यह पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सरदार पटेल की योगदान को उजागर करती है। इसमें उनके संघर्ष, कांग्रेस आंदोलनों में भागीदारी, और भारतीय संविधान के निर्माण में उनके योगदान का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से सरदार पटेल को स्वतंत्रता संग्राम का वास्तविक लौह पुरुष' बताया गया है। यह पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सरदार पटेल के जीवन पर शोध करने वाले छात्रों और इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है।
ओम तनेजा, एक इतिहासकार और स्वतंत्रता संग्राम के गहरे जानकार हैं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सरदार पटेल की भूमिका पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। उनका शोध विशेष रूप से पटेल के योगदान, कांग्रेस आंदोलनों में उनकी भागीदारी, और भारतीय संविधान के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर केंद्रित है। ओम तनेजा का मानना है कि सरदार पटेल ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नेतृत्वकारी भूमिका निभाई और भारतीय संविधान के निर्माण में एक मुख्य निर्माता के रूप में कार्य किया। उनकी कई किताबें और शोध पत्र भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम के अध्याय में एक महत्वपूर्ण योगदान के रूप में मानी जाती हैं।
यह पुस्तक सरदार वल्लभभाई पटेल के असाधारण जीवन और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके अद्वितीय योगदान का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। एक अडिग संकल्प और रणनीतिक कौशल से परिपूर्ण, पटेल की यात्रा एक स्वनिर्मित वकील से भारत की राजनीतिक एकता के शिल्पकार तक न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि गहरी संवेदनाएँ भी उत्पन्न करती है। पटेल का स्वतंत्र स्वभाव प्रारंभ से ही स्पष्ट था- उन्हें किसी के अधीन कार्य करना पसंद नहीं था, विशेष रूप से अंग्रेजों के। उन्होंने गोधरा में अपनी वकालत प्रारंभ की और शीघ्र ही एक सफल वकील बन गए। उनकी वित्तीय सूझबूझ ने पूरे परिवार को आर्थिक रूप से सुरक्षित कर दिया। उन्होंने अपने बड़े भाई को इंग्लैंड में उच्च शिक्षा के लिए भेजा और अपने परिवार के भविष्य को सुदृढ़ किया। लेकिन 1909 में, जब उनकी पत्नी गंभीर रूप से बीमार हुई, तब वह एक महत्वपूर्ण मुकदमे की सुनवाई में व्यस्त थे, और इसी दौरान उनका निधन हो गया।
इस गहरे व्यक्तिगत आघात के बावजूद, पटेल ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने बच्चों को मुंबई के सेंट मैरी स्कूल में दाखिला दिलाया और स्वयं इंग्लैंड चले गए। 1913 में बैरिस्टर बनकर भारत लौटे और अहमदाबाद में एक सफल कानूनी प्रैक्टिस स्थापित की। उनकी राजनीतिक चेतना महात्मा गांधी के प्रभाव में विकसित हुई। 1915 में उन्होंने पहली बार गांधीजी को सुना और उनके स्वदेशी आंदोलन से गहराई से प्रभावित हुए। 1917 में वे नगरपालिका राजनीति में सक्रिय हुए और जनसमस्याओं के समाधान में जुट गए।
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