भारत देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 15 अगस्त सन् 2021 के दिन लालकिले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में अपना भाषण देते हुए स्पष्ट रूप से कहा था कि "हम आज़ादी का जश्न मनाते हैं लेकिन बंटवारे का दर्द आज भी हिंदुस्तान के सीने को छलनी करता है। ये पिछली शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदी में से एक है। आज़ादी के बाद इन लोगों को बहुत ही जल्द भुला दिया गया है। कल ही भारत ने यह भावुक निर्णय लिया है कि अब से हर वर्ष 14 अगस्त विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में याद किया जाएगा। जो लोग विभाजन के समय अमानवीय हालात से गुजरे, जिन्होंनें अत्याचार सहे, जिन्हें सम्मान के साथ अंतिम संस्कार तक नसीब नहीं हुआ, उन लोगों का हमारी स्मृतियों में जीवित रहना भी उतना ही ज़रूरी है। आज़ादी के 75 वें स्वंत्रता दिवस पर विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का तय होना ऐसे लोगों को हर भारतवासी की तरफ से आदरपूर्वक श्रद्धांजलि है।"
उपरोक्त पंक्तियों के केंद्र में एक तरफ देश की स्वतंत्रता हेतु सर्वस्व न्योछावर करने वाले ज्ञात अज्ञात नायक नायिकाओं के स्मरण का भाव है तो दूसरी ओर देश के विभाजन का दंश विस्थापन, प्रव्रजन, यातनाएं झेलने वाले बंधु-भगनियों के प्रति उनके परिवार के प्रति भावुक भावनात्मक भाव जागरण का बोध है। देश वासियों के हृदय में संवेदनाएं अंकुरित करने का मानस है। विभाजन की विभीषिका का स्मरण करने की भाव-पीठिका में देश-भक्ति है। सामाजिक एकता का सूत्र है। भविष्य में देश भौगोलिक रूप में खंडित न हो। जो खंडित हुआ है उसे अखंडित किया जा सके। अब ऐसे किसी भी चक्रव्यूह में हम भारतवासी न फसें जिसकी पीड़ा पीढियों तक भोगनी पड़े। सहनी पड़े। इतिहास के पृष्ठ पढ़ते रहने से भविष्य में मानव मन में अनैतिक, अमर्यादित कृत्य करने से बचने की महती दिशा और शिक्षा प्राप्त होती है।
भारत के विभाजन ने न केवल हमारे ऐतिहासिक-भौगोलिक, एकात्मता के भाव को खंडित किया है, अपितु हमारे सांस्कृतिक धार्मिक सद्भाव की भावना को तहस-नहस किया है। सामाजिक समरसता के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया है।
सच्चिदानंद जोशी मूलतः और अंततः रंगकमी है। संस्कृति पत्रकारिता, समाज, शिक्षा, इतिहास आपके प्रिय विषय हैं। जनसंचार सूचना प्रौद्योगिकी संप्रेषण संवाद कौशल, कला प्रबोधन, संस्कृति प्रबंधन जैसे विषयों पर लेखन प्रशिक्षण एवं व्याख्यान में अग्रेसर की भूमिका का निर्वहन करते हैं। कहानी, कविता, नाटक, लनित लेख, व्यंग्य इत्यादि विषयों पर अब तक आपकी 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आप ने प्रकाशन विभाग के लिए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के भाषणों का संपादन कार्य सम्पन्न किया है और वर्तमान में भी निरंतर कर रहे हैं। आप माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के संस्थापक रजिस्ट्रार एवं कुशाभाऊ करे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति रहे हैं। बहुआयामी व्यक्तित्व के चनी डॉ. जोशी जी को अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत किया गया है जैसे-मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दीनदयाल उपाध्याय सम्मान, जनार्दन राय नागर संस्कृति सम्मान, कला तपस्वी सम्मान। नाटकों के लेखन, निर्देशन, मंचन एवं अभिनय में आपकी गहरी अभिरूचि है। अभी तक आपने पच्चीस से अधिक नाटकों का निर्देशन तथा टेलीविजन के लिए टॉक शो किया है। वर्तमान में आप भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के संस्थान 'इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र' के सदस्य सचिव हैं और शिक्षा से संबंधित अखिल भारतीय संस्था भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय अध्यक्ष हैं।
