स्वामी रामतीर्थ विश्वधर्म सम्मेलन में भाग लेने जापान गए थे, किन्तु वहां सम्मेलन नहीं हो पाया, तथापि उन्होंने जापानवासियों को वेदान्त के आलोक से अभिभूत कर दिया। इसके बाद वह अमरीका गए। इस भारतीय अकिंचन संन्यासी के आगे वहां के धनकुबेर नत-मस्तक हो गए। उनके महिमामय व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अमरीका-वासी उन्हें जीवित ईसामसीह कहने लगे और अनेक उनके शिष्य बन गए ।
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