वस्तुतः उन दिनों देश में कुछ ऐसी भावना बनी, कि भारत का नया युग तो दो सौ वर्ष पूर्व अंग्रेज़ों के आने के साथ ही आरम्भ हो चुका था। एक अंतरराष्ट्रीयतावादी दृष्टि के अंतर्गत यह माना जाने लगा, कि औद्योगिक क्रांति के साथ एक ही बार में सारा संसार परिवर्तित हो चुका है। अब संपूर्ण विश्व की नियति उसी औद्योगिक विकास की दिशा में बढ़ते जाना है। इस दिशा में बढ़ने के लिए अंग्रेज़ों के राज्य के दौरान सुदृढ़ हुए राज्यतंत्र तथा अन्य संस्थागत व्यवस्थाओं का मज़बूत रहना आवश्यक दिखाई दिया। अंग्रेज़ी राज्य के समय की पराधीनता एवं स्वतंत्रता आंदोलन के समय की असुरक्षा की यादों के कारण, ये संस्थाएँ और भी अपरिहार्य लगने लगीं। अतः इन्हें बनाये रखने में ही देश की प्रायः समस्त सृजनात्मक शक्ति खर्च होने लगी।
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