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आलोक पथिक स्वामी स्वतंत्रानन्द: Swami Swatantranada The Reservoir of Light

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Specifications
Publisher: Chitrasen Prakashan Sansthan
Author: डॉ. कन्हैया सिंह (Dr. Kanhiya Singh)
Language: Sanskrit Text with Hindi Translation
Pages: 148
Cover: Paperback
8.5 inch X 5.5 inch
Weight 170 gm
NZD071
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Book Description

पुस्तक के विषय में

शास्त्र प्रतिपादित सत्य के व्याख्याता तो बहुत हैं पर इस सत्य को जीवन में उतार कर स्वयं ही आलोक-पुंज, चरमसत्य और अमर बनकर जीवन जीने वाले महापुरुष कम ही मिलते हैं । प्राचीन कथाओं में जनक- शुकादि जैसे जीवन्मुक्त, परमविरक्त, तत्वदर्शी, महात्माओं का उल्लेख तो मिलता है, पर आज के भौतिकवादी युग में ऐसे महात्माओं का प्रत्यक्ष दर्शन कठिन ही है । परम पूज्य स्वामी स्वतंत्रानन्द जी प्राचीन ऋषि-परम्परा में वर्णित जीवन्मुक्त महात्माओं की श्रेणी के एक महान संत थे । वे स्वयं आलोकपुंज थे और वे आलोक पथ पर विचरण करते रहते थे । वे समस्त शास्त्रों के निष्णात् अध्येता थे । उनमें व्याख्या-विश्लेषण की अद्भुत शक्ति थी । धारा-प्रवाह प्रवचन में लगता था कि कोई ईश्वरीय शक्ति उनके भीतर से प्रस्फुरित होकर शब्द के रूप में अपने अलौकिक अजल प्रवाह से श्रोता-मण्डल के ब्रह्मा- नंद में तिरोहित कर रही है । इन सबसे बड़ी बात यह थी कि स्वामीजी में सांसारिक रागद्वेष, संग्रह-परिग्रह, आत्म-पर का रंचमात्र भी स्पर्श नहीं था ।

स्वामी जी महाराज के लौकिक जीवन के सामान्य परिचय के साथ उनकी जीवन-लीला के अनेक लोकोत्तर प्रसंगों को इस पुस्तक मे एकत्र करने का प्रयास किया गया है । साथ ही उनका सत्संग जिन संतो- महात्माओं एवं विद्वानों से हुआ है, उसकी भी यथासंभव झाँकी प्रस्तुत की गयी है । कुछ अति निकट के भक्तों ने उनके संबंध अपने अनुभवों को संस्मरणबद्ध किया है जिनसे महाराजश्री की विभूतियों का कुछ दर्शन होता है । आधुनिक युग के एक विरल संत की यह भाँकी भौतिकता से आक्रांत मानव के लिए पाथेय बनेगी ।

लेखक के विषय में

डॉ० कन्हैया सिंह

जन्म-1 अगस्त, 1935, ग्राम धरबारा जनपद आजमगढ़।

शिक्षा-इण्टर (एम० के० पी० कालेज आजमगढ़) बी० ए० (शिबली नेशइल इण्टर कालेज आजमगढ़) एम० ए० तथा एल-एल० बी० (प्रयाग विश्वविद्यालय)

योग्यता-एम० ए० (हिन्दी) एल-एल० बी० पी-एच० डी० डी० लिट्०। एम० ए० योग्यता-सूची में प्रथम। एल-एल० बी० योग्यता-सूची में प्रथम। कुलपति पदक लैम्सडन गोल्ड मेडल सर हेनरी रिचर्ड गोल्ड मेडल राममोहन डे गोल्ड मेडल आदि से सम्मानित।

कार्यक्षेत्र-वकालत से प्रारम्भ जौनपुर में विधि-प्रवक्ता आजमगढ़ में हिन्दी-प्रवक्ता आगरा विश्वविद्यालय (क० मु० हिन्दी विद्यापीठ) में हिन्दी-प्रवक्ता आजमगढ़ में रीडर-अध्यक्ष।

इतर- नगर पालिका आजमगढ़ के निर्विरोध अध्यक्ष (1971-75)। आपातकाल में कैदी-क्रेदीय कारागार नैनी में मीसा-बंदी। उ० प्र० हिन्दी संस्थान, हिन्दुस्तानी एकेडमी, अ० भा० साहित्य परिषद दिल्ली की कार्यकारिणी से संबद्ध ।

प्रमुख प्रकाशन-हिन्दी सूफी काव्य में हिन्दू संस्कृति, पाठ संपादन के सिद्धान्त, हिन्दी पाठानुसंधान, रामचरित उपाध्याय-ग्रंथावली, दक्षिणांचल-दर्शन, वेदना के संवाद, अंधेरे के अध्याय, राहुल सांकृत्यायन, राहुल सांकृत्यायन-समग्र अनुशीलन, सूफीकाव्य: सांकृतिक अनुशीलन, साहित्यिक अवधी : काव्य भाषा और व्याकरण (प्रकाश्य) मलिक मुहम्मद जायसी, पदुमा-वति-मूलपाठ और साहित्यिक भाष्य (प्रकाश्य)