रविप्रकाश टेकचंदाणी शैक्षणिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में समान रूप से सक्रिय हैं। डॉ. टेकचंदाणी भारतीय भाषाओं के अध्येता व प्रेमी है। आप दिशी विश्वविद्यालय के आधुनिक भारतीय भाषा एवं साहित्यिक अध्ययन विभाग में सिंधी भाषा और साहित्य के प्रोफेसर हैं। डॉ. टेकचंदाणी की सिंधी भाषा के अलावा हिंदी, अवधी, उर्दू और अंग्रेजी पर भी अच्छी पकड़ है। आपकी अब तक 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सिंधी भाषा के विकास, उन्नयन और संवर्धन हेतु अनेक पुरस्कार और सम्मान आपको प्राप्त हो चुके हैं। जिनमें प्रमुख है भाऊराव देवरस स्मृति न्यास से पं. प्रताप नारायण मिश्र स्मृति युवा साहित्यकार पुरस्कार, इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती से उदय शंकर भट्ट पुरस्कार, सिंधी अकादमी, दिल्ली सरकार से कयेतर सिंधी साहित्य सम्मान, हिंदुस्तान समाचार एजेंसी से भारतीय भाषा सम्मान तथा हिंदी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी से अमृतलाल नागर अवार्ड। आप विविध शैक्षणिक तथा सामाजिक संस्थाओं के सम्माननीय सदस्य हैं। आप भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय के भी निदेशक रह चुके हैं। वर्तमान में आप भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय प्रकाशन प्रमुख के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। संप्रति राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के निदेशक हैं।
भारत देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 15 अगस्त सन् 2021 के दिन लालकिले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में अपना भाषण देते हुए स्पष्ट रूप से कहा था कि "हम आजादी का जश्न मनाते हैं लेकिन बंटवारे का दर्द आज भी हिंदुस्तान के सीने को छलनी करता है। ये पिछली शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदी में से एक है। आज़ादी के बाद इन लोगों को बहुत ही जल्द भुला दिया गया है। कल ही भारत ने यह भावुक निर्णय लिया है कि अब से हर वर्ष 14 अगस्त विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में याद किया जाएगा। जो लोग विभाजन के समय अमानवीय हालात से गुजरे, जिन्होंनें अत्याचार सहे, जिन्हें सम्मान के साथ अंतिम संस्कार तक नसीब नहीं हुआ, उन लोगों का हमारी स्मृतियों में जीवित रहना भी उतना ही ज़रूरी है। आज़ादी के 75 वें स्वंत्रता दिवस पर विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का तय होना ऐसे लोगों को हर भारतवासी की तरफ से आदरपूर्वक श्रद्धांजलि है।"
भारत के विभाजन ने न केवल हमारे ऐतिहासिक-भौगोलिक, एकात्मता के भाव को खंडित किया है, अपितु हमारे सांस्कृतिक धार्मिक सद्भाव की भावना को तहस-नहस किया है। सामाजिक समरसता के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया है।
विभाजन विभीषिका की कहानियों में ऐसी ही मन की बातों को उद्धृत किया गया है। देश-काल, वातावरण, परिस्थिति के चित्रों को चित्रित किया गया है। हिंदी, सिंधी, पंजाबी, मराठी, गुजराती, सिराइकी, बांग्ला भाषा में लिखी गई कहानियों की कथावस्तु में एक तरफ चीख, खून, बलात्कार, बिछोह, विस्थापन, प्रव्रजन की पीड़ा प्रदर्शित की गई है तो दूसरी ओर अपने जन्म स्थान की गलियों, मोहल्लों, खेतों, खलिहानों, दोस्तों यारों के साथ बिताए पलों के रेखाचित्र अंकित किए गए हैं।
6 जनवरी 1948' शीर्षक से लिखी गई कहानी विभाजन के उपरांत उत्पन्न हुई अव्यवस्था की परतें खोलती है। कराची सिंध में घटी लूटमार की घटना का चित्र खींचती है। 'धुआं' कहानी 6 जनवरी 1948 की घटना को विस्तार देती है। मारकाट में तन के साथ-साथ मन भी घायल होता है। हिंदू-मुस्लिम के मध्य घृणा भाव बढ़ता है। हिंदू मुस्लिम संबंधों पर मनोवैज्ञानिक पक्ष को प्रदर्शित करती कहानी है धुआं। 'एक और विभाजन' कहानी में विस्थापन के दौरान सिंघ से हिंद की कठिन यात्रा करते समय हिंदू परिवार के बालक के बिछोह के दर्द का चित्रण किया गया है, बालक के खोजने का माता, पिता, चाचा के द्वारा किया गया जतन असफल रहता है।
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