मेरे मित्र प्रो० रामपूजन तिवारीने 'सूफी साधना और साहित्य के विषयमें यह महत्त्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। उन्होंने सूफीमतकी साधना और साहित्यके मूल रूपको समझनेके लिए इस्लाम धर्मके साथ उसके सम्बन्धको स्पष्ट किया है, इस्लामके आविर्भावके समय अरब देशोंकी, जो सामा-जिक और राजनीतिक अवस्था थी, उसे समझानेका प्रयास किया है, ईरानकी तत्कालीन परिस्थितिपर उसकी जो प्रतिक्रिया हुई उसका विश्ले-पण किया है और इस पृष्ठभूमिमें इस्लामके अन्तर्गत उत्पन्न होनेवाले विभिन्न सम्प्रदायोंका विवरण भी प्रस्तुत किया है। यद्यपि भारतवर्ष में इस्लामके अनुयायियोंकी संख्या बहुत अधिक है और उनके साथ हमारा रात-दिनका सम्बन्ध है, तथापि यह दुःखकी ही बात है कि इस शक्ति-शाली धर्म-मतके आविर्भाव और प्रसारकी कहानी हिन्दी पाठकोंको उचित रूपमें मालूम नहीं। तिवारीजीने अनेक प्रामाणिक इतिहासकारोंकी रचनाओंके आधारपर इस्लामके उद्भव और प्रसारका लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। यह विवरण सूफीमतकी जानकारीके लिए तो आवश्यक है ही, और वस्तुतः इसी उद्देश्यसे यह लिखा भी गया है, परन्तु साधारण हिन्दी पाठकों के लिए स्वतन्त्र रूपमें भी इसका महत्त्व है क्योंकि इस पुस्तकके इस अंशसे हम भारतवर्षमें प्रचलित एक अत्यन्त शक्तिशाली धर्म-मतके स्वरूपको समझनेमें सहायता पाते हैं। विद्वान् लेखकने इस्लामके प्रादुर्भाव और उसके प्रभावमें प्रथम आनेवाले देशोंकी राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्थाकी पृष्ठभूमि प्रस्तुत करके मूल सूफी भावनाके आविर्भाव और प्रसारकी कहानीको सहज और मनोरंजक बना दिया है और फिर एक-एक करके सूफी साधकों, उनके सिद्धान्तों और उनके सम्प्रदायोंका विस्तारपूर्वक परिचय दिया है। उन्होंने दिखाया है कि किस प्रकार सूफी साधकोंने प्रेम और ज्ञानकी साधनाको मानव-ग्राह्य बनाया है। भारतवर्षमें भी यह सम्प्रदाय व्यापक रूपसे प्रतिष्ठित हुआ है। तिवारीजीने उसका भी विस्तारपूर्वक परिचय दिया है। साधकोंने भारतीय-काव्यको नवीन समृद्धि दान की है। भारतीय काव्यकी इस नवीन और प्रभावशाली शाखाका परिचय दिये बिना यह अध्ययन-अपूर्ण रह जाता। तिवारीजीने उसका भी संक्षिप्त परिचय दे दिया है। इस प्रकार यह पुस्तक इस्लाम धर्मके आवि-र्भावसे लेकर सूफी सम्प्रदायोंके प्रादुर्भाव, प्रसार और प्रतिष्ठातककी कहानी बड़े सुन्दर ढंगसे प्रस्तुत करती है। हम भाव-जगत्के अलबेले मस्त साधकोंकी दुनियामें विश्वासपूर्वक विचरण करने लगते हैं; जहाँ प्रेम दिव्य और अलौकिक रूपमें प्रकट होता है और स्वाथों और संघर्षोंसे मरी हुई दुनियादारी तुच्छ और नगण्य प्रतीत होती है। यह मस्तीकी दुनिया धन्य है जहाँ आसक्ति और लगन अपनी चरम ऊँचाईपर जाकर मनुष्य-जीवनको चरितार्थ करती रहती है। तिवारीजीने इस पुस्तककी रचना करके निस्संदेह सहृदयोंका उपकार किया है।
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