प्राक्कथन

हमारे देश की सांस्कृतिक परंपरा अंधकार से प्रकाश की ओर,असत् से सत् की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर अग्रसर करने वाली है । हम भगवान से प्रार्थना ही करते रहते हैं- तमसो मा ज्योतिर्गमय, असतो मा सद्गमय । हुमारे देश की मनीषा ने तमसाच्छन्न जगत् में एक अन्तर्मिहित आलोकपुंज को देखा, जड़-असत्-नश्वर जगत् मे परमसत्य का दर्शन किया तथा मरणशील संसार में नित्य-शाश्वत - अमर आत्मा के अनुसंधान द्वारा मृत्यु को हुाई नकार दिया। मृत्यु एक प्रतिभासित सत्य है, चरम सत्य तो अमरता है- अर्थात् आत्मा न कभी जनमता है और न कभी मरता है । वह अजर-अमर है ।

इस शास्त्र प्रतिपादित सत्य के व्याख्याता तो बहुत हैं पर इस सत्य को जीवन में उतार कर स्वयं ही आलोकपुंज, चरमसत्य और अमर बनकर जीवन जीने वाले. महापुरुष कम ही मिलते है। प्राचीन कथाओं में जनक- शुकादि जैसे जीवन्मुक्त,परमविरक्त, तत्वदर्शी, महात्माओं का उल्लेख तो मिलता है, पर आज के भौतिकवादी युग में ऐसे महात्माओं का प्रत्यक्ष दर्शन कठिन ही है । परमपूज्य स्वामी स्वतंत्रानन्दजी प्राचीन ऋषि-परम्परा में वर्णित जीवन्मुक्त महात्माओं की श्रेणी के एक महान संत थे । वे स्वयं आलोकपुंज थे और वे आलोक पथ पर विचरण करते रहते थे। वे समस्त शास्त्रों के निष्णात् अध्येता थे । उनमें व्याख्या-विश्लेषण कई की अद्भुत शक्ति थी । धारा-प्रवाह प्रवचन में लगता था कि कोई ईश्वरीय शक्ति उनके भीतर से प्रस्फुरित होकर शब्द के रूप में अपने अलौकिक अजल प्रवाह से श्रोता-मण्डल को ब्रह्मानंद में तिरोहित कर रही है । इन सबसे बड़ी बात यह थी कि स्वामी जी में सांसारिक राग-द्वेष, संग्रह-परिग्रह, आत्मपर का रंचमात्र भी स्पर्श नहीं था ।

ऐसे दुर्लभ संत और महिमामण्डित महात्मा का पार्थिव शरीर कोई एक वर्ष पूर्व ही सरयू के पावन तट पर 'परमहंस आश्रम' कोड़ारी (बड़हलगंज) गोरखपुर में शांत हो गया । अनेक प्रेमीजनों का आग्रह हुआ कि स्वामी जी के जीवन पर कोई पुस्तक प्रकाशित की जाय । महात्माओं का सांसारिक जीवन क्या होता है? उनका तो विचार, सत्संग और प्रेरणाएँ ही उनके जीवन की प्रतिनिधि होती है । स्वामी जी के प्रमुख शिष्य औरउनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी स्वामी आत्मानंदजी ने उनके सत्संग और संपर्क के कुछ दुर्लभ क्षणों को मेरे आग्रह पर लेखबद्ध करके हम लोगों का बड़ा उपकार किया है । यही इस पुस्तक का केन्द्रीय अंश है । साथ ही कुछ प्रेमीजनों ने अपने भावों को श्रद्धा-सुमन के रूप में अभिव्यक्त किया है । इस रूप में हम स्वामी जी के आलोकमय स्वरूप की कुछ झाँकी पा सकेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है । शीघ्रता में प्रकाशन के कारण इस संस्करण में मुद्रण की बहुत सी त्रुटियाँ रह गयी हैं तथा कुछ महत्वपूर्ण सामग्री भी सम्मिलित नहीं की जा सकी हैं । आशा है कि हम अगले संस्करण में इसे एक पूर्णता प्रदान कर सकेंगे ।

 

विषय-सूची

1

जीवन-लीला

1

2

पावन स्पर्श पारस स्पर्श

25

3

संत समागम : प्रेरक प्रसंग

56

4

ब्राह्मी स्थिति की भावसम्पदा

92

5

सम्मति एवं संस्मरण

 

1

अमंदमामोदभरम्

102

2

स्वरत: सार्थक स्वतंत्रानन्द

103

3

त्रिवेणी संगम-स्वामी जी

104

4

निकट से दर्शन

105

5

मैं कहता आँखों की देखी

111

6

करुणा-वरुणालय

126

7

सम्पर्क के कुछ क्षण

130

8

श्री गुरु चरण में

136

9

संसार महार्णव सेतु

140

 

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