| Specifications |
| Publisher: Nirmal Publishing House, Kurukshetra | |
| Author Someshwar Dutt Sharma | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 286 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x6 inch | |
| Weight 446 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9789384783778 | |
| HBD407 |
| Delivery and Return Policies |
| Usually ships in 7 days | |
| Returns and Exchanges accepted within 7 days | |
| Free Delivery |
माध्यन्दिन-संहिता में छन्द और अलंकार नामक ग्रन्थ में हरियाणा संस्कृत अकादमी (हरियाणा सरकार) पंचकूला के निदेशक एवं श्रौतमार्गी विद्वान् लेखक डॉ. सोमेश्वरदत्त जी के द्वारा, अपने परिश्रम से विविध छन्दशास्त्रीय और अलंकारशास्त्रीय संस्कृतग्रन्थों के आधार पर एक प्रशस्त ग्रन्थ का निर्माण किया गया है। यद्यपि लौकिक छन्दों के विधायक शास्त्र के मूल के रूप में ऋग्वेदप्रातिशाख्य में विहित अनुष्टुप, उष्णिक, त्रिष्टुप्, बृहती, पंक्ति और जगती छन्दों को ग्रहण किया जा सकता है, किन्तु लौकिक छन्द मगण, नगण और भगण आदि के अनुसार व्यवस्थित हैं, जबकि वैदिक छन्द सामान्यतया अक्षरों की गणना पर आश्रित हैं। लेखक ने माध्यन्दिन-संहिता के मन्त्रों में छन्दों की स्थिति का विशदीकरण किया है। कात्यायन श्रौतसूत्र में यजुष मन्त्रों के विषय में यह कहा गया है कि जिन मन्त्रों में अक्षरों की संख्या निश्चित न हो, वे यजुष् हैं। इसका यह तात्पर्य नहीं है कि यजुर्वेद में छन्द नहीं हैं। यजुर्वेद के अनेक अध्याय छन्दोबद्ध हैं। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन संहिता में छन्दों के निरूपण में साफल्य के लिए लेखक प्रशंसा का पात्र है।
इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थ में वेदमन्त्रगत अलंकारों का भी दिग्दर्शन कराने का प्रयास लेखक के द्वारा किया गया है।
शब्दालंकारों एवम् अर्थालंकारों के निदर्शन के रूप में लेखक ने शुक्ल यजुर्वेद से सम्बद्ध वाजसनेयी- माध्यन्दिन संहिता के मन्त्रों को प्रस्तुत किया है।
यह ग्रन्थ वैदिक और संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय एवम् उपयोगी योगदान है, जो शैक्षणिक संस्थाओं के ग्रन्थागारों तथा अध्येताओं और अध्यापन क्षेत्र के विद्याध्यवसायियों के लिए उपादेय सिद्ध होगा।
महर्षि च्यवन ऋषि के आश्रम स्थल ढोसी के समीप बलाहा ग्राम में सामाजिक धार्मिक कुल के प्रकाण्ड विद्वान्, कर्मकाण्ड एवं ज्योतिष के मर्मज्ञ स्वर्गीय श्री चन्दन राम शर्मा जी तथा धार्मिक प्रवृत्ति से युक्त स्वर्गीया माता श्रीमती कौशल्या देवी जी के यहाँ, महेश्वर जी के आशीर्वाद से सोमेश्वर दत्त (सोमदत्त) का जन्म हुआ। पालन-पोषण, सिद्ध बाबा जयराम दास व बाबा केसरिया के तपः स्थली के समीप अपने पैतृक ग्राम धौली में हुआ। यह बाल्यकाल से ही धार्मिक, सामाजिक, अध्ययनशील, अभिवादनशील, विनम्र, परिश्रमी तथा सकारात्मक दृष्टिकोण का धनी रहा है। सतत परिश्रम करते हुए सभी कक्षाओं में अच्छे प्रदर्शन के साथ बी.ए., एम.ए (संस्कृत), एम.फिल. (संस्कृत) उपाधियाँ प्राप्त की। संस्कृत के उत्कृष्ट विद्वान्, दोनों ही राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित प्रो. (डॉ.) मान सिंह जी व प्रो. (डॉ.) वेदप्रकाश उपाध्याय जी के कुशल मार्ग दर्शन में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
