| Specifications |
| Publisher: Harper Collins Publishers | |
| Author Ibne Safi | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 124 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 7x4.5 inch | |
| Weight 70 gm | |
| Edition: 2009 | |
| ISBN: 9788172238858 | |
| HBR517 |
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एक ज़माना था- एक छोटा-सा अर्सा जब हिन्दी-उर्दू में जासूसी साहित्य का बोल-बाला था। इलाहाबाद के 'देश सेवा प्रेस' से 'भयंकर भेदिया' और 'भयंकर जासूस' जैसी मासिक जासूसी पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थीं जिनके सम्पादक के तौर पर 'सुरागरसाँ का नाम छपता था। उसी दौर में एम.एल.पाण्डे के जासूसी उपन्यासों की धूम थी। और कहना न होगा कि जासूसी उपन्यासों के इस फलते-फूलते संसार के सम्राट थे जनाब असरार अहमद जिनके उपन्यास 'जासूसी दुनिया' मासिक पत्रिका के हर अंक में इब्ने सफ़ी के नाम से प्रकाशित होते थे। दोआबे की मिलवाँ ज़बान, गठे हुए कथानक, अन्त तक सनसनी बनाये रखने की क्षमता और उनके जासूस इन्स्पेक्टर फ़रीदी द्वारा थोड़े-बहुत शारीरिक उद्यम के बावजूद दिमागी कसरत से ही 'अपराधी कौन ?' का जवाब ढूँढने की कूवत ने इब्ने सफ़ी को निर्विवाद रूप से एक लम्बे समय तक जासूसी उपन्यास के प्रेमियों का चहेता बना रखा था जिनमें इन पंक्तियों का लेखक भी शामिल है। फिर इब्ने सफ़ी का यह कमाल था और इसे मैं उनकी उर्दू पृष्ठभूमि ही की देन कहना चाहूँगा कि वे अपने जासूसी उपन्यासों में बड़े चुटीले हास्य-भरे प्रसंग भी बीच-बीच में गूँथ देते। यानी उनके किरदार किसी दूसरी दुनिया के अपराजेय नायक नहीं थे, बल्कि हाड़-माँस के इन्सान थे। कभी-कभार अपराधियों से ग़च्चा भी खा जाते थे। कभी-कभार एक-दूसरे से मज़ाक़ भी कर लेते थे। 'कुएँ का राज़' इब्ने सफ़ी के उन शुरुआती उपन्यासों में से है जिसमें वे कई तरह की हिकमतें आज़मा-आज़मा कर देख रहे थे। इसमें रहस्य भी है और सनसनी भी, पेचीदगी भी है और हँसी-मज़ाक़ भी और हल्का सा इश्क़ भी। क़िस्सा तब शुरू होता है जब नवाब रशीदुज़्ज़माँ की कोठी में बने पुराने कुएँ से अचानक अंगारों की बौछार होने लगती है, घर की दीवारों से जंगली आवाजें आने लगती हैं और पालतू जानवर एक-एक करके मरने लगते हैं। दहशत में भर कर कोठी के लोग ऐसी हरकतें करते हैं कि ग़ज़ाला, जिसे यकीन है कि यह कोई भूत-नाच नहीं, इन्सानी साज़िश है, फ़रीदी को बुला लाती है। फिर क्या होता है ? किसका पर्दाफाश होता है? यही 'कुएँ का राज़' की अचरज-भरी कहानी है।
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