राजस्थान के मूर्धन्य पत्रकार श्री चन्द्रगुप्त वाष्र्णीय ने "राजस्थान पत्रिका" के संपादकीय पृष्ठ पर 'सूक्ति सुधा' नामक स्तंभ शुरू किया था। इसके बाद इसी स्थान पर संस्कृत के लोकोक्ति संग्रह' न्यायावली' के उपयोगी सूत्रों की टीका प्रस्तुत की। फिर यह स्तंभ' आर्ष वचन' शीर्षक से चला और कुछ महीने बाद' हितोपदेश' की सूक्तियों ने इसका स्थान लिया। यह स्तंभ आपातकाल में सेंसर ने बन्द करवा दिया। आपातकाल की समाप्ति पर नया स्तंभ 'सुभाषित प्रदीप' शीर्षक से शुरू हुआ जो जारी है। संप्रति इसके अन्तर्गत चाणक्य सूत्रों की विशद व्याख्या की जा रही है। ये सारे स्तंभ वास्तव में एक ही श्रृंखला की कड़ियां हैं।
विभिन्न शीर्षकों से प्रकाशित होने वाली इस सद्विचारपूर्ण सामग्री में ' पत्रिका' के सभी वर्गों के पाठकों ने गहरी रुचि प्रकट की और इसे पुस्तकाकार प्रकाशित करने के लगातार सुझाव दिये। यह प्रकाशन पाठकों के इसी अनुरोध का परिणाम है। 'सुभाषित प्रदीप' स्तंभ में जड़े लगभग एक हजार नों में से चयन किये हुए २८७ नग इस माला में पिरोय हुए हैं।
धर्म, नीति, सदाचार, विज्ञान, शिक्षा, राजनीति, स्वास्थ्य, चरित्र आदि विषयों से संबंधित विभिन्न देशों के आप्तजनों की ये सूक्तियां 'सर्वजन हिताय' को ध्यान में रखकर चुनी गई हैं।
सुभाषितों के जितने भी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, उनमें या तो केवल सूक्तियां दी गई हैं, या सूक्तियों के साथ उनके अनुवाद दिये गये हैं। 'सुभाषित प्रदीप' की विशेषता यह है कि इसमें सूक्तियों के अर्थों के साथ उनकी व्याख्या भी की गई है। ये व्याख्याएं भी वर्तमान काल तथा परिस्थिति के संदर्भ में लिखी हुई हैं। इससे पुस्तक की उपयोगिता तथा उपादेयता को चार चांद लग गये हैं। इस लिहाज से यह पुस्तक अपने ढंग की अपूर्व और निराली है।
मुझे आशा है कि सुभाषितों का यह अनूठा संकलन हिन्दी साहित्य की शोभा बढ़ायेगा।
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