वेदों के महासागर में अवगाहन करने के बाद भारतीय मनीषा आदिकाव्य रामायण - महाकाव्य महाभारत तथा पुराण वाङ्मय से आगे बढ़ी, जहाँ वैदिक साहित्य के वे मंत्र जिनके द्वारा मनुष्य के विकास की प्रथम शोध 'अग्नि... प्रज्वलन द्वारा संसार का भय दूर हुआ, वहीं आदि तथा महाकाव्यों की परम्परा एवं पुराणों के वे श्लोकमय कथन भी मनुष्य को बहुत कुछ दिये।
भारतीय षड्दर्शन, स्मृति, धर्मशास्त्र, नाटक, काव्य, चम्पू, कथायें तथा इतिहास के अनेकानेक उत्तुंग ज्ञान की उस परा पश्यन्ती के योगियों ने भारतीय बुद्धिजीवियों को बहुत आकर्षित किया, ऐसा विशाल यह वाङ्मय संपूर्ण रूप से सर्वत्र भरा ही दिखता है। इसी परम्परा में वीत राग संन्यासी, वैरागी, ज्ञानी भी अग्रिम पंक्ति से हटे नहीं बाँधे रखे इस महान परम्परा को, जिसे देखकर आज हम गौरव के साथ कह सकते हैं कि भारत के उन तत्व ज्ञानियों ने जो भी कुछ समाज के हित को ध्यान में रखकर लिखा, बड़े-छोटे जो भी ग्रंथ लिखे, उनमें एक लघुग्रंथ पत्रिका के रूप में नहीं 'पत्र' के रूप में प्रचलित हुई जिसे सारा संसार मुख्य रूप से सांस्कृतिक समाज स्वामीनारायण सम्प्रदाय 'शिक्षापत्रि' के नाम से जानता है।
भगवान् के मुख्य से चाहे वेद वाक्य या महाभारत गीता के दीर्घ समास वाले वाक्य निकले हों या मार्गदर्शन रूप में पत्र-पत्रिका, मूल उद्देश्य तो समाज को कुछ नयी शिक्षा देना ही है।
इसी परम्परा में न बहुत लम्बा न बहुत छोटा 212 श्लोकों की उपदेशात्मक पत्री गागर में सागर भरने का कार्य करती है। एक दिन इस पुण्य ग्रंथ को देखा तो विचार आया कि इस ग्रंथ का हिन्दी में पद्यानुवाद ही करूं, जो तैयार होकर आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है भगवान् ने जो भी निर्देश दिये हैं हृदय से ग्रहण कर अपने जीवन में उतारना ही हमारा कर्तव्य है।
मुझे आशा है कि इस प्रवाहिका के साथ श्री स्वामीनारायण भगवान का नाम जुड़ा है इसका सदुपयोग हो तो मेरा प्रयत्न सफल समहूँगा। ग्रंथ का सारा निचोड़ 7 पद्यों में परिचय रूप में दे दिया है।
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