भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में सतना जिले का इतिहास सदैव से गौरवपूर्ण रहा है क्योंकि 1857 के पूर्व से ही यहाँ अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध प्रतिरोध के बीज अंकुरित हो गये थे। इन देशी रियासतों के स्वतंत्रता आंदोलन पर यदि दृष्टिपात करें तो स्पष्ट होगा कि यहाँ की रियासतों में काफी उत्थान एवं पतन के दृश्य दिखायी पड़ते हैं। यहाँ की राजनीति में आंधी एवं तूफान आये हैं लेकिन यहाँ के वीरों ने जिस इतिहास का सृजन किया है वह निश्चय ही त्याग, बलिदान एवं शौर्य का इतिहास है।
सतना जिले का निर्माण । जुलाई, 1948 को उस समय हुआ था जब देश स्वतंत्रता प्राप्त कर चुका था। रीवा एवं पन्ना राज्यों के पूर्णरूपेण तेरह राज्यों सहित कुछ भाग इसमें विलीन किये गये हैं। सतना जिले का इतिहास बघेलखण्ड एवं बुन्देलखण्ड की मिश्रित संस्कृति का इतिहास है। उपर्युक्त सभी देशी रियासतों के राजा स्वतंत्रता के पूर्व ब्रिटिश भारत के अधीन सहायक संधि से संबद्ध थे।
सतना जिले की 1857 की क्रांति का समाचार न केवल देश व प्रदेश तक सीमित रहा वरन् सात समुन्दर पार न्यूयार्क में पहुँच गया, जो 1 अक्टूबर, 1858 को न्यूयॉर्क डेली ट्रिब्यून में प्रकाशित "भारत में विद्रोह" नामक शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। इसमें फ्रेडरिक ऐंगेल्स ने अपने एक लेख में जगदीशपुर के कुंवर सिंह के छोटे भाई अमर सिंह के पिण्डरा की पहाड़ियों में रहकर जो छापामार युद्ध किया था, जिसमें उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे। उस लेख में अमर सिंह के छापामार युद्ध कला के ज्ञान की प्रशंसा की थी।
सतना जिले के विभिन्न राज्यों में जहाँ के शासक अंग्रेजभक्त थे, उन्होंने आंदोलनकारियों के साथ कठोरता एवं दमनात्मक व्यवहार किया। सतना जिले में क्रांति का बीजारोपण रणमत सिंह ने किया था। रणमत सिंह का 1857 का भिल्लसाय का युद्ध इस जिले की जन जागृति का ज्वलंत प्रमाण है।
सतना जिले की देशी रियासतों में सर्वप्रथम कांग्रेस का प्रवेश 1921 में बरौंधा हुआ। सन् 1929 में एक गुरुकुल की स्थापना की गयी, जिसमें राजनीति की शिक्षा दी जाती थी। सन् 1930 में शोषणकारी जंगल कानून के विरुद्ध नागौद व बरौंधा राज्य में जंगल-सत्याग्रह नामक आंदोलन प्रारंभ हुआ जिसमें हजारों व्यक्ति गिरफ्तार हुए। इस आंदोलन का सोहावल राज्य द्वारा कठोर दमन किया गया। सोहावल राज्य के माजन गाँव में 10 जुलाई, 1938 को भारी गोलीकाण्ड हुआ, जहाँ लाल बुद्धिप्रताप सिंह, पंडित मन्धीरराम व पंडित रामाश्रय प्रसाद गौतम बलिदान हुए तथा इनके साथ भूरा गड़ारी व सैकड़ों अन्य घायल हुए।
14 जनवरी, 1938 को बघेलखण्ड राजनैतिक कांग्रेस अधिवेशन, पयस्वनी नदी के किनारे त्रिवेणी नामक स्थान में रीवा के लाल यादवेन्द्र सिंह की अध्यक्षता में संपन्न हुआ जिसमें खादी पहनने पर बल दिया गया। आगे महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोडो आंदोलन में इस क्षेत्र के छात्रों का उल्लेखनीय योगदान रहा है।
बरौंधा के भागवतपुर के धाराजीत सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की थी। पिण्डरा के दलगंजन सिंह एवं अयोध्या सिंह अग्रणी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। ग्राम पिण्डरा, क्रांतिकारी योजनाओं का केन्द्र बिन्दु था। नकैला के रंगू सिंह और महीपत सिंह को फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
सतना जिले के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास लेखन में पूर्ण प्रयास किया गया है कि घटनाओं का विवेचन सम्यक एवं तथ्यपरक हो। साथ ही किसी राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने वाले राष्ट्रभक्तों की सही जानकारी हो। इस पुस्तक में ग्राम झिंगोदर, तहसील नागौद के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री यशवंत कुमार सिन्धु ने अनेकों पुराने रिकॉर्ड व बुलेटिनें प्रदान कर लेखन कार्य को गति प्रदान की। सतना जिले की बरौंधा व चौबियाना की रियासतों के इतिहास लेखन में भी पिण्डरा के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री केशरीनन्दन द्विवेदी का पूरा सहयोग प्राप्त हुआ।
यह पुस्तक 'मध्यप्रदेश में स्वाधीनता संग्राम सतना जिले के लगभग सभी ज्ञात एवं अज्ञात अमर बलिदानियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित है। मैं स्वराज संस्थान संचालनालय, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश का आभारी हूँ तथा इस पुस्तक में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग के लिए सभी का धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।
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