कलकत्ते की प्रसिद्ध संस्था संगीत कला मन्दिर के प्रवचन श्रृंखला का जो क्रम प्रारम्भ हुआ था उसने कलकत्ता के सुधी समाज को आश्चर्यजनक रूप से प्रभावित किया था। संभवतः यहाँ मानस-दर्शन की एक नयी दृष्टि उन्हें प्रथम बार प्राप्त हुई थी, जिसका यह परिणाम था। उन श्रोताओं के समुदाय में से नवयुवक रमाप्रसादजी भी एक थे। संकोची स्वभाव के कारण यद्यपि वे मेरे सामने नहीं आये, किन्तु श्री सुरेन्ददत्तजी सनवाल के माध्यम से उन्होंने मुझ तक यह संदेश पहुँचाया कि मैं मानस के संदर्भ में अपने विचारों को प्रकाशित करूँ। उनका संकल्प फलीभूत हुआ और इस तरह प्रकाशन का क्रम प्रारम्भ हुआ। उन्होनें सरस्वती प्रेस के माध् यम से मानस-चिन्तन के प्रथम खण्ड का जो प्रकाशन किया वह विषय वस्तु ही नहीं, साज-सज्जा की दृष्टि से भी संपूर्ण था। इस क्रम में द्वितीय और तृतीय खण्ड का प्रकाशन भी उनकी श्रद्धा-भावना का परिणाम था। इन ग्रन्थों के और भी संस्करण प्रकाशित हुए और सुहृद जनों ने हाथोहाथ ले लिया।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist