सिंधी बालसाहित्य गुण, परिणाम, कथ्य तथा शिल्प की दृष्टियों से पर्याप्त समृद्ध है एवं बड़ी तेज़ी से अपने कदम बढ़ाए है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ज्ञान के साहित्य का एक नया आयाम जुड़ने से उस में पहेले की अपेक्षा अधिक पूर्णता आई है। सिंधी बालसाहित्य के दो आयाम है, स्वतंत्रता के बाद सिंध प्रांत का सिंधी बालसाहित्य एवं भारत का सिंधी बालसाहित्य। प्रकाशनों की संख्या में आशातीत वृद्धि के साथ-साथ लखन में भी पहले की अपेक्षा अधिक पूर्णता आई है। साज-सज्जा के नित नए कीर्तिमान स्थापित हुए हैं, मुद्रण - कला की दृष्टि से भी यह पहले की अपेक्षा अधिक आकर्षक और कलात्मक है। मनोरंजन तथा ज्ञानार्जन के दिन-प्रतिदिन बढ़ते साधनो के विकास के बावजूद लेखकों, अकादमियों तथा सिंधी भाषा विकास परिषद, केन्द्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने इस दिशामें निरन्तर जागरुकता का परिचय देकर बालसाहित्य को समृद्ध करने का स्तुत्य प्रयास किया है।
सचित्र विविध रंगी बाल साहित्य सामयिको का प्रकाशन हो रहा है। अनेक पुस्तकें इतनी अच्छी मानक, गुण स्तरीय छपी है कि उन्हें देखकर पाठक वर्ग आश्चर्य चकित रह जाता है। सिंधी बालसाहित्य समृद्ध, रोचक, मंनोरजन एव नवीनता से वैज्ञानिक ढंग से भरपूर होते हुए भी सिंधी आलोचकों की उपेक्षा का शिकार हैं।
बालसाहित्य की विभिन्न विधाओं पर स्वतंत्र समीक्षात्मक लेखों, निबंधो, ग्रंथो का तो अकाल ही है। बालसाहित्य पर साहित्यक गोष्ठियों का भी अकाल है। समीक्षा गोष्ठियाँ का भी अभाव है तो दूर रहीं वार्षिक लेखा-जोखा भी किसी पत्रिका में प्रकाशित नहीं हो रही। समूचे बालसाहित्य का विश्लेषण एव मूल्यांकन करनें वाला ग्रंथ, पत्रिका भी उंगलियाँ गिनी जा सकती है। प्रस्तुत पुस्तक का सर्जन, प्रकाशन इसी अभाव की पूर्ति के लिए किया गया है। इस पुस्तक में सिंधी बालसाहित्य के विविध संदर्भ इतिहास विवेचन दृष्टि के अवलोकन के साथ-साथ सिंधी लोक-बालसाहित्य विशेष सिंधी लोरियां सिंधी लोक साहित्य के संदर्भ में समावेश किया गया है। शोधपरक सर्वेक्षण सम्यक परीक्षण और निष्पक्ष मूल्यांकन के माध्यम से सिंधी-बालसाहित्य को निरन्तर स्वस्थ एव पुष्ट बनाए रखने का दायित्व निभानें का प्रयास इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है।
विश्वविद्यालयों के अध्यापकों की भी बालसाहित्य के प्रति उदासीनता रही है। इस दिशा में केवल एक-दो ही शोध कार्य हुए है, वे सिंधी बालसाहित्य को कोई नई दिशा नहीं दे सके हैं। वे अपने आपको बालसाहित्य का मसीहा, भीष्म पितामह समझ बैठे हैं। वे बालसाहित्य की शक्ति को उभारने में भी अपनी निधारित की हुई सीमाओं के अंदर ही धूमते रहे हैं। ये सिंधी बालसाहित्य के कहने वाले महारथी नई-नई कल्पनाओं के माध्यम से कुछ नया खोजने वैज्ञानिक दृष्टि, वैज्ञानिक बालसाहित्य लिखने में भी असर्मथ रहे हैं। अथवा परिश्रम की सूझ-बूझ देने वाली लोक कथाओं पौराणिक कथाओं तथा परीकथाओं को भी उन्हों ने हिकारत भरी नज़र से देखा है जिसे उन के आचार्य प्रवर अब तक देखते चले आऐ थे।
सिंधी भाषा में सिंधी बाल-लोकसाहित्य की मात्रा भी अधिक रही है। भारतीय लोक साहित्य के संदर्भ में सिंधी लोरियों का भी अवलोकन सिंधी बाल लोकसाहित्य के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
हम जानते है कि मनुष्य शिशु के रुप में माँ की गोद में आता है, और वात्सल्य रस से ओत प्रोत मीठी-मीठी लोरियां सुनता है। माँ की गोद कला की सच्ची पाठशाला है, जहां केवल हृदय का ही आधिपत्य होता है। स्पष्ट तथा सरल भाषा के सूत्ररुप से गाई हुई लोरियां किसी भी देश तथा जाति के साहित्य की आभा एवं महिमा को चार चांद लगा सकती है। सिंधी माँ के हृदय गीत जो सर्व साधारण की वाणी में लोरियों के नाम से विख्यात है तथा शिशु माँ की गोंद में दूध पीता जाता है और लोरियां भी सुनता जाता है जैसी शिशु रिझाने वाली ममता मयी लोरियों का भी इस पुस्तक में समावेश किया गया है।
पुस्तक में रंग-बिरंगे महकते हुए सिंधी बालसाहित्य के विविध रंगी फूलों का समावेश किया गया है। ये फूल किसी बगिया को आर्कषण केन्द्र बनाएगें ऐसा मेरा विश्वास है।
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist