बिहार के कैमूर पर्वत श्रृंखला के पंवरा पहाड़ पर स्थित श्री मुंडेश्वरी देवी मंदिर भारत की सबसे प्राचीन शक्ति-आराधना परंपराओं में से एक है। माना जाता है कि यहाँ माता का पूजन ईसा की पहली शताब्दी से निरंतर होता आ रहा है। मंदिर का स्थापत्य गुप्तकालीन एवं नागवंशीय कला का अद्वितीय उदाहरण है। यहाँ की अधिष्ठात्री देवी भैरवी स्वरूपा शक्ति हैं, जिन्हें मुंडेश्वरी के नाम से जाना जाता है। माँ मुंडेश्वरी की महिमा यह है कि वे भक्तों को संकटों से मुक्त कर निर्भय बनाती हैं और साधकों को आध्यात्मिक सामर्थ्य प्रदान करती हैं। यहाँ देवी का स्वरूप तांत्रिक और शैव-शाक्त दोनों साधनाओं का संगम है। धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में वर्णित है कि शक्ति की उपासना बिना भक्ति और साधना के पूर्ण नहीं होती। मुंडेश्वरी देवी की विशेषता यह है कि यहाँ माँ की आराधना में बलिप्रथा का प्रतीकात्मक स्वरूप भी मिलता है, जिसे "बलि-तर्पण" कहा जाता है। यह माता की तांत्रिक परंपरा का द्योतक है।शक्ति-आराधना भारतीय संस्कृति की आत्मा है। मुंडेश्वरी देवी इस परंपरा की प्राचीनतम देवी हैं, जिनके चरणों में समर्पित होकर भक्त भयमुक्त और कृपाशील जीवन प्राप्त करता है। इस पुस्तिका की भूमिका यह है कि स्तोत्र साधक को दार्शनिक भावभूमि देता है। चालीसा भक्ति और लोक-रस में जोड़ती है। आरती भक्त को आनंद और उत्सव में डुबो देती है। मुंडेश्वरी माता की आराधना तांत्रिक और शैव शाक्त परंपराओं का अद्भुत संगम है। यही कारण है कि यह पुस्तिका केवल भक्ति-पाठ नहीं, बल्कि साधना मार्गदर्शक भी है। यह पुस्तिका अपने पाठकों को निम्नलिखित भावभूमियों से जोड़ता है ऐतिहासिक संदर्भ में मुंडेश्वरी मंदिर गुप्त और नागवंशीय काल से निरंतर पूजा-स्थल रहा है। यह भारत की शक्ति-परंपरा की सतत धारा का द्योतक है। दार्शनिक संदर्भ में यहाँ की उपासना केवल मूर्ति-पूजन नहीं है, बल्कि शक्ति और शिव के एकत्व की साधना है। देवी यहाँ "भैरवी-शक्ति" स्वरूपा हैं, जो साधक को संतुलन, संहार और सृजन की अनुभूति कराती हैं। भक्ति-साधना संदर्भ में स्तोत्र और चालीसा पाठ में प्रयुक्त छंद और पद पाठक को भक्तिरस से भर देते हैं। "जय मुंडेश्वरी अंबे भवानी" का जप मन को एकाग्र कर श्रद्धा की गहराई तक पहुँचाता है। आध्यात्मिक-सांस्कृतिक संदर्भमें इस पुस्तिका के माध्यम से न केवल मुंडेश्वरी माता का स्वरूप सामने आता है, बल्कि बिहार और कैमूर की शक्ति-परंपरा भी उजागर होती है। यह संस्कृति, लोक-परंपरा और तांत्रिक साधना का अद्भुत संगम है।इस स्तोत्र-चालीसा पुस्तिका का उद्देश्य श्रद्धालुओं को एक ऐसा संपूर्ण पाठ-ग्रंथ देना है, जिसमें ध्यान, विनियोग, स्तोत्र, अष्टक, चालीसा, और आरती सब सम्मिलित हों। यह केवल पाठ्य-संग्रह नहीं, बल्कि एक साधना मार्गदर्शिका भी है, जो श्रद्धालुओं को माता की शरण में आस्था, भक्ति और साधना-अनुभूति से जोड़ता है।
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