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सरकारी चाय के लिए (उपन्यास): Sarkari Chai ke Liye (Novel)

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Specifications
Publisher: Pankti Prakashan
Author Prem Shankar Chardana
Language: Hindi
Pages: 167
Cover: PAPERBACK
8x5 inch
Weight 130 gm
Edition: 2025
ISBN: 9788198175564
HBV689
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Book Description
लेखक परिचय


प्रेम शंकर चरड़ाना का जन्म राजस्थान के बूंदी जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ। अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त करने के बाद शिक्षा नगरी कोटा से स्नातक, बीएड और परास्नातक की शिक्षा प्राप्त की। वर्तमान में वे एक शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं और साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर अध्ययनरत हैं।


"सरकारी चाय के लिए" उनका पहला उपन्यास है, जो केवल एक लेखक की कल्पना ही नहीं, बल्कि एक अभ्यर्थी की आत्मा से उपजे अनुभवों की परत-दर-परत अभिव्यक्ति है।


भूमिका


यह उपन्यास किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस पूरी पीढ़ी की कहानी है जो गाँवों और छोटे कस्बों से बड़े शहरों की ओर उम्मीदों का बोझ लेकर निकलती है, अपने माता-पिता की आँखों का भरोसा और अपने भीतर अनकहे सपनों की लौ साथ लिए। उनकी आँखों में सपने थे, लेकिन जेबें खाली थीं।


यह कहानी अटल की है, लेकिन अटल अकेला नहीं है। वह हर उस नौजवान का प्रतीक है जो विपरीत आर्थिक हालात के बावजूद किराये का कमरा ढूँढ़ता है, कोचिंग का खर्च उठाता है और खुद को दिन-रात झोंक देता है। यह कहानी अमीश की है, जो प्रशासनिक सेवा की तैयारी करता है। वह केवल एक पात्र नहीं, बल्कि उन अनगिनत चेहरों की छाया है जो हर साल नतीजों के बाद गुमनाम हो जाते हैं। यह कहानी राधेश्याम की है, जो वर्षों की तैयारी के बाद जब हारता है रुकता नहीं है। उसकी हार ही उसे नयी राह देती है, जहाँ वह अपनी पहचान फिर से गढ़ता है। यह कहानी शहरों में संघर्षों के बीच बनी मित्र मंडली के कारनामों का भी बखान है, जो अपने आप में आनंददायक है। इस कहानी में आप प्रेमी जोड़े के सुख-दुःख को भी महसूस करेंगे। यह उपन्यास उन विद्यार्थियों का दस्तावेज़ है जिनके बारे में शायद ही कोई उपन्यासकार लिखता है, वे जो कलेक्टर नहीं बन पाए, लेकिन लड़ाका बने रहे। अब तक प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों पर जो कहानियाँ लिखी गई, वे उन चंद सफल उम्मीदवारों पर केंद्रित थीं जो IAS जैसी बड़ी नौकरियों में पहुँचे। लेकिन यह किताब उन करोड़ों युवाओं की है, जो हर साल इस सपने की दौड़ में शामिल होते हैं, कभी जीतते हैं, कभी थक जाते हैं, लेकिन लड़ना नहीं छोड़ते।


मैंने यह उपन्यास इसलिए नहीं लिखा कि मैं लेखक बनना चाहता था। मैंने इसलिए लिखा क्योंकि यह लिखा जाना ज़रूरी हो गया था। जब मेरा जीवन भी अटल, अमीश और राधेश्याम से मिलता-जुलता था, तब इन किरदारों ने मेरे भीतर जन्म लिया। यह कहानी काल्पनिक पात्रों पर आधारित है, लेकिन घटनाएँ सच्ची हैं। ये वही घटनाएँ हैं जो न जाने कितनों की डायरी में दर्ज हैं, बस उन्हें कभी शब्द नहीं मिले।


आपको जानकर हैरानी होगी कि जब यह उपन्यास आधे से अधिक लिखा जा चुका था, तब तक मैंने साहित्य के नाम पर बस 'गुनाहों का देवता' पढ़ा था। इसलिए मैं न लेखक हूँ, न साहित्यकार! मैं बस एक उन लाखों युवाओं में से एक हूँ जिन्होंने इस जीवन को जिया है। मैं आपको मुखर्जी नगर की गलियों में नहीं, बल्कि देशभर के छोटे-बड़े शहरों में ले चलूँगा, उन किराये के कमरों में, जहाँ अकेलापन, उम्मीद और संघर्ष एक साथ साँस लेते हैं। उपन्यास को पढ़ते हुए आप खुद को इन पात्रों में शामिल पाओगे, आप अपनी कहानी महसूस करोगे। कथानक के पात्रों की खुशी आपकी हो या ना हो, उनका दर्द आपका होगा।


इस उपन्यास को इस वजह से भी पढ़ा जाना चाहिए क्योंकि कोई कलेक्टर बनना चाहे या पटवारी, सफल होने तक का दर्द बराबर का होता है। मुझे पूरी उम्मीद है इस उपन्यास को आप अपने दिल से लगाएंगे, इसे वही जगह देंगे जहाँ आप अपनी सबसे सच्ची यादें सँजोते हैं और मुझे अपना स्नेह और आशीर्वाद देंगे। मैं आँखों में सकारात्मक चमक लिए ये उपन्यास आपको सौंप रहा हूँ, मुझे आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।

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