शानी ने जहाँ 28 वर्ष की अवस्था में 'काला जल' लिखकर उपन्यास की एक नयी परम्परा का सूत्रपात किया, वहीं समकालीन कहानी में अनेक ताज़ा कथ्य भी दाखिल किये। कहानी के रूढ़ मुहावरे से बाहर जाकर अपनी सर्जना के लिए एक अलग इलाक़ा निर्मित किया जिसमें निम्न मध्य वर्ग के भारतीय मुस्लिम परिवारों की दुनिया आबाद है। इस दुनिया के यथार्थ को सबसे पहले शानी की कथा-रचनाओं में केन्द्रीयता मिलती है। इस लिहाज से हिन्दी कथा-साहित्य की एक बड़ी रिक्तता को भरने का श्रेय उन्हें जाता है।
शानी ने मूलचन्द गौतम के साथ एक बातचीत में 'नारी और प्यार' कहानी को अपनी पहली रचना कहा है जो कि 'माया' के 1954-55 के किसी अंक में प्रकाशित हुई थी।
पहली कहानी को लेकर उनके 'आत्मकथ्य' और भूमिकाओं के अन्तर्साक्ष्य पर भी नज़र डालना जरूरी है। 'सब एक जगह' (जिल्द-एक) की भूमिकास्वरूप शामिल आत्मकथ्य के बाद शानी ने एक संक्षिप्त नोट में लिखा है: 'मेरी पहली कहानी 1957 के आसपास छपी थी।' इसी में आगे कहते हैं: 'भावभूमि की दृष्टि से आज मैं जहाँ खड़ा हूँ, वह तो मूलतः वही है जिसकी यात्रा मैंने 'जली हुई रस्सी' से अनजाने ही आरम्भ कर दी थी।'
यहाँ एक-दो बातें विचारणीय हैं। अपनी पहली कहानी के प्रकाशन वर्ष के बारे में शानी ने यह तब लिखा था, जब वे जीवनानुभवों के एक विशिष्ट क्षेत्र में एक तय कथाकार की प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके थे।
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