सोमेश्वर दत्त जी लगभग १०० से अधिक सरकारी, अर्धसरकारी, गैर सरकारी विभिन्न संस्थाओं से सम्मानित हो चुके हैं तथा लगभग दो सौ से अधिक संगोष्ठी व कार्यशालाओं में अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि, मुख्यवक्ता रूप में रह चुके हैं। ये हरिप्रभा मासिक अन्तराष्ट्रिय शोध-पत्रिका और हरिवाक् का मुख्य सम्पादक रहे हैं तथा हरियाणा सरकार की ओर से सनातन धर्म संस्कृत आदर्श महाविद्यालय, अम्बाला छावनी की प्रबन्धन समिति के सदस्य रहे हैं। मूल रूप से हरियाणा शिक्षा विभाग में संस्कृत प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हैं तथा पूर्व में हरियाणा संस्कृत अकादमी, पंचकूला (हरियाणा सरकार) के निदेशक पद पर कार्यरत रहे हैं।
लेखक प्रणीत इस पुस्तक के अतिरिक्त अन्य दो पुस्तकें उपलब्ध हैं -
१. माध्यन्दिन-संहिता वर्णन सौष्ठव तथा काव्यशैली
२. माध्यन्दिन-संहिता में ध्वनि, वक्रोक्ति, रस और औचित्य ।
सौभाग्य से सोमेश्वर दत्त की धर्म पत्नी श्रीमती अञ्जना शर्मा भी संस्कृत की विदुषी हैं। सुपुत्री विनता, सुपुत्री कुमुद व सुपुत्र केशवदत्त व अन्य कुटुम्बजन सभी अपने-अपने क्षेत्र में अग्रणी हैं। लेखक का मेरे प्रति गुरुतुल्य एवं पितृकल्प भाव सदा ही मुझे आह्लादित करता है। मैं अपने अनुज डॉ. सोमेश्वर दत्त की यशस्वी एवं दीर्घायु होने की कामना करता हूँ।
सर्वज्ञानमय वेद भारतीय संस्कृति के मूलस्रोत माने जाते हैं। धर्म, दर्शन साहित्य, काव्य, कला, ज्योतिष तथा आयुर्वेद आदि के बीज वैदिक साहित्य में उपलब्ध होते हैं। प्राचीन काल से वेदों के विषय में इसी प्रकार की मान्यता रही है परन्तु मध्ययुग में ये केवल कर्मकाण्ड का ही विषय बन कर रह गए। इसी युग में वेद को काव्य से सर्वथा भिन्न भी माना जाने लगा, जबकि वेद में ही 'ऋषि' को कवि आदि के रूप में परिलक्षित किया गया है। आचार्य भरत ने भी काव्य (नाटक) का मूल वेदों को घोषित किया है। इसी प्रकार काव्य के अन्य तत्त्व भी वेद में सुलभ हैं। आधुनिक युग में भी कतिपय विद्वानों ने वेदों में काव्यतत्त्वों के अन्वेषण का कार्य किया है। उदाहरण स्वरूप डॉ. महेन्द्र कुमार वर्मा प्रणीत "Glimpses into Poetic Beauty of the Rigveda"; प्रह्लाद कुमार विरचित "ऋग्वेदेऽलङ्काराः" एन. जे. शेण्दे द्वारा लिखित "Kavi and Kavya in the Atharvaveda"; मातृदत्त त्रिवेदी रचित "अथर्ववेद-एक साहित्यिक अध्ययन" तथा कृष्ण कुमार धवन कृत "उपनिषदों में काव्य-तत्त्व" नामक ग्रन्थों में इसी प्रकार का प्रयास किया गया है। 'यजुर्वेद (माध्यन्दिन- संहिता) के कर्म-काण्ड से सम्बद्ध होने के कारण सम्भवतः अभी तक इस पर इस प्रकार का कार्य नहीं हुआ है। अतएव मैंने शुक्ल-यजुर्वेदीय 'माध्यन्दिन-संहिता' पर इस प्रकार का कार्य करना उचित समझा।
Send as free online greeting card