आध्यात्मिक विकास की खोज में, साधकों को प्रायः ऐसे विभिन्न प्रकार के प्रश्नों का सामना करना पड़ता है, जो या तो उनकी यात्त्रा में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं या उसे बाधित करते हैं। इन प्रश्नों एवं जिज्ञासाओं के संतोषजनक उत्तर प्राप्त करने की असमर्थता, आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की इच्छा रखने वाले किसी व्यक्ति के उत्साह और प्रगति को बाधित करती है।
संक्षिप्त तथा सटीक व्याख्याओं के माध्यम से, वे सदियों पुरानी दुविधाओं पर एक नया परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हैं, आध्यात्मिक क्षेत्र में जाने वालों को स्पष्टता और अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। सटीकता और प्रासंगिकता के साथ, इन जिज्ञासाओं की गहराई में जाकर, लेखक आध्यात्मिक यात्रा के लिए गहरी समझ और कृतज्ञता के भाव को सुगम बनाते हैं।
इस कार्य का महत्त्व न केवल उत्तर प्रदान करने की क्षमता में है, बल्कि साधकों के भीतर उद्देश्य और उत्साह की एक नई भावना को प्रज्वलित करने की क्षमता में भी है। इन प्रश्नों को व्यापक और प्रभावी ढंग से संबोधित करके, यह पुस्तक मार्गदर्शन के एक प्रकाश-स्तंभ की ऐसी भूमिका निभाती है, जो व्यक्तियों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
यह एक बहुमूल्य योगदान है, जिसका आध्यात्मिक पथिकों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। आशा है यह पुस्तक साधकों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करेगी, क्योंकि वे अपने आध्यात्मिक मार्ग में आने वाली जटिलताओं को समझ पाएँगे।
पिछले 200 वर्षों में, भारत का ज्ञान धीरे-धीरे सीमाओं से आगे विश्वभर में पहुँच गया है। सर्दी से ठिठुरते संसार में ताज़गी भरे वसंत के आने की तरह, लोग पहली बार भारत की अध्यामिकता के प्रति सचेत हुए हैं और उन्हें प्रेरणा मिली।
संसार के सभी प्रमुख शहरों में अब लाखों लोग योग करते हैं, वेदों का अध्ययन करते हैं और कीर्तन करते हैं। यह एक सांस्कृतिक क्रांति से कम नहीं - एक शांतिपूर्ण, आनंदायक और जीवन-वर्धक वैश्विक क्रांति है यह। आप कह सकते हैं कि भारत के उच्च विचार और आध्यात्मिक परंपराएँ, उसके द्वारा विश्वभर तक पहुँचाई गईं प्रमुख बातों में से एक हैं।
हज़ारों पीढ़ियों से संस्कृत भाषा में संरक्षित, हिंदू धर्म का ज्ञान समय की कसौटी पर खरा उतरा है। मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि वह अनुपयोगी विचारों और परंपराओं का त्याग कर देता है और यही कारण है कि कभी-कभी नवीन सभ्यता जन्म लेती है और विलुप्त हो जाती है, क्योंकि उनकी कमजोर नींव उनके विनाश का कारण बनती है।
यह बात सनातन धर्म या 'सनातन संस्कृति' के बारे में सच नहीं है। शाश्वत शब्द का अर्थ ही यह है कि इसका न तो कोई आरंभहै और न ही इसका कभी अंत होगा। यह उन मनुष्यों के लिए हमेशा अत्यधिक मूल्यवान रहेगा, जो स्वस्थ, प्रसन्न और शांत रहना चाहते हैं और अपने आसपास एक बेहतर समाज बनाना चाहते हैं। सनातन धर्म भारत की नींव, इसका गौरव व आनंद और इसकी महानिधि है।
मैं पिछले पचास वर्षों से इन 'प्राचीन लेकिन सदा नए' लगते विचारों के बारे में, दूसरों को सिखाने में व्यस्त रहने के लिए बहुत भाग्यशाली रहा हूँ। आधुनिक लोगों को पुरानी संस्कृतियों के लिए रुचि लेते और उन्हें नई समझ हासिल करते देखना, एक बड़ा सौभाग्य रहा है। इस पुस्तक में, प्रश्न और उत्तर पारस्परिक चर्चा के अंश हैं। सभी प्रश्न वास्तविक हैं, इसलिए वे हमेशा विनम्र नहीं होते हैं! मुझे आशा है कि आपको इसे पढ़ने में आनंद आएगा और इन पृष्ठों पर संभवतया अपने प्रश्नों में उत्तर भी आप पा सकेंगे।
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