जब हमारे जीवन के प्रायः हर क्षेत्र में अनेक प्रकार की विद्रूपताएँ, मुखौटापन और हद दर्जे की बेईमानी के दर्शन हो रहे हों, दूसरे शब्दों में, जब सब ओर से एक आईने को धूल-धूसरित करने का षड्यंत्र चल रहा हो और बदरंग शक्ल-ओ-सूरत को जिंदगी की सही तस्वीर बताकर प्रचार-प्रसार किया जा रहा हो तो स्वच्छ एवं सरल जीवन जीने की चाह रखने वालों को अंदर-ही-अंदर एक तिलमिलाहट, एक बेचैनी होगी ही सच को न समझ पाने से, या फिर समझकर अनजान बने रहने की विवशता से। यही तिलमिलाहट और बेचैनी किसी संवेदनशील रचनाकार को कलम उठाने को सहज ही बाध्य कर देती है। नई पीढ़ी के सशक्त व्यंग्यकार अश्विनी कुमार दुबे ने इन रचनाओं के माध्यम से जीवन की ऐसी ही अनेक विद्रूपताओं को चित्रित करने का साहस किया है।
संग्रह की कुछ रचनाएँ हितोपदेश की कथा-शैली में भी हैं, जिनके माध्यम से श्री दुबे ने हिंदी व्यंग्य-विधा को एक नया आयाम दिया है। तमाम कृत्रिमताओं के बावजूद सत्य की तलाश करने के यदि थोड़े भी इच्छुक आप हैं तो इस संग्रह की रचनाएँ आपको एक अलग तरह का अनुभव कराएँगी।
प्रशंसित व्यंग्यकार एवं कथाकार।
जन्म : सन् 1956 में, पन्ना (म.प्र.) में।
शिक्षा : हिंदी साहित्य में एम.ए.।
लेखन की शुरुआत सन् 1970 से। प्रारंभ में कहानियाँ लिखीं। फिर 1982 से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में व्यंग्य-लेखन। अब तक तीन व्यंग्य-संग्रह- 'घूँघट के पट खोल', 'अटैची संस्कृति' और प्रस्तुत कृति 'शहर बंद है' प्रकाशित ।
संपर्क: डाक बँगले के पीछे, यादव निवास, जाँजगीर-495 668 (म.प्र.)।
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