उत्तरांचल की प्रसिद्ध लेखिका का महत्त्वपूर्ण उपन्यास ।
'सुरजू के नाम' की पृष्ठभूमि पूर्वी भूटान का वह हिस्सा है जिसका चप्पा चप्पा दुर्गम है। यहाँ हाथों में छेनी और फावड़ा लिये पहाड़ तोड़ते जो मज़दूर दिखाई देते हैं वे बिहार, असम आदि निकटस्थ प्रदेशों से किसी मजबूरी में आते हैं। इसी श्रमशील सर्वहारा वर्ग की स्त्री है सुकूरमनी, जो इस उपन्यास का केन्द्रीय चरित्र है।
सुकूरमनी गोद में अपने दुधमुँहे बच्चे और आँखों में खुशहाली और बेहतरी के बहुरंगी सपने लेकर भूटान के इस दुर्गम पहाड़ी प्रदेश में आ पहुँची है। यहाँ आकर उसने कितना विकट संघर्ष किया, जाने कितने अनचाहे पड़ावों को पार किया- इसकी अद्भुत गाथा है 'सुरजू के नाम' उपन्यास में।
आशा है, पहाड़ी अंचल की यह मार्मिक कथा हिन्दी के सहृदय पाठक को एक नयी अनुभूति देगी।
जन्म : उत्तरांचल में चमोली जिले के एक गाँव डुंगड्वाली में।
सम्पूर्ण शिक्षा मसूरी में। मेरठ विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. (अँग्रेजी)। गत तीस वर्षों से अध्यापनरत। नाइजीरिया तथा भूटान में भी अध्यापन।
हिन्दी तथा अँग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन। विगत पन्द्रह वर्षों से हिन्दी लेखन में विशेष सक्रिय।
प्रकाशित कृतियाँ ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ अर्नेस्ट हेमिंग्वेज़ शार्ट स्टोरीज एण्ड नान फिक्शन (1994), द डुक्पा मिस्टिक : भूटान इन ट्वंटी-फर्स्ट सेंचुरी (2004), गागर भर पानी (कहानी संग्रह, 2004), दूसरा नरककुण्ड (कहानी संग्रह, 2004)।
सम्मान : वर्ष 2002 में कहानी के लिए आर्य स्मृति सम्मान ।
सम्प्रति : प्रोफ़ेसर, अँग्रेजी विभाग, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला।
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