एक राष्ट्रवादी विचारक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक, जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद के संस्थापक और मन्त्री, 1948 के पाकिस्तान आक्रमण के समय भारतीय सेना के पहुंचने से पहले पाकिस्तान का सशस्त्र विरोध करने वाले, भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य और कुछ वर्ष तक जनसंघ का अध्यक्ष पद सम्भालने वाले। वह 1960 के दशक के वरिष्ठ राजनेता थे। वह संसद (लोकसभा) के दो बार सदस्य बने, वह गणमान्य शिक्षाविद, विचारक, इतिहासवेत्ता, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक भी थे।
न वह खरी-खरी बोलने में हिचकते थे न किसी के सामने अपनी बात रखने में। किसी दौर में वो भारत की दक्षिणपन्थी राजनीति के सिरमौर हुआ करते थे, डी ए वी कालेज में वरिष्ठ प्रोफेसर रहे, 1960 के दशक में उन्होने गौहत्या विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व किया।
मुस्लिम समस्या विश्वव्यापी है। १४०० वर्ष पूर्व इस्लाम के उदय के साथ ही इस समस्या की शुरुआत हुई। इसके दो रूप हैं। जिन देशों की राजसत्ता इस्लामवादियों के पास है वहाँ इसका रूप दमनकारी है और जहाँ उनके हाथ में सत्ता नहीं, वहाँ उसका रूप विघटनकारी है।
हिन्दुस्थान ने इसके दोनों रूप देखें हैं। इस्लामी राजकाल में भारत के लोग इसके दमनकारी रूप से पीड़ित रहे। मुस्लिम सत्ता खत्म होने के बाद जब मुसलमान भारत में एक अल्पसंख्यक समुदाय रह गए तब इनका विघटनकारी रूप सामने आया। १६४७ में भारत का विभाजन उसी का परिणाम था। तब यह सोचा गया था कि उन्हें पाकिस्तान के रूप में अलग घर मिल जाने के बाद खण्डित हिन्दुस्थान में यह समस्या नहीं रहेगी। परन्तु यह सोच गलत निकली। अनेक कारणों से गत ४४ वर्षों में मुस्लिम समस्या अधिक भयानक रूप से फिर खड़ी हो गई है। इसके कारण देश की शान्ति, एकता और सुरक्षा के लिए ही नहीं अपितु इसके अस्तित्व और विशिष्ट हिन्दू पहचान के लिए भी नए खतरे पैदा हो गए हैं।
कुछ समय पूर्व मैंने इस विषय पर 'हिन्दू वल्डं' के लिए एक विस्तृत लेख लिखा था जो बाद में पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित हुआ। कुछ बन्धुओं ने इसे हिन्दी में लिखने का भी आग्रह किया ताकि इसमें दिया गया तथ्य और तर्कपूर्ण विवेचन हिन्दी जानने वाले भी पढ़ सकें। यह पुस्तक उसी अंग्रेजी पुस्तक पर आधारित है; परन्तु यह उसका शाब्दिक अनुवाद नहीं है। इसमें कुछ बातें अधिक विस्तार से लिखी गई हैं।
मैंने प्रयत्न किया है कि इस्लाम के सम्बन्ध में कुछ बुनियादी जानकारी के साथ मुस्लिम समस्या को इतिहास के परिप्रेक्ष्य में पेश करूं। यह विवेचन तथ्यों, तर्क और इतिहास पर आधारित है। मेरा उद्देश्य सत्य का प्रकाश करना और हिन्दीभाषी जनता को इस गम्भीर, पुरानी और विश्वव्यापी समस्या के सम्बन्ध में शिक्षित करना है, किसी का दिल दुखाना नहीं।
कुरान की २४ विवादास्पद आयतें, दिल्ली के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट का उनके सम्बन्ध में फैसला और मुस्लिम राज्य में गैर-मुस्लिमों पर लगाई गई शर्तें परिशिष्ट के रूप में दी गई हैं। उनसे पाठकों को पुस्तक में दिए गए तथ्यों को समझने में आसानी होगी।
यह पुस्तक का तृतीय संस्करण है। पहला संस्करण १६८८ में कास-गंज के गौरव प्रकाशन ने प्रकाशित किया था ।
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