पुस्तक में इस तरह सम्मिलित किया गया है, जिससे वाल्मीकि के मूल पाठ से विषयांतर नहीं हुआ है। रामायण में वर्णित दार्शनिक सामग्री के संरक्षण में स्तोत्रों के माध्यम से आचार्यों का योगदान महत्वपूर्ण है। वेदांत देशिक के रघुवीर गद्य, अभय प्रदान सार, हंस संदेश, पादुका सहस्र; नमपिल्लै और पेरियवाच्चान नमपिल्लै की टीकाएँ: माध्व की तात्पर्यनिर्णय और राघवेंद्र की रामचरित्र मंजरी; भट्टथिरी का नारायणीय और शूर्पणखा प्रलाप; अप्पयदीक्षित के रामायण तात्पर्य सार संग्रह और ऐसे कई ग्रंथों ने इस कार्य को पूर्ण किया है।
इस पुस्तक में यथावश्यकतानुसार, ऐसे आचार्यों के विचारों को सम्मिलित किया गया है। हम जानते हैं कि भारत अनेक धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों का मिश्रण है। जैन सिद्धांतों का समर्थन और बौद्ध सूक्तियों की शिक्षा देने वाले रामायण संस्करण भी प्रसिद्ध हैं। तमिल भाषा में प्राचीन रचनाएँ जैसे पुरानानूरु, इलानकोवटिकल का चिलप्पतिकार, आलवारों का नालायिर दिव्य प्रबंध, नमपिल्लै और पेरियवाच्चान नमपिल्लै की टीकाएँ; मनवाल मामुनि; कंबन का रामावतार और अरुणाचल का राम नाटक, वाल्मीकि की रामायण से प्रेरित हैं। इसी तरह तेलुगू में मोल्ल, मलयालम में एलुत्थछन, अवधी में तुलसीदास, बंग्ला में कृतिवास, कन्नड़ में तोरवे, उड़िया में बलराम, जावाई में काकाविन आदि के अत्यंत सुंदर रामायण संस्करण उपलब्ध हैं। अन्नमय्य, पुरंदरदास, गोपण्णा, वेंकटकवि, त्यागराज और मुद्दुस्वामिदीक्षित की रचनाएँ, सभी राम के प्रति भक्ति का प्रदर्शन करती हैं।
पाठक को इस पुस्तक में इन महत्त्वपूर्ण ग्रंथों से प्रेरित कुछ तत्व मिल सकते हैं। तिरुक्कुदंतई आंदवन, परवाकोट्टई आंदवन, सी. राजगोपालाचारी, वी.एस. श्रीनिवास शास्त्री, वी. राघवन, आर. के. नारायणन, कमला सुब्रमण्यन जैसे लेखक मेरे साथी रहे हैं। यह पुस्तक, उपरोक्त ग्रंथों की आकाशगंगा के उदात्त प्रभाव और उनके लेखकों के आशीष से तैयार हुई है। विवरणों के संदर्भ में अचल ध्यान एवं रचनात्मक मौलिकता के स्पर्श ने इस कथा के कहन में कुछ ढीले सिरों को जोड़ने में मेरी सहायता की है।
मैं अपने निम्न मित्रों का आभारी हूं जिन्होंने अपने ज्ञान से इस पुस्तक को बेहतर बनाया है:
स्क्रिप्ट संपादन के लिए लता रेंगाचारी
रचनात्मक रेखाचित्रों के लिए केशव
मूर्तिकला चित्रों के लिए उपासना गोविंदराजन्
शिलालेख डेटा के लिए टी एस कृष्णन्
रामायणम की तिथियों के डेटा के लिए डॉ. जयश्री सारनाथन्
शुभचिंतक बहुत हैं। इन सबका उल्लेख बहुत आवश्यक है:
दया और श्रीधर, मुंबई
कृत्तिका और राजेश, मैरीलैंड
निम्मी और श्रीकांत, डलास
राधिका और शेषाद्री, सैक्रामेंटो
नरेश मुरली, सैन जोस (कंदला मुरली की स्मृति में)
सर्वोपरि, हार्पर कॉलिन्स, जिन्होंने मेरे लिखे हुए को योग्य समझा और इसे दुनिया भर के पाठकों तक ले जाने का कार्य किया।
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