आज शायद ही कोई ऐसा ज्योतिष प्रेमी हो, जो लाल किताब के नाम से परिचित न हो। कुछ लोगों की यह मान्यता है कि सूर्य के सारची अरुण द्वारा ज्योतिष सम्बन्धी यह ज्ञान रावण को दिया गया था। सारथी जब किसी को ज्ञान देगा, तो वह सर्वोच्च कोटि का होगा। भगवान श्री कृष्ण ने जब सारथी बनकर अर्जुन को ज्ञानोपदेश दिया, तो वह उपदेश सारे विश्व के काम आ रहा है। गीता रूपी ज्ञान संसार रूपी अंधकूप से निकलने का एकमात्र साधन है।
लाल किताब ग्रहों के कष्टों को कम करने के लिए करामाती और प्राकृतिक उपायों से भरपूर ऐसी किताब है, जिसमें ज्योतिष, हस्तरेखा व वास्तु का समन्वय देखने को मिलता है। जन्मपत्री में ग्रहों के मुताबिक हमारे हाथ में क्या-क्या चिन्ह होंगे और हमारे घर का वास्तु किस प्रकार का होगा; इसका विवेचन करने वाली पुस्तक अति दुर्लभ है। पंडित रूप चन्द्र जोशी द्वारा 1936 से 1942 में लिखित पुस्तक 'लाल किताब' छपने के बाद लोगों का ध्यान इस विद्या की ओर गया। इस पुस्तक को समझना भी अति दुष्कर कार्य है। उर्दू में छपी इस पुस्तक में फारसी के शब्दों का प्रयोग भी काफी संख्या में किया गया है। इस पुस्तक के कुछ सिद्धांत ज्योतिष की पाराशरी पद्धति से मेल नहीं खाते, क्योंकि इसमें सारा जोर ग्रहों और भावों पर दिया गया है। ग्रहों को आधार बनाकर जो हिदायते और उपाय दिए गये हैं, वह काफी काम के हैं। ज्योतिष द्वारा भविष्य की घटनाओं की जानकारी देना या किसी को संभावित रोग की जानकारी देने भर से ज्योतिष का कार्य पूर्ण नहीं होता। उस कष्ट से बचने का उपाय बताना भी ज्योतिषी का कर्तव्य है। हमारे प्रारब्ध के कुछ कर्मों का फल तो हमें भुगतना ही पड़ता है, लेकिन कुछ कर्मों के फल को उपायों द्वारा कम किया जा सकता है। लाल किताब में वर्णित उपाय कुछ इस तरह काम करते हैं, मानो कुछ रोगों का इलाज दादी माँ के घरेलू नुस्खों द्वारा रसोई में सहज सुलभ वस्तुओं द्वारा कर दिया गया हो।
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