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शृंगवेरपुर-क्षेत्रीय हिन्दी साहित्य- Sringverpur-Regional Hindi Literature

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Tradition and Pradeya Thesis Accepted by the Faculty of Languages (Hindi) of Punjab University, Chandigarh

Specifications
Publisher: KITAB MAHAL
Author Bhrigu Kumar Mishra
Language: Hindi
Pages: 520
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 650 gm
Edition: 2022
ISBN: 9789392080432
HBQ177
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Book Description
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पुस्तक परिचय

इस पुस्तक में निषादराज गुह के पौराणिक राज्य श्रृंगवेरपुर (गंगा सई नदी के मध्य क्षेत्र) की साहित्यिक परंपरा का अन्वेषण संस्कृत साहित्य से आरंभ होकर आधुनिक हिंदी साहित्य पर समाप्त होता है। हिंदी के भक्तिकालीन कवि देव मुरारि से प्रारंभ होकर रीतिकालीन कवि ठाकुर, प्रेम सखी, तोष, भिखारी दास, राम चरण दास तथा सेनापति नागोजी भट्ट की अभिन्नता की नई स्थापना के साथ आधुनिक हिंदी साहित्य के ग्रंथों तथा रचनाकारों की एक लंबी तालिका प्रस्तुत है। इसमें भारतेंदु युगीन साहित्यकार राम प्रसाद तिवारी से प्रारंभ होकर ख्वाजा अहमद, आनंदी प्रसाद श्रीवास्तव, महेश प्रसाद, ठाकुर दत्त मिश्र, करपात्री जी, कृपालु जी, भानुप्रताप त्रिपाठी, ओंकार नाथ उपाध्याय, रामशरण सिंह, मातादीन शुक्ल, आद्या प्रसाद उन्मत्त, संगम लाल पाण्डेय, दीनानाथ शुक्ल, मत्स्येंद्र शुक्ल, यास्मीन सुल्ताना नकवी, लोक कवि जुमई खां आजाद, निर्झर प्रताप गढ़ी तक विस्तृत है। ऐसे अनेक रचनाकारों और उनके साहित्य का परिचय इस पुस्तक में है, जो साहित्य इतिहास ग्रंथों में सर्वथा उपेक्षित हुए हैं। वर्तमान में श्रृंगवेरपुर गंगा तट पर अवस्थित प्रयागराज जनपद का एक विकासखंड होते हुए एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यहीं पर श्री राम कथा का प्रसिद्ध केवट द्वारा श्रीराम पाद प्रक्षालन प्रसंग घटित हुआ था। प्रस्तुत ग्रंथ पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ का स्वीकृत शोध प्रबंध है।

यह पुस्तक सुधी पाठकों को हिंदी साहित्य के अनेक अज्ञात और अल्पज्ञात साहित्यकारों तथा उनके साहित्य की अनेक पाण्डुलिपियों से परिचय कराने में सफल होगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

लेखक परिचय

डॉ. भृगुकुमार मिश्र का जन्म ग्राम बेरावाँ, प्रयागराज जनपद में 10 जनवरी, 1966 ई. को एक सामान्य धर्मभीरू कृषक परिवार में हुआ था। 10वीं तक प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण अंचल में लेने के बाद प्रयागराज नगर में विज्ञान विषय से सन् 1983 में 12वीं कक्षा के अध्ययन के समय ही भारतीय वायु सेना की तकनीकी शाखा में चयन हो गया और अद्यावधि सेवारत हैं। वायु सेना सेवा काल में ही एम.ए. और पीएच.डी की शिक्षा प्राप्त की। आपने अनेक पत्र-पत्रिकाओं में योग, साहित्य, अध्यात्म पर फीचर लेख और कहानियाँ लिखीं, जिनमें प्रमुख हैं दैनिक भास्कर, जागरण, मध्य भारत परिदृश्य तथा सिलसिला। आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं-1. व्यावहारिक हिंदी 2. साधु बाबा चालीसा। अप्रकाशित अनूदित ग्रंथ भारतीय वायु सेना और मेरा सेवाकाल एयर चीफ मार्शल पी सी लाल तथा अप्रकाशित ग्रंथों में बेरावों सेरावों की आपबीती, योगी बनें-निरोगी बनें पुस्तकें प्रमुख है।

निवेदन

लगभग बीस वर्ष हुए. एक वायु सैनिक बीकानेर से स्थानान्तरित होकर चण्डीगढ़ आया और उसने मुझसे इसलिए सम्पर्क किया कि वह किसी कथाकार पर शोध करना चाहता था। मेरे लिए यह सामान्य बात थी। मैंने उसे टालने के लिए कह दिया कि आने वाले कुछ समय तक मेरे पास किसी भी शोधार्थी के लिए कोई भी स्थान खाली नहीं है। समय बीतता रहा और यह युवक लगातार आता रहा। मैं भारतीय सैनिकों के देश प्रेम के प्रति बहुत ही मुग्ध हूँ। अतएव मैंने उसे स्वीकृति तो दे दी और उसका कोई अन्य विषय शोधार्थ लेने की सलाह दी। उससे बातचीत के प्रसंग में यह जाना कि वह रामकथा से प्रसिद्धि प्राप्त श्रृंगवेरपुर के पावन क्षेत्र का मूलतः निवासी है। मैंने श्रृंगवेरपुर क्षेत्र के साहित्यिक सर्वेक्षण को उसको सलाह दी। वह इस काम में जुट गया और बहुमूल्य सामग्री खोज लाया। इस प्रकार उसका शोध-विषय 'भृगवेरपुर-क्षेत्रीय हिन्दी साहित्य परम्परा और प्रदेय' आकारित ही नहीं हुआ, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ के द्वारा स्वीकृत भी हो गया। इस विषय के शोधकर्ता डॉ. भृगुकुमार मिश्र थे, जो अब एक सुयोग्य योग शिक्षक भी है. देश प्रेम भावोत्पन्न वायुसैनिक भी हैं, हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के गम्भीर अध्येता भी हैं और पुस्तक लेखक भी हैं। यह उनकी दूसरी पुस्तक है, जो प्रकाशित हो रही है।

आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने 'रामायण' के 'अयोध्याकाण्ड' के पचासवे सर्ग में राम-लक्ष्मण-सीता के वनगमन के दो प्रसंग में कोसलदेश से आगे के मार्ग में त्रिपथगा गंगानदी और इंगुदी वृक्ष के साथ-साथ श्रृंगवेरपुर का वर्णन अत्यन्त मनोयोग से किया है। आदिकवि ने ""तत्र राजा गुहो नाम रामस्यात्मसम सखा। निषादजात्यो बलवान स्थपतिश्चेति विश्रुत"" कहकर वहाँ के राजा निषादराज गुह का भी उल्लेख किया है। 'अध्यात्मरामायण' के अयोध्याकांड के पाँचवे सर्ग में श्लोक संख्या साठ और इकसठ में 'श्रृंगवेरपुर' तथा 'शिशुपा' वृक्ष का उल्लेख हुआ है तथा बासठवें त्रेसठवें श्लोक में निषादराज गुह की भगवान श्रीराम के प्रति प्रीति वर्णित हुई है। ये उल्लेख श्रृंगवेरपुर क्षेत्र की महत्ता को प्रमाणित करने में सब प्रकार से समर्थ है। मैं डॉ. भृगुकुमार मिश्र जी के साथ उस क्षेत्र में गया था और वहाँ मैंने वे स्थल भी देखें, जहाँ पुरातत्वविदों ने उत्खनन कराया था। रानियों के वे वृहदाकार स्नानागार भी देखे थे, जो उत्खनन से प्राप्त हुए थे और जिनमें भगवती गंगा का पावन जल आया करता था।

श्रृंगवेरपुर क्षेत्र की कीर्ति का आधार रामकथा से इतर यह भी है कि इसका सम्बन्ध श्रृंगी ऋषि से हैं। श्रृंगी पुराण-विश्रुत ऋषि हैं और उनके आवास से पावित यह भू-भाग अत्यन्त पुण्यभूमि तो है ही. तीर्थोपन भी है। अतएव इस क्षेत्र के साहित्य विषयक अवदान को खोजना और उसका अध्ययन करना कितना रूचिकर और महत्वपूर्ण विषय है, उसे सुधीजन आसानी से समझ सकते हैं।

यदि भूमि पुण्यभूमि है, तो वातावरण शुचितापूर्ण होगा। वातावरण की शुचिता भूमि को उर्वरता देती है। भूमि की उर्वरता उसके उत्पाद को तद्‌गुणता देती है। इस प्रकार भूमि की, वातावरण की शुचिता उसके उत्पाद में अवतरित प्रकृत्या हो जाती है और उस शुचिता सम्पन्न उत्पाद का भोक्ता मनुष्य का चित्त उस सात्त्विकता से सम्पन्न हो जाता है, जो सर्जना में बहुत बड़ी हेतु बनती है। सर्जना के लिए चित्त की जो समाधिस्थता जरूरी होती है, वह इसी सात्त्विकता से उद्‌भूत होती है। जैसा अन्न, वैसा मन्ना, के न्याय की यही परिणति है। चित्त के विशदीभूत हुए बिना लोक और शास्त्र की वह समझ उत्पन्न नही होती, जिसे आचार्य प. रामचन्द्र शुक्ल ने हृदय की मुक्तावस्था कहा था और जिस हृदय की मुक्ति के बिना लोकमत का मनुष्य साक्षात्कार करने में समर्थ नहीं होता।

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