स्वराज संस्थान संचालनालय भोपाल द्वारा स्वीकृत 1857 स्वातंत्र्य समर पर जिला स्तरीय स्वाधीनता फैलोशिप के तहत स्वतंत्रता संग्राम में सीहोर जिले के योगदान के विभिन्न पक्षों, घटनाओं, व्यक्तियों और प्रवृत्तियों पर शोध एक महत्वपूर्ण कार्य था।
सीहोर में स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में इसके ऐतिहासिक उल्लेख मिलते हैं कि सन् 1857 के संग्राम से 33 वर्ष पहले पड़ोसी देसी रियासत नरसिंहगढ़ के राजकुमार चैन सिंह और उनके बहादुर जांबाज 43 साथियों ने कम्पनी सरकार के सीहोर में पदस्थ अंग्रेज पॉलिटिकल ऑफिसर थॉमस हरबर्ट मेडॉक को पहली बार सीहोर में सशस्त्र चुनौती दी थी, और कुँवर चैन सिंह मालवा की हल्दी घाटी कहे जाने वाले सीहोर के पुराने दशहरा मैदान में 24 जुलाई, 1824 को अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष करते हुए बलिदान हो गये थे।
प्रस्तुत पुस्तक में नरसिंहगढ़ के राजकुँवर चैन सिंह और उनके विश्वस्थ 43 साथियों की बलिदानी गाथा का उल्लेख करते हुए सीहोर की धरती पर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गये इस प्रथम सशस्त्र संघर्ष में प्राणोत्सर्ग करने वाले उन सभी क्रांतिवीरों के नामों की सूची संभवतः पहली बार प्रकाश में आएगी। सन् 1857 (मुक्ति संग्राम) के दौरान सीहोर की सैन्य छावनी में अंग्रेजों के विरुद्ध हुई सशस्त्र क्रांति और सीहोर की सरजमीं पर अंग्रेजों के विरुद्ध स्थापित की गई दुनिया की पहली समानांतर सरकार का विस्तार से ब्यौरेवार विवरण सिपाही बहादुर सरकार की कार्यप्रणाली और उसके शक्ति केंद्रों तथा प्रभावों का सविस्तार उल्लेख इस पुस्तक में किया गया है। सिपाही बहादुर सरकार की विशेषताओं के साथ ही उसके पतन के कारणों की भी यहाँ चर्चा की गई है। सन् 1857 में हुई सीहोर क्रांति के सूत्रधारों और प्रमुख नायकों तथा बलिदानी व्यक्तियों के जीवनवृत्त को भी शामिल किया गया है।
15 अगस्त, 1947 के दिन भारत भले ही आजाद हो गया हो, लेकिन सीहोर जिला भोपाल रियासत के अंतर्गत होने के कारण नवाबशाही के चंगुल में आजादी के लिए मचल रहा था। पुस्तक में भारतीय संघ में भोपाल राज्य के विलय की माँग को लेकर हुए विलीनीकरण आंदोलन के विविध पक्षों, प्रमुख घटनाओं, व्यक्तियों और प्रवृत्तियों का सविस्तार वर्णन किया गया है।
इस शोधपरक कार्य को पूर्ण करने में मुझे भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार श्रद्धेय श्री महेश श्रीवास्तव, श्री सर्वदमन पाठक, श्री रमेश शर्मा, श्री राघवेन्द्र सिंह तथा श्री राजकुमार अवस्थी ने जो अमूल्य मार्गदर्शन दिया उसके लिए मैं उन सभी का हृदय से आभारी हूँ। राष्ट्रीय अभिलेखागार के अधीक्षक श्री हक और माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्था की निदेशक डॉ. मंगला अनुजा तथा माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के शोध निदेशक श्री विजयदत्त श्रीधर ने संदर्भ सामग्री जुटाने में मेरी जो सहायता की है, उसके लिए मैं आप सभी का आभारी हूँ। इस कार्य में श्रीमती अनिता शर्मा और उनकी सुपुत्री कुमारी तृप्ति शर्मा ने रात-दिन मेरी जो सहायता की, उनके सहयोग के बिना यह श्रम साध्य कार्य पूर्ण नहीं हो सकता था। श्री वैभव शर्मा तथा कुमारी वैशाली शर्मा का परिश्रम और सहयोग भी इसमें शामिल है। इन सभी के प्रति मैं हृदय से कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। कम्प्यूटर पर टाइप के कार्य के लिए मैं, जहाँ श्री मनोज शाक्य का आभारी हूँ वहीं प्रूफ रीडिंग के लिए सुश्री कमर फातिमा के प्रति अभार व्यक्त करता हूँ।
अंततः स्वराज संस्थान संचालनालय तथा इस कार्य में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग प्रदान करने के लिए सभी महानुभावों, परिजनों तथा मित्रों का धन्यवाद करता हूँ।